रोली आज की पढ़ी लिखी आत्मविश्वास से भरी हुई सुलझी हुई महिला थी। वो उन महिलाओं में से नहीं थी जो घर गृहस्थी के चक्कर में अपनेआपको भूल जाए और अपने पर बिल्कुल भी ध्यान ना दे। वो उन महिलाओं में से थी जो खुद अपना भाग्यविधाता बनने में विश्वास करती हैं। वो अपने घर,परिवार और अपने शौक के साथ संतुलन करना जानती थी। उसके चेहरे की चमक-दमक और आत्मविश्वास इसलिए कई लोगों के बीच जलन का भी विषय बनता था।
अभी आज की ही बात थी कि वो कहीं से वापिस आ रही थी तब उसके पड़ोस की ही कई महिलाओं का एक ग्रुप उसे मिल गया। उन लोगों ने मिलते ही पहले तो रोली की प्रशंसा की और कहा कि बहुत अच्छी लग रही हो। तुम्हारे चेहरे की मुस्कराहट देखकर आस पास का वातावरण काफ़ी सकारात्मक हो जाता है। फिर एक ने कहा कि कल हमने तुम्हारा समाचारपत्र में लेख हर कोई अपना भाग्यविधाता स्वयं है पढ़ा,बहुत अच्छा लगा।
अभी बातें चल ही रही थी कि रोली की नज़र घड़ी पर गई उसके बच्चे के स्कूल से आने का समय हो रहा था। वो सबसे विदा लेकर जैसे ही वो निकलने लगी तो उनमें से एक महिला ने उसको बोला कि अच्छा है तुम्हें अपने परिवार का इतना सहयोग प्राप्त है इसलिए तुम अपने ऊपर भी इतना ध्यान दे पाती हो।
हमें देखो,सारा दिन बिना किसी सहारे के पति,बच्चे और परिवार में ही बीत जाता है। उसने ये भी कहा कि जब तक परिवार का सहयोग ना हो तो कोई स्त्री कुछ नहीं कर सकती तुम भाग्यशाली हो जो तुम्हें अपने सपने पूरे करने का अवसर मिला। रोली बिना कुछ कहे बस मुस्कराकर रह गई और वहां से चली आई।
वो अपने घर आई। बच्चे को खाना देकर चाय का कप लेकर बालकनी में बैठी ही थी कि उसको परिवार के सहयोग वाली बात याद आ गई और साथ-साथ कई पुरानी बातें भी उसके मन में चलचित्र की भांति घूमने लगी। वो अपनी नई-नई शादी वाली दुनिया में पहुंच गई। शादी से पहले से ही वो नौकरी करती थी, शादी के बाद भी उसकी नौकरी चलती रही।
वैसे भी नौकरी उसके शौक के साथ-साथ उस समय की जरूरत भी थी। जब शादी हुई तब वो और उसके पति दोनों ही काफी कम उम्र के थे और जिस महानगर में वो दोनों नौकरी करते थे वहां एक की नौकरी से कुछ भी नहीं हो सकता था इसलिए लोगों ने बिना कुछ सोचे समझे उसके नौकरी करने के खिलाफ कई बात बनाई पर उसने ध्यान नहीं दिया। ज़िंदगी चल रही थी इसी बीच वो एक बेटे की मां भी बन गई ।
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स्वयंसिद्धा (भाग 2 – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा