स्वार्थ – मीनू झा

अब बड़ा बेटा “एटीएम मशीन” बनकर नहीं रहेगा !!

निशांत…गांव पैसे नहीं भेजे क्या आपने इस महीने??बार बार मेरे फोन पर भी फोन आ रहे है…मुझे तो देखते समझ आ गया कि आप पैसे भेजने भूल गए होंगे वरना मुझे क्यों फोन आने लगा वहां से…

अरे यार.. बिल्कुल भूल गया..इस महीने वर्क प्रेशर इतना है कि सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती…आज पक्का भेज दूंगा…पर मुझे समझ नहीं आता दो एक दिन देर हो जाए…तो इतनी जल्दी क्यों मचने लगती है मां बाबूजी को..!!

जल्दी नहीं मचती..डर हो जाता है कि कहीं आपने पैसे देना बंद तो नहीं कर दिया ?

हद है यार…उनका बेटा हूं कोई कंप्यूटर थोड़ी हूं कि एकदम एक तारीख को पैसे ट्रांसफर हो ही जाएंगे आउटोमैटिकली..चलो कोई बात नहीं आज ऑफिस पहुंचकर सबसे पहले यही काम करूंगा।

माला निशांत के निकलने के बाद घर समेट ही रही थी कि फिर उसका फोन बजा…



हैलो मांजी प्रणाम…

खुश रहो… निशांत कुछ ज्यादा व्यस्त हैं क्या??

व्यस्त तो है पर आज पैसे भेज देंगे, आप फ़िक्र मत करो

मेरा तो फोन ही नहीं उठा रहा,उससे कहना कुछ पैसे ज्यादा भेजे…बाबूजी की तबीयत ठीक नहीं है दिखाना होगा शहर के डाक्टर को

ठीक है बोल दूंगी

हर महीने दो महीने में एक फिक्स राशि के अलावा कुछ और पैसों की डिमांड आना तय था…जबकि गांव में घर का अनाज, सब्जियां और दुध हो जाता था । दवाएं नाम की ही आती थी क्योंकि सास ससुर दोनों स्वस्थ थे…गांव के बाज़ार में जो जमीन थी वहां आठ दुकानें बनाकर निशांत ने उसे भी किराये पर चढ़ा दिया था..जिसका किराया भी सास ससुर के पास ही आता…। एक देवर था,वो भी शहर में नौकरी करता था, उसकी भी शादी हो गई थी..पर परिवार साथ नहीं रखता था तो उसकी बीबी और दो बच्चे गांव पर ही रहते थे..।

बार बार सासुमां ये सुनाना नहीं भूलती–अपने परिवार का खर्चा तो प्रशांत खुद भेजता है…निशांत के भेजे हुए पैसे में हमारा ही पूरा नहीं पड़ता तो उसका क्या चलेगा!!

जबकि माला और निशांत दोनों की समझ में आ रहा था कि प्रशांत अपना बैंक बैलेंस बना रहा है, इसलिए फैमिली को भी गांव में रख छोड़ा है और गांव में तो हर चीज है ही,रही पैसों की बात तो पैसों की जरूरतें सास ससुर पूरी करते हैं ।पर वो ये बात बोलते तो हंगामा हो जाता…।



एक बार ऐसे ही चर्चा चली थी तो सासु मां बिफर पड़ी थी–

अरे प्रशांत की नौकरी इतनी अच्छी होती तो क्या तेरी तरह उसे शौक नहीं है परिवार साथ रखने का..बेचारा किसी तरह अपना गुजारा करता है और पैसे यहां भी भेजता है बाल बच्चों के लिए… कोई सरकारी अफसर की नौकरी थोड़े हैं उसकी जो ठाठ चलेगी।

खैर इसी तरह से पिछले सात सालों से देखती आई रही थी माला..जब देवर की शादी नहीं हुई थी तब भी वो एक पैसे मां बाप को नहीं देता और अब तो उसके पास बहाना भी था…जो करना था सब बड़े बेटे निशांत के ही जिम्मे था। निशांत का एक बेटा ही था ।

शाम को निशांत लौटा तो बहुत परेशान सा था, आते ही माला ने पूछा–पैसे भेजे आपने ?

हां भेज दिया..।

कल और भेज देना मैं बताना भूल गई थी मांजी का फोन आया था बाबूजी को दिखाना है डाॅक्टर को।

माला…पैसे बाबूजी को दिखाने के लिए नहीं शहर जाने के लिए चाहिए मां बाबूजी को!

मतलब?? समझी नहीं?



आज मामाजी का फोन आया था…शिकायत कर रहे थे कि प्रशांत ने इतना अच्छा तीन कमरों का घर खरीद लिया…चार दिन बाद गृह प्रवेश है और तुम लोगों ने कुछ बताया भी नहीं मुझे..वो तो मैं अपने साले के घर गया जो उसी सोसायटी में रहता है तो पता चला कि प्रशांत ने भी वहीं घर ले लिया है… मैं हड़बड़ी में था तो मिल नहीं पाया..वैसे भी बिना बुलाए जाना भी नहीं चाहता था..

क्या…घर ले भी लिया और हमें बताया तक नहीं ??? मांजी तो हमेशा उनकी कम आमदनी का रोना रोती रहती थी और तीन कमरे के घर में तो अच्छे खासे पैसे लगे होंगे वो भी उस नामी सोसायटी में तो

मैं अभी फोन करके पूछता हूं मां से इतनी बड़ी बात क्यों छुपाई मुझसे… निशांत क्रोधित ही नहीं दुखी भी था।

बताने ही वाली थी… कोई खुद के पैसे से थोड़े ही खरीदा है बैंक से लोन लेकर खरीदा है..–सास ने सफाई दी।

मां बैंक लोन भी उतना ही और उन्हीं लोगों को देती है जो चुका सकें…तुम ये सब मुझे ना ही सिखाओ तो बेहतर‌ है कोई दुध पीता बच्चा नहीं हूं मैं सब समझता हूं



कैसा भाई है ये तू..अपने भाई की तरक्की पर बजाय खुश होने के गुस्सा निकाल रहा है

मां भाई कहां रहने दिया आपने… प्रतिद्वंद्वी बना दिया,उसका एकतरफा सपोर्ट करके,कभी मुझे बेटा समझा आपने शुरू से ही प्रशांत प्रशांत प्रशांत करती रहीं क्यों ??? मैं उससे अच्छी नौकरी करता हूं ये मेरा कसूर है उससे ज्यादा पैसे और सुविधाएं मिलती है ये मेरा दोष है,आपको तो गर्व होना चाहिए था मुझपर..पर नहीं…आपने घर की बात इसलिए नहीं बताई ना कि कहीं मैं उससे जलने ना लगूं या मेरे मन में ये बात ना आ जाए कि कहीं मेरे ही भेजे पैसों से…

अरे तू कोई लाख रुपए भेज देता है क्या? दस पंद्रह हजार का आजकल कोई महत्व है क्या…वो तो गर्म तवे पर पानी की तरह उड़ जाता है,कष्ट में ही रहते हैं हम यहां पर तुझे बताते नहीं तो क्या?…कभी यहां महीने भर आकर रह और हमारे खर्चे देख तब पता चलेगा तुझे

ठीक है मैंने भी फैसला कर लिया है!

कैसा फैसला?? नौकरी छोड़कर हमारे खर्चे देखने आकर रहेगा यहां??

नहीं…अब से आपके हर खर्चे को पूरा करूंगा..पर वहां गांव पर नहीं आपको यहां हमारे साथ आकर रहना होगा..शायद मेरे पास रहें तो मुझसे प्यार भी हो जाए आपलोगों को,और दूसरी बात मैं नहीं चाहता कि अब मेरे होते आपलोग और कष्ट झेलें..

मैं टिकट करवाकर भेज देता हूं आपलोग आने की तैयारी कीजीए–कहकर निशांत ने फोन काट दिया।

माला.. निशांत को देखें जा रही थी…जिस बेटे ने आज तक ऊंची आवाज में अपने मां बाप से बात नहीं की थी इतना कुछ बोल गया…शायद क्रोध में या शायद अत्यधिक दुख में,या शायद माता पिता का भाई के प्रति अत्यधिक झुकाव देखकर या फिर उनका “स्वार्थ” देखकर…



क्या देख रही हो माला…कहा जाता है कि माता पिता भी जब दुष्ट हो जाएं तो संतान को उनका परित्याग कर देना चाहिए… मैं तो अभी भी उन्हें साथ रखने को तैयार हूं..और अगर मेरे पास आकर रहेंगे मेरे माता पिता बनकर तो उनका मान सम्मान और इज्ज़त भी करता रहुंगा,पर हां….अब ये “बड़ा बेटा एटीएम मशीन बनकर नहीं रहेगा” सिर्फ पैसे देते लेते हमारे रिश्ते भी भावशून्य हो रहे हैं…इसके लिए मुझे बदलना होगा…. रिश्तों को “स्वार्थ” की बलि वेदी पर कुर्बान होते नहीं देखना है मुझे…इसके लिए इतना स्वार्थी होना तो बनता है मेरा।

#स्वार्थ 

मीनू झा

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