“ बस कर नंदा… कितना विष उगलना बाकी रह गया है?” अचानक से ये आवाज सुनकर नंदा दरवाज़े की तरफ देखने लगी
सामने उसकी माँ जानकी जी खड़ी थी ।
नंदा के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं… माँ अचानक यहाँ कैसे आ गईं… कहीं सासु माँ ने तो नहीं बुलाया है तभी पीछे से आवाज़ आई..,” अरे माँ आप यहाँ क्यों खड़ी है अंदर चलिए …आपको देखकर तो सब हैरान हो गए होंगे… क्यों नंदा?” अपने पति नितिन की आवाज़ सुनकर वो चौंकते हुए बोली ,” हाँ सही में… माँ अंदर आओ बैठो ।”
“ हाँ आइए ना समधन जी ।” सरल स्वभाव वाली सरला जी ने कहा और आगे बढ़कर समधन का हाथ पकड़कर सोफे पर बैठा दिया
नंदा इस अप्रत्याशित घड़ी में खुद को संयत करने के लिये रसोई की तरफ बढ़ गई ताकि माँ के लिए पानी लेकर आ सकें ।
नंदा ने जैसे ही पानी थमाया सरला जी ने कहा,” बहू माँ के लिए चाय नाश्ता बना कर ले आओ ।”
“ नहीं समधन जी मैं कुछ नहीं लूँगी… मैं तो अपनी सहेली के घर उसके पोते के जन्मदिन पर आई हुई थी जब जाने के लिए बाहर ऑटो का इंतज़ार कर रही थी तभी नितिन ने मुझे देख लिया और बोला,” अरे मम्मी जी आप इधर ?”
“ हाँ बेटा वो सहेली के घर आई थी अब अपने घर जाने के लिए ऑटो का इंतज़ार कर रही हूँ ।”
“ अरे जब आप इतने पास आई हुई है तो चलिए नंदा से भी मिल लीजिएगा उसके बाद मैं आपको घर छोड़ आऊँगा ।”
और बस वो मुझे यहाँ ले आया… वो नीचे कार पार्क कर रहा था तो मुझे बोला आप घर जाइए सब आपको देख आश्चर्यचकित हो जाएँगे… और सच में ऐसा ही हुआ पर इन सब से ज़्यादा तो मुझे आश्चर्य हो रहा है क्यों नंदा?” जानकी जी ने बेटी पर तिरछी नज़र डालते हुए कहा
नंदा सिर झुकाए खड़ी थी नितिन के कुछ समझ नहीं आ रहा था वो अपने कमरे की ओर चला गया
“ जाओ बहू माँ के लिए कुछ तो लेकर आओ ।” सरला जी ने कहा तो नंदा वहाँ से जाने को हुई तो जानकी जी ने कहा,” चल चाय बना ले मैं भी तेरे साथ चलती हूँ… माँ बेटी वहीं कुछ देर बातें कर लेंगे ।”
रसोई में जानकी जी नंदा पर ग़ुस्सा करते हुए बोलीं,” ये सब क्या चल रहा है नंदा… तुम्हें सास से बात करने की तमीज़ नहीं है…ये सब सीखाया है मैंने तुम्हें?”
नंदा माँ के सामने हुए इस अप्रत्याशित व्यवहार के लिए शर्मिंदगी महसूस कर रही थीं वो बोली,” माँ मुझे ग़ुस्सा आ गया… वो दादी जी अपने कमरे में रहती नहीं… बाहर घुमती रहती हैं…उनकी अपने शरीर पर नियंत्रण ही नहीं…बाथरूम तक जाते जाते मल मूत्र निकल जाता और फिर वो मेड नहीं रहती तो कौन साफ करेगा…
कभी माँ करती हैं नहीं तो कभी मुझे करना पड़ता … आज मेड छुट्टी पर है और दादी सास ने दो बार ऐसा कर दिया… मैं उन्हें ग़ुस्से में बोल उठी अपने कमरे में क्यों नहीं रहती पूरे घर में गंदगी फैलाना ज़रूरी है क्या… दादी सास ये सुनकर रोते हुए अपने कमरे में चली गईं तब सासु माँ भी बोलने लगी बहू उनकी उम्र हो रही है…..
तुम ऐसे ग़ुस्सा मत किया करो… दिल की कमजोर है एक ही कमरे से मन भर जाता है इसलिए बाहर निकल आती है … तुमसे नहीं होता तो मत करो पर माँ को ऐसे मत कहो मैं साफ कर दूँगी… सास की बात सुनकर मुझे और ग़ुस्सा आ गया और बस मैं बोल पड़ीं…तो सँभालिए अपनी सास को मुझसे ये सब नहीं होगा… तब पता माँ ने क्या कहा..
बहू ऐसा मत कहो कल को तुम्हारी माँ को अगर ऐसा हो गया तो क्या तुम उनके लिए कुछ भी नहीं करोगी… मेरे लिए तो खैर मैं उम्मीद नहीं करती हूँ पर अपनी माँ की सेवा ज़रूर करना … ये सब कौन सुनता बस मैं उनपर ग़ुस्सा निकाल रही थी तभी आप आ गई ।” नंदा ग़ुस्से में बोली
“ वैसे तेरी सास ने कुछ गलत तो नही कहा…कल को तेरी भाभी भी मेरे साथ ऐसा व्यवहार करेगी तो तुझे कैसा लगेगा… शायद तब भी ग़ुस्सा ही आएगा तुझे… बेटा समझ तो अब वो दादी सास नहीं तेरी ही दादी है और सासु माँ को माँ समझना शुरू कर दे… मुझे तो डर है तेरे करतूतों की गाथा
मेरे घर तक पहुँच गई तो मेरी बहू भी कही मेरा हाल सरला जी जैसा ना कर दें फिर मेरा क्या होगा…अभी तो बहू को यही लगता है मेरी बेटी अपनी सास का दादी सास का इतना ख़्याल रखती है तो वो क्यों नहीं रख सकती…. पर तेरे ऐसे लक्षण है तो मुझे अपने भविष्य की चिन्ता सता रही है….
याद रखना बेटा तू जो बोएगी तू क्या तेरी माँ को भी वही काटना पड़ेगा … चल बातों बातों में चाय भी बन गई… कहीं उफन कर गिर ना जाए उसके पहले गैस बंद करके उसे संभाल ले… बिल्कुल वैसे जैसे रिश्ते बिखरने की कगार पर हो तो उसे सँभाला जा सके ।
नंदा माँ की बात सुनकर सहमति में सिर हिला दी और
आगे से ऐसा कुछ नहीं करने का माँ को आश्वासन दे दी।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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