तलाकशुदा- श्रद्धा निगम : Short Stories in Hindi

वो जगमगाती झिलमिलाती शाम ही तो थी,सीमा उमंग और उत्साह से रजत के बेटे के जन्मदिन में जा रही थी।महीना भर पहले से ही रजत याद दिला रहा था,पहला जन्मदिन है मनु का,याद रखना।तुम्हे जल्दी आना है।

सीमा हंस कर कहती -हाँ याद है मुझे,मैं कैसे भूलूंगी ,मेरा भी तो बेटा है।

-हां ,तभी तो याद दिला देता हूँ …

रजत का बेटा उसके विवाह के कई साल बाद हुआ,बड़ी मन्नत के बाद।उसकी हर मन्नतों  में  सीमा उसके साथ थी,उसके पूरे परिवार के साथ।

कभी मन भी होता कि कहां वो उसके परिवार के साथ घूमती फिरे,पर मनुहार ऐसा कि वो कभी मना नही कर पाई।कुछ इसलिए भी कि रजत ने और उसके परिवार ने हमेशा हर परिस्थितियॉ में साथ दिया था।कुछ मन्नतों की बदौलत और ईश्वर की कृपा से वो दिन आया जब सुंदर से बच्चे का जन्म हुआ।

रजत को पता था कि वो तलाकशुदा है,पर कभी उसने और न उसके परिवार ने कारण पूछा,कि क्या वजह थी कि तलाक हुआ ,इसलिए वो उन सबका सम्मान करती थी उन्होंने उसकी निजता का पृरा सम्मान रखा था वरना तलाकशुदा का ठप्पा लगते ही पहले तो उसकी जन्मकुंडली खोल दी जाती है।

सब उसके व्यक्तित्व से मेल करते हुए स्वयम ही सौ कारण ढूंढ निकालते है कि क्या खामी हो सकती है।चरित्र का बखान तो अलग-अलग तरीके से लोग अपनी अपनी सोच और दृष्टि से कर ही लेते है।

चाहे वो कितने भी बड़े पद में हो,या अपने पैरों में खड़ी हो।इसीलिए वो ज़्यादातर लोगो से कन्नी काट के चल देती थी।कौन मिले और किसको-किसको बताये कि क्या हुआ?क्या कोई स्वयम चाहता है कि उसका जीवन सुखी न रहे या गृहस्थ जीवन यूं ही खत्म हो जाये।

बस कुछ ही लोग है जिनके साथ वो बिना किसी झिझक के बात कर सकती है,उनमे ये लोग सबसे खास है।



सीमा उस शाम को कार्यक्रम स्थल पर पहुंची,पूरा शामियाना   दूधिया रोशनी से जगमगा रहा था।रजत और उसकी पत्नी सभी का स्वागत कर रहे थे।उनके पास मुस्कुराते हुए पहुंची और अपना उपहार उनको सौंपा।

उपहार स्वीकार कर उन्होंने  हाथ से इशारा करके अंदर जाने को कहा।उनका मौन रहकर औपचारिक हो जाना उसे अजीब लगा। न वो उत्साह जिस मनुहार से उसे बुलाया गया था,और न ही परिवार के किसी और सदस्य ने उसे हाथों हाथ लिया।

एक खाली कुर्सी पर जाकर वो अकेले बैठ गयी।वैसे भी उसने अपने आपको समाज से अलग- थलग कर लिया था।अकेले चुपचाप थोड़ी देर बैठे रही,लेकिन उसे लग रहा था जैसे कई जोड़ी आंखे उसी की ओर देख रही है।

अजीब बेचैनी सी होने लगी और वो महफ़िल उसे भारी लगने लगी।दूर से देखा तो रजत और उसकी पत्नी सबके साथ नाचने-गाने में लगे थे।तेज़ कदमो से घर की ओर चल दी।

दूसरे दिन जब उसने रजत से उसके ठंडे व्यवहार के लिए पूछा तो उसने दो टूक कहा-

— क्या कमी थी?सबके साथ जैसा व्यवहार किया, वैसा ही तो आपके साथ किया।आप कोई विशेष थोड़ी हो मेरे लिए..और हाँ वैसे भी हम लोग कैसे ख्याल रखते,,लोग क्या सोचते मेरे बारे में?मैं क्यो कर रहा हूँ  विशेष खिदमत?वैसे भी आपकीं छवि समाज मे ……

-मतलब? मैं समझी नही?सीमा का चेहरा अपमान से तमतमा रहा था।

-मतलब ये कि हम लोग भी समाज मे रहते है,जवाब हमे भी देना है।

–तो…???

–अकेले की बात अलग है,उसमें हमे फर्क नही पड़ता पर सबके सामने….

अब सीमा को कुछ भी नही सुनना था,उसके सम्मान की खोखली दीवार टूट चुकी थी।जो था सब दिखावटी था…

वो झिलमिलाती नही ,टिमटिमाती रात थी ।

श्रद्धा निगम

बाँदा उप्र

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