स्वाभिमान – के कामेश्वरी

पल्लवी अपने कमरे में कल की एम सेट की परीक्षा की तैयारी में लगी हुई थी । वह अपने माता-पिता की बहुत ही होनहार बेटी थी । दसवीं कक्षा में टॉपर रही थी । उसे किसी भी हालत में इंजीनियरिंग कॉलेज में दाख़िला लेना था इसलिए वह रात को भी जगकर जी जान से पढ़ाई कर रही थी । 

पल्लवी को रह रह कर शाम की घटना याद आ रही थी।  वह उसे जितना भुलाने की कोशिश कर रही थी उतना ही वह उसे याद आ रही थी। हुआ यह था कि वह एम सेट कोचिंग के लिए एक इन्स्टिट्यूट में जाती थी । वहीं पर कोचिंग के बाहर एक लड़का अपने दोस्तों के साथ मिलकर आने जाने वाली लड़कियों पर फब्तियाँ कसते रहता था। कोई भी उस की बातों पर ध्यान नहीं देता था। इन्स्टिट्यूट के हेड को पता चला था तो उन्होंने पुलिस कंप्लेन दर्ज करा दी। पुलिस ने उसे धमकी देकर छोड़ दिया था क्योंकि वह एक बहुत बड़े रईस ख़ानदान का वारिस था। उसे मालूम चल गया था कि इन्स्टिट्यूट के हेड से शिकायत मैंने ही की थी । उस दिन से मेरे पीछे पड़ गया था कि शादी करूँगा तो तुमसे ही करूँगा अपने माता-पिता को बता देना । माता-पिता को बताकर उन्हें परेशानी में नहीं डालना चाहती थी इसलिए उन्हें कुछ नहीं बताया था । 

आज शाम को तो हद ही हो गई थी कि वह मेरे पास आकर मुझे धमकी देने लगा था कि अगर मुझसे शादी के लिए हाँ नहीं करोगी तो मैं तुम्हारे चेहरे पर एसिड डाल दूँगा ताकि तुम अपने चेहरे को आईने में भी देखने के लिए डरोगी । अब सोच लो तुम्हारी हाँ है या न ।

पल्लवी सब कुछ भूलकर पढ़ाई पर ध्यान लगाना चाह रही थी कि किसी तरह कल की परीक्षा पास कर लूँ जिससे अच्छे कॉलेज में दाख़िला हो जाए । 




सबेरा हो गया वह जल्दी से तैयार हो गई पिताजी उसे कॉलेज में छोड़ने गए थे और कहा कि मैं बाहर खड़ा हूँ परीक्षा ख़त्म होते ही हम वापस चलेंगे । वह खुश हो गई थी कि पिता के रहने से वह आसपास भी नहीं आएगा । 

जैसे उसने सोचा वैसे ही परीक्षा लिखकर वह बाहर खड़े पिता के साथ घर आ गई। वह खुश थी कि उसने परीक्षा अच्छे से लिखा है। अब तो इन्स्टिट्यूट भी नहीं जाना है तो उसने घर से निकलना बंद कर दिया था । रिज़ल्ट घोषित कर दिया गया था और पल्लवी को रेंक के मुताबिक़ अच्छे कॉलेज में दाख़िला मिल गया था । 

माता-पिता कॉलेज और इन्स्टिट्यूट के हेड भी उसके रेंक को देख कर खुश हो गए थे । पिताजी ने कॉलेज में फ़ीस भी जमा कर दिया था । पल्लवी सपनों की दुनिया में खोई हुई थी कि वह इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने के लिए जा रही है।  वह फोन पर अपनी सहेली से बातें कर रही थी कि बाहर गेट के पास शोर सुनाई दिया था । माता-पिता दरवाज़ा खोलकर बाहर आए तो देखा वह लड़का जिसका नाम संजय था शराब पीकर आ गया था और ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था कि पल्लवी मैंने तुम्हें कुछ समय दिया था पर तुमने उसका जवाब नहीं दिया है इसलिए मैं आ गया हूँ शादी तो तुम्हें मुझसे ही करनी है वरना एसिड तुम्हारे चेहरे पर डाल देता हूँ बाहर निकल कर आजा मेरे साथ पंडित भी है । मुहल्ले के सारे लोग बाहर निकल कर आ गए थे । जितनी मुँह उतनी बातें लड़के को तो कोई कुछ नहीं कहते हैं सारा दोष लड़की के मत्थे मढ़ दिया जाता है । पल्लवी के माता-पिता ने उस लड़के और लोकलाज से डर कर दरवाज़ा बंद कर लिया था । 

संजय ने कहा कि डरकर घर में दुबक कर बैठ गई हो पल्लवी कल फिर मैं आऊँगा और तुम्हारी हाँ सुनकर ही जाऊँगा कहते हुए चला गया । 




पल्लवी रोने लगी थी क्योंकि कल उसके कॉलेज का पहला दिन था। संजय कुछ भी कर सकता था पुलिस में उसकी इतनी पहचान थी कि वहाँ कंप्लेन दर्ज कराना भी व्यर्थ था। उस दिन रात को घर में खाना नहीं बना था । माँ पिताजी भी चिंतित थे । पल्लवी रोते रोते सो गई थी मालूम नहीं सुबह का आलम क्या होगा सोचते हुए । 

पल्लवी सुबह उठकर फ्रेश हो कर बाहर आई तो देखा बैठक में सूटकेस रखे हुए हैं । माँ रसोई से उसके लिए कॉफी लाती है और कहती है पल्लवी जल्दी से तैयार हो जा हम लोग तुम्हारे चाचा के पास नैनीताल जा रहे हैं । कोई भी सवाल जवाब नहीं करना मैंने तुम्हारे कपड़े भी रख दिए हैं पापा केब लेकर आ रहे हैं । पल्लवी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कॉलेज का पहला दिन था और हम शहर से दूर जा रहे हैं । माँ की बात मान कर वह तैयार हो कर आ गई थी । 

पिताजी ने घर के अंदर आते ही बिना कुछ कहे सारे सूटकेस केब में रख दिया था। माँ पल्लवी को लेकर केब में बैठ गई थी। पिता ने घर पर ताला लगा दिया और केब में बैठ गए थे । केब एयरपोर्ट की तरफ़ भागी जा रही थी । किसी ने भी एक दूसरे की तरफ़ न देखा न ही बात किया । एयरपोर्ट पर उतकर सामन लेकर सारी फॉरमालटीस पूरी की और सही समय पर फ़्लाइट ने उड़ान भरी थी । 

नैनीताल पहुँचते ही चाचा जी कार लेकर आ गए थे तो हम सब घर पहुँच गए थे। कुशल मंगल पूछा गया चाय पीने के बाद असली मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई । पल्लवी से जब चाचा ने पूछा तो उसने बिना कुछ छुपाए सब कुछ सही सही बता दिया था । 

पल्लवी और उसके माता-पिता तीनों ने अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया था । दो दिन बाद ही पल्लवी को देखने लड़के वाले आए जो चाचा के जिगरी दोस्त थे । लड़का सृजन आस्ट्रेलिया में नौकरी करता था । उन्हें चाचा ने सब बता दिया था इसलिए बहुत ही कम लोगों के बीच इनकी शादी कर दी गई थी और पल्लवी सृजन के साथ अपने सपनों को रौंदते हुए आस्ट्रेलिया चली गई । 

माता-पिता  वापस घर आ गए थे। पल्लवी के साथ न होने के कारण किसी ने भी कुछ नहीं कहा था । संजय भी अब इनकी घर की तरफ़ नहीं फटका वह तो सिर्फ़ इन्हें डरा रहा था । पिताजी ऑफिस चले जाते थे और माँ घर के कामकाज देख लेती थी । पल्लवी से बात हो जाती थी । सृजन बहुत ही अच्छा लड़का था । 

पल्लवी की शादी हुए पंद्रह साल हो गए थे और इतने सालों बाद वह अपनी बेटी को लेकर इंडिया पहुँची। वह अपना सामान लेने के लिए कन्वेयर बेल्ट के पास खड़ी थी यहाँ आते ही उसके दिल में एक हूक सी उठी थी । उसे अपने सपने याद आए वह दिन याद आया जब उसके स्वाभिमान की धज्जियाँ उड़ी थी । विचारों में खोई पल्लवी को लगा किसी ने उसके पैरों को पकड़ लिया है देखा तो पाँच साल की बच्ची थी जो अपने माता-पिता से छिपकर भाग रही थी। 

रिया कहाँ हो पुकारते हुए उसके पिता उसके पीछे आए उसे देखते ही पल्लवी डर गई थी रिया के पिता भी पल्लवी को देख कर रुक गए थे वह और कोई नहीं संजय था उसने पल्लवी को देख कर कहा पल्लवी मुझे माफ़ कर दो ना । 

।पल्लवी ने कुछ नहीं कहा तभी पीछे से एक महिला भी आई संजय रिया मिली कि नहीं ? संजय के पास रिया को देख कर कहा रिया कितनी बार तुमसे कहा था कि हाथ छोड़कर नहीं जाना सुनती नहीं हो । 

संजय ने पल्लवी से कहा पल्लवी यह मेरी पत्नी सुहानी है पल्लवी ने सर हिलाकर अभिवादन किया परंतु वह अभी संजय को देख वह शॉक में थी ।उसकी सोच में ख़लल डालने के लिए पल्लवी की बेटी शिवानी आई माँ चलिए सामान मैंने कलेक्ट कर लिया है । पल्लवी बिना कुछ कहे वहाँ से बेटी के साथ चलने लगती है पोट्रर सामान लेकर पीछे आ रहा था ।

पल्लवी ने सोचा कितनी आसानी से माफी माँग रहा था ।उसे याद नहीं है कि उसके कारण उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँची थी । 

वह तो अच्छा था कि सृजन बहुत ही अच्छा पति है और उसकी पढ़ाई की तरफ़ झुकाव को देख कर उसे आगे पढ़ाने का फ़ैसला किया था । उसने पढ़ाया है इसीलिए आज वह एक बहुत बड़ी वकील बन गई है । उसने सोचा कि उस समय मेरे साथ मेरे माता-पिता नहीं थे।  वे शायद संजय की हरकत से डर गए थे या उसका सामना नहीं कर सकते थे कुछ भी कारण हो सकता है इसलिए शादी कर देना उचित समझा परंतु मैं अपनी बेटी का साथ दूँगी उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचने नहीं दूँगी । ऐसा पल्लवी ने जब मन में  ठान लिया था तो उसने अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और बड़े ही स्वाभिमान के साथ अपने कदम आगे बढ़ाकर बाहर खड़ी टेक्सी में बैठ जाती है । 

दोस्तों हमें दूसरों से डरकर अपने बच्चों को कैसे सजा दे सकते हैं । उनके स्वाभिमान की रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है । 

स्वाभिमान 

स्वरचित मौलिक 

के कामेश्वरी

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