तलाश (अंतिम भाग ) (भाग 3 ) – अंतरा

अब तक आपने पढ़ा कि ..बाबा रोहिणी को तपोवन के बारे में बताते हैं जिसे वह ढूंढते हुए पहाड़ों पर आई थी  और रोहणी अब तपोवन की तलाश में चल पड़ी है.. तो आइए पढ़ते हैं अब आगे…

रोहिणी बड़ी ही उत्सुकता से तपोवन को ढूंढ रही थी। चारों ओर बड़े बड़े पेड़ों और  झुरमुटों के अलावा कुछ भी खास नहीं दिख रहा था। रोहिणी लगभग 1 किलोमीटर चल चुकी थी पर अभी तक तपोवन नहीं मिला। एक पल को तो रोहड़ी को लगा कि कहीं बाबा रोहिणी को बेवकूफ तो नहीं बना गए पर फिर उसे ध्यान आया कि बाबा ने उसे कहा था कि जंगल खुद उसे ढूंढेगा अगर वह सच्चे दिल से उसे ढूंढ रही हो। रोहिणी ने आंखें बंद करके अपने इष्ट का स्मरण किया और उसे शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हुए तपोवन को सच्चे दिल से याद किया।

रोहिणी ने आंखें खोली तो वह  भौचक्की रह गई। आंखें खोलते ही उसके सामने का नजारा बिल्कुल ही अलग था… वह आगे बढ़ती जा रही थी। कुछ दूरी पर एक विशाल वृक्ष खड़ा हुआ था जो आसमानी  चमकती रोशनी से भरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे पेड़ आसमान को छू रहा है या  शायद आसमान इस पेड़ पर टिका हुआ है। रोहिणी धीरे-धीरे आगे बढ़ती जा रही थी। रोहिणी को देखकर आश्चर्य हो रहा था कि वहां के निवासी जो कि आदिवासियों जैसे लग रहे थे.. रोहिणी को देखकर उत्तेजित या क्रोधित होने के बजाय मुस्कुरा कर उसका स्वागत कर रहे हैं , जबकि रोहिणी  का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसे लग रहा था कि वह तपोवन पहुंच  तो गई है पर कहीं वह किसी मुसीबत में ना फंस जाए …तभी एक युवती उसे इशारे से एक कमरे में ले गई और बैठने को कहा। युवती रोहिणी के सामने पानी और कुछ फल रखते हुए बोली “आप जलपान ग्रहण कर लीजिए ;गुरु जी अभी आते ही होंगे।”

रोहिणी को बहुत ही अचंभा हो रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? क्या इन लोगों को मेरे आने की खबर पहले से थी और अगर थी तो मुझे रोका क्यों नहीं ? अगर देखा जाए तो मैं तो घुसपैठिया हूं तो मेरी इतनी सेवा क्यों हो रही है ? इन लोगों को मुझ से डर नहीं है क्या? और यह गुरुजी कौन है?”

“मैं हूं गुरु जी”  अभी रोहिणी अपने मन में प्रश्न पूछ ही रही थी कि उसका उत्तर सुनकर वह एकदम से हड़बड़ा गई। तुरंत अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और पीछे पलट कर देखा तो एक वृद्ध व्यक्ति दरवाजे पर खड़ा है। ऊपर से लेकर नीचे तक सफेद लिबास से ढका हुआ, छाती तक लंबी बिल्कुल सफेद दाढ़ी.. सर पर पगड़ी और एक हाथ में लाठी लिए हुए जिसके सिर पर एक सर्प की आकृति बनी हुई है ..रोहिणी ने अपने आप को संभालते हुए पूछा,” आपको कैसे पता कि मैं अपने मन में क्या सोच रही थी?”

गुरुजी मुस्कुराते हुए कमरे में प्रविष्ट हुए और अपने आसन पर बैठ गए और रोहिणी को भी बैठने का इशारा करते हुए बोले,” मैं सबके मन की बात सुन सकता हूं ..अपने द्वार पर खड़े किसी भी याचक को वापस भेजना भी तो उचित नहीं है” गुरुजी ने बड़े ही शांत स्वर के साथ रोहणी के प्रश्न का उत्तर दिया|

रोहिणी के मन में ढेरों प्रश्न थे……  रोहिणी और कुछ पूछ पाती इससे पहले ही गुरुजी ने उसे रोक दिया …”तुम्हारे हर सवाल का जवाब मिलेगा पर अभी थोड़ा आराम कर लो और जलपान ग्रहण कर लो” इतना कहकर गुरुजी कमरे से बाहर चले गए।




गुरुजी की बातें सुनकर  रोहिणी के मन की उत्सुकता और भी बढ़ गई थी। रोहिणी ने सुबह से कुछ नहीं खाया था इसलिए पहले नाश्ता करना ही ठीक समझा। नाश्ता करने के बाद रोहिणी को कमरे में अकेले बैठने का मन नहीं हुआ या यूं कहो कि उसे जल्दी से जल्दी यह जानना था कि उसका यहां आना कारगर सिद्ध हुआ या यहां भी उसके मतलब की कोई चीज नहीं है।

वह बाहर निकली तो उसकी नजर सामने खड़े वृक्ष पर पड़ी। उसके पैर खुद-ब-खुद उस और उठने लगे। उस पेड़ की खूबसूरती ऐसी थी कि किसी को भी मंत्रमुग्ध कर दे। पेड़ के आसपास आसमानी रोशनी दिखाई दे रही थी जिसकी वजह से पूरा तपोवन चमक रहा था  । दरअसल पेड़ नीला नहीं था बल्कि उसकी रोशनी की वजह से पेड़ नीला दिखाई देता था।

पेड़ की चौड़ाई इतनी थी कि अगर 50 लोग भी हाथ पकड़ कर उसका घेरा बनाए तो शायद तब भी ना पूरा  पढ़े। पेड़ की शाखाएं इतनी दूर दूर तक फैली हुई थी कि एक अच्छा खासा गांव उसके नीचे समा जाए। पेड़ की शाखाओं के नीचे कई नए  पौधों ने जन्म ले लिया था.. शाखाओं से गिरती हुई जड़ें इतनी घनी थी कि उसके अंदर तपोवन के निवासी घर बनाकर रहते थे। तपोवन में जो भी रहता था वह सभी इसी पेड़ के नीचे या आसपास ही रह रहे थे। पेड़ की जड़ें जमीन से बाहर आ गई थी ..जैसा कि अमूमन पुराने पेड़ों में होता है … पर वह इतनी चौड़ी और ऊंची थी कि उन्हें पार्टीशन की तरह इस्तेमाल करते हुए अलग-अलग कक्ष बनाए गए थे …जहां एक सार्वजनिक भोजनालय, मीटिंग हॉल, गौशाला और मवेशियों के रहने का स्थान, प्रार्थना घर वगैरह बना हुआ था । रोहणी ने अपना कैमरा निकाला और उत्सुकता वश फोटो लेने लगी। रोहिणी इतने खूबसूरत पेड़ और जंगल की फोटो लिए बिना नहीं रह सकती थी …रोहिणी ने वहां के लोगों की, घरों की, बच्चों की मवेशियों की और जंगल के कई अलग-अलग हिस्सों की ढेरों फोटो ले ली।

तभी रोहिणी ने गुरु जी को मीटिंग हॉल से बाहर निकलते हुए देखा तो वह डर गई कि कहीं फोटो खींचते हुए देखने पर गुरु जी उससे नाराज ना हो जाएं ,” माफ कीजिएगा मैं खुद को रोक नहीं पाई। यह पेड़ इतना खूबसूरत है कि….”  रोहिणी आगे कुछ कह पाती इससे पहले ही गुरुजी मुस्कुराते हुए बोले “आप जितना चाहे फोटो ले सकती हैं …आप हमारी अतिथि हैं।”

“आपसे एक बात पूछूं… अगर आप बुरा ना माने ”  रोहिणी ने थोड़ा  सकुचाते हुए गुरु जी से कहा|

 गुरु जी -” आप इस जंगल के बारे में जानना चाहती हैं ..क्यों सही कहा ना मैंने? ”  गुरुजी ने प्रश्नवाचक मुस्कुराहट के साथ रोहिणी की तरफ देखा

रोहिणी- हां …आपने बिल्कुल सही समझा ..आखिर इस जंगल की कहानी क्या है? क्या यह किसी और दुनिया में है मतलब पृथ्वी से बाहर?”

गुरु जी ने रोहिणी के प्रश्न पर ठहाका लगाते हुए उत्तर दिया “नहीं… बिल्कुल नहीं …यह पृथ्वी पर ही है और इस जिस जंगल में तुमने प्रवेश किया था ..यह उसका केंद्र बिंदु है  और यह इस धरती का धन्य भाग है कि यह तपोवन धरती पर ही है”

रोहिणी-” और इस पेड़ के बारे में भी कुछ बताइए  …मैंने दुनिया के कई खूबसूरत पेड़ों को देखा है पर इस पेड़ की बात ही कुछ अलग है|”  रोहिणी ने जिज्ञासा भरे स्वर में पेड़ की ओर देखते हुए प्रश्न पूछा  ।

गुरुजी-”  यह जो वृक्ष आप देख रहे हैं … यह वृक्ष कोई मामूली वृक्ष नहीं है… यह कल्पवृक्ष है। शायद आपको भी पता होगा कि समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पत्ति हुई थी …समुद्र मंथन से  प्राप्त यह वृक्ष देवराज इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना  सुरकानन वन  (हिमालय के उत्तर) में कर दी थी….  इस वृक्ष के नीचे बैठ कर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है वह पूर्ण हो जाती है… यही इस वृक्ष की खासियत है। इसकी उम्र एक कल्प है। एक कल्प 14 मवंतर  का होता है और एक मवंतर लगभग 30,84,48,000 वर्ष का होता है …मतलब यह वृक्ष प्रलय काल में भी जिंदा रहता है।”




रोहिणी -“तो क्या सच में यह एक दैवीय पेड़ है और अगर यह  पेड़ दैवीय है तो फिर आपको कैसे मिल गया।”

गुरुजी -” दरअसल इंद्रदेव द्वारा जब  यह पेड़ यहां स्थापित किया गया ….तब हमारे पूर्वज इसी जंगल में निवास करते थे। इंद्रदेव द्वारा पेड़ स्थापित कर हमारे पूर्वजों को इस पेड़ की सुरक्षा हेतु नियुक्त करते हुए इस पूरे जंगल को अपनी शक्तियों द्वारा छुपा दिया गया  और हमारे पूर्वजों को भी कुछ विशिष्ट शक्तियां इस कल्पवृक्ष की सुरक्षा करने हेतु प्रदान की गई क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं दानव इस  वृक्ष को प्राप्त करने का प्रयास ना करें ….तब से या वृक्ष हमारी सुरक्षा में ही है या यूं कह सकते हैं कि हम इस वृक्ष की सुरक्षा में जीवन यापन कर रहे हैं।”

रोहिणी -“अगर ऐसा है तो आपने मेरे लिए यह जंगल क्यों खोल दिया?”

गुरु जी -“अगर मैं ऐसा ना करता तो इस वृक्ष का उद्देश्य विफल हो जाता”

रोहिणी -“मतलब, मैं कुछ समझी नहीं”

गुरुजी -“जब भी कोई  याचक इस जंगल में सच्चे मन से किसी उचित इच्छा की याचना हेतु प्रवेश करता है तो यह हमारा धर्म है कि हम उसकी याचना को कल्पवृक्ष तक पहुंचाएं… यह वृक्ष सिर्फ हमारा नहीं है…  बल्कि पूरी धरती के कल्याण हेतु है।”

 रोहिणी-” अगर ऐसा है तो आप इसे बाकी के जंगलों की तरह क्यों नहीं रखते?… छुपाकर क्यों रखते हैं?”

गुरुजी-”  मनुष्य की प्रवृत्ति बहुत ही लालची है …जैसे ही यह वृक्ष मनुष्य की नजर में आएगा …वह इस पर अपना अधिकार जताने लगेगा और अंततोगत्वा इस जंगल का भी वही हाल होगा जो और जंगलों का हो रहा है इसलिए इसे छुपा कर रखना ही उचित है।”

रोहिणी -“तो क्या इसी वृक्ष की वजह से आप लोग अमर हो गए हैं”

गुरु जी -“यह आपसे किसने कहा कि यहां कोई अमर है ?. हम भी साधारण मनुष्य ही हैं| ..हां.. आप या अवश्य कह सकती हैं कि हम लोगों की आयु साधारण मनुष्यों की अपेक्षा अधिक है क्योंकि यह वृक्ष रोगों को दूर भगाता है| बीमारी कम होती है तो  स्वस्थता रहती है और अपनी आयु से अधिक हम जीवित रहते हैं। दूर-दूर तक वायु के प्रदूषण को समाप्त करना भी इस वृक्ष की बहुत बड़ी खूबी है………मात्र इस एक वृक्ष की वजह से जाने कितनी दूर तक पर्यावरण शुद्ध रहता है। इस वृक्ष को छुपा कर रखने का एक कारण यह भी है कि इस वृक्ष की वजह से मानव जीवन सुरक्षित है। यह पेड़ वायु को प्राणवायु में परिवर्तित कर मनुष्य के योग्य बनाता है। जंगलों और मनुष्यों के बीच सामंजस्य बिठा कर रखता है। अगर इस पेड़ को नुकसान पहुंचाया गया तो अनिष्ट हो जाएगा मनुष्य प्रजाति संकट में पड़ जाएगी…… जंगल नष्ट हो जाएंगे। पृथ्वी पर जीवन का केंद्र बिंदु है यह पेड़।”

रोहिणी-” पर अगर आप इतना छुपा कर रखेंगे तो कोई  याचक यहां तक कैसे पहुंचेगा …जब किसी को जानकारी ही नहीं होगी|  वह तो भला हो उस इंसान का जिसने मुझे इस जगह के बारे में बताया और उन बाबा का जिन्होंने मुझे रास्ता दिखाया वरना मैं यहां कभी नहीं पहुंच पाती”  रोहिणी में थोड़ा उत्सुकता और जिज्ञासा से प्रश्न किया




गुरुजी ने एक मुस्कान के साथ रोहणी की ओर देखा और कहा,” संसार में कोई भी इंसान. कहीं भी सच्चे दिल से याचना करता है तो किसी न किसी माध्यम से कल्पवृक्ष उसे स्वयं बुला लेता है। हो सकता है कि आपको भी यहां कल्पवृक्ष ने ही बुलाया हो। जब आप यहां तक आ ही गई हैं तो अपने मन में जो भी इच्छा है …इस वृक्ष से मांग सकती हैं ..अगर वह उचित हुई तो कल्पवृक्ष अवश्य पूरी करेंगे।”

रोहिणी तो कुछ और ही सोच कर यहां आई थी कि उसे कोई  अमरता की जड़ी बूटी मिल जाएगी लेकिन यहां तो सिर्फ अपनी इच्छा मांगनी है। पता नहीं पूरी हो कि ना हो। रोहिणी का मन  संशय से डूबा जा रहा था कि तभी उसकी तंद्रा गुरुजी की आवाज से टूटी ,”अगर मन में इतना  संशय रखोगी तो  इच्छा कभी नहीं पूर्ण होगी …जब तक आपको कल्पवृक्ष पर पूर्ण विश्वास नहीं होगा… आपका इच्छा मांगना भी व्यर्थ ही होगा। पूर्ण विश्वास के साथ आगे  बढ़िये और अपनी इच्छा मांगिये ।

गुरुजी की बात सुनकर रोहिणी में विश्वास की एक किरण जाग उठी। रोहिणी आत्मविश्वास के साथ कल्पवृक्ष की ओर बढ़ी। अपनी आंखें बंद कर रोहिणी ने अपनी इच्छा कल्पवृक्ष के सामने बोली,”हे कल्पवृक्ष …मेरी इच्छा पूर्ण करो …आकाश को स्वस्थ जीवन और लंबी आयु प्रदान करो।”  उसके आसपास नीला प्रकाश बढ़ता ही जा रहा था …उसकी आंखें रोशनी से भर गई ..जब उसने आंखें खोली तो वह वहीं खड़ी थी जहां से उसने जंगल में प्रवेश किया था। रोहिणी ने चौक कर इधर-उधर देखा और फिर पलट का जंगल की ओर  विस्मय और अचंभे से देखने लगी। रोहिणी को लगा जैसे वह अभी तक कोई सपना देख रही  थी …उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि  क्या सच में वह तपोवन गई थी और उसने कल्पवृक्ष से कोई इच्छा मांगी थी… तभी उसके फोन की रिंगटोन  बजी.. पापा का फोन था। फोन रिसीव होते ही उसके पापा खुशी से चहकने लगे ,”रोहिणी ..आकाश को होश आ गया है …तुझे याद कर रहा है …तू जहां भी है …तुरंत चली आ….आ रही है ना तू।”

“हां पापा मैं आ रही हूं”  रोहिणी बस इतना ही कह  पाई|  उसकी आंखों में आंसू थे ……उसने पलट कर जंगल की ओर देखा और एक मुस्कान के साथ दिल ही दिल में कल्पवृक्ष और जंगल को धन्यवाद देते हुए वह जाने कितनी रफ्तार से  रिसोर्ट

पहुंची और अपना सामान पैक करने लगी । रोहिणी को आज अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था | उसकी सहेलियों ने पूछा भी तो रोहिणी ने सिर्फ इतना कहा कि ,” आकाश को होश आ गया है और बाकी की कहानी मैं फुरसत में  सुन आऊंगी… तुम लोगों को विश्वास नहीं होगा।”  रोहिणी का चेहरा खुशी से चमक रहा था… और होता भी क्यों नहीं… आखिर उसकी बरसों पुरानी खुशियां उसे वापस मिल गई  थी




रिसोर्ट छोड़ने से पहले उसने एक नजर आसपास डाली कि शायद कहीं बाबा दिख जाए तो उन्हें भी  यह खुशखबरी दे दे पर अभी समय नहीं था …” अब तो आकाश ठीक हो गया है… उसके साथ आऊंगी तो आकाश से भी मिला दूंगी ” यह सोचते हुए रोहिणी कैब में बैठ गई|  वह खुशी से बाहर का नजारा देख रही थी | सुंदर पहाड़ियां, पर्वत , झरने आज उसे सब कुछ बहुत सुंदर दिख रहा था। उसने कैमरा उठाया और कुछ तस्वीरें लेने की कोशिश की लेकिन रफ्तार की वजह से फोटो नहीं ले पाई। वह अपने कैमरे में कल्पवृक्ष की फोटो देखने लगी तो उसने देखा कि तपोवन की एक भी तस्वीर कैमरे में नहीं है ……वह बेचैनी से फोटो को पीछे करती जा रही थी पर तपोवन की एक भी फोटो नहीं मिली ……बस पहाड़ी और जिन जगहों पर वह घूमने गई थी वहां की फोटो थी | तभी उसके हाथ  ठीठक गए जिस पेड़ के नीचे उसने बाबा की तस्वीर ली थी ……वहां बाबा क्यों नहीं दिख रहे?  किसी भी तस्वीर में बाबा नहीं है… आसपास के सभी लोग हैं …बस बाबा ही नहीं …रोहिणी का तो सिर चकराने लगा आखिर माजरा क्या है?

तभी उसे याद आया कि बाबा बार-बार उससे कहते थे कि अगर तपोवन में उसके लिए कुछ है तो वह उसे जरूर मिलेगा और गुरु जी ने भी तो कहा था कि तपोवन खुद याचक को अपने पास बुला लेता है तो क्या  तपोवन ने उसे खुद बुलाया था?  क्या बाबा को शुरुआत से पता था कि वह तपोवन की तलाश में है और वह उसके मार्गदर्शक थे तो फिर सुंदरवन में जो गाइड मिला था वह कौन था रोहिणी ने खुद से प्रश्न किया  तभी उसे याद आया कि उसने सुंदरवन में भी तो फोटोस लिए थे। रोहिणी ने तुरंत अपने कैमरे में उन फोटोग्राफ्स को ढूंढा। किसी भी फोटो में वह गाइड नहीं था। रोहड़ी को समझ में आ गया कि गाइड और बाबा रोहड़ी को कल्पवृक्ष तक पहुंचाने का सिर्फ एक माध्यम थे… कल्पवृक्ष ने उसकी याचना सुन ली थी और खुद उसके लिए मार्गदर्शक भी भेज दिए थे।

रोहिणी बड़ी ही खुशी-खुशी अपने घर तक का सफर तय कर रही थी और मन में सोच रही थी कि घर जाकर अपने माता-पिता ,दादाजी और आकाश को कल्पवृक्ष और तपोवन के बारे में बताएगी। रात हो गई थी… रोहिणी बस में बैठी तारों को निहार रही थी और जाने कब उसकी आंख लग गई। जब बस रुकी तो उसे एहसास हुआ कि उसका शहर आ गया है। वह बस से उतरी पर उसके दिमाग में कुछ खटक रहा था जैसे कि वह कुछ भूल रही है पर उसे आकाश के सही होने की खुशी थी। अब रोहिणी को तपोवन और कल्पवृक्ष के बारे में कुछ भी याद नहीं था । कल्पवृक्ष के पास खड़े गुरुजी मुस्कुरा रहे थे| तपोवन की सुरक्षा के लिए रोहिणी के दिमाग से सारी यादें मिटाना बहुत ही जरूरी था ।

रोहिणी की याचना पूरी हुई और उसका जीवन आकाश के साथ संपूर्ण हो गया । कल्पवृक्ष आज भी सच्चे  याचको की याचना पूरी कर रहा है ……आज भी गाइड याचको को कल्पवृक्ष के बारे में बता रहा है  और बाबा यथा स्थान पेड़ के नीचे किसी  नए याचक का इंतजार कर रहे हैं ।

समाप्त

अंतरा

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