स्वाभिमान – सरिता सिंह 

#स्वाभिमान

“समझते क्या हो प्रकाश ? क्या मेरे प्रेम,मेरे विश्वास की कोई कीमत नहीं ,तुम्हारे लिए?” “क्या नहीं किया मैंने तुम्हारे लिए?अपने घर वालों तक से दुश्मनी ले ली। सबकुछ किया तुम्हारे लिए।क्या इस दिन के लिए?” सलोनी ये कहकर रोने लगी। प्रकाश सलोनी को पहली बार ऊंची आवाज़ में बातें करते देख तिलमिला सा उठा।उसे सलोनी से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी। उसने सलोनी पर चिल्लाते हुए कहा,” देखो सलोनी ,मैं मानता हूं कि हमारी शादी हमारे परिवार वालों की रजामंदी से नहीं हुई है, मगर आखिर हैं तो वे हमारे अपने ही।फिर उनसे पैसे मांगने में कैसी शर्म। मैंने भी तो देखो अपने घर वालों से सुलह कर ली ना।फिर तुम्हें क्या प्राब्लम है?” प्रकाश!तुम्हारी तो कभी भी कोई अनबन थी ही नहीं अपने परिवार से।तुमने मुझसे झूठ कहा था

सबकुछ।तुमने और तुम्हारे परिवार ने मेरे सामने नाटक किया था,ताकि मैं भावनाओं में बहकर तुमसे शादी कर लूं।भला जो परिवार तुमसे इतने गुस्से में था,वो शादी के अगले दिन ही मुझे पैसों के लिए ताने कैसे देने लगा ? और तुमसे इतने प्यार से पेश कैसे आने लगा? मैं ही पागल थी,जो तुम्हारे बहकावे में आ गई। फिर भी चार साल मैंने इस उम्मीद में गुजार दिए कि तुम मेरे प्यार को समझते हो।अगर तुम ठीक हो तो तुम्हारे परिवार को तो मैं संभाल ही लूंगी।मगर आज तुम भी वही कर रहे हो?”सलोनी अपनी सिसकियां और गुस्सा दोनों को काबू करते हुए बोली। प्रकाश इतनी चुभती हुई बातें बर्दाश्त नहीं कर पाया और सलोनी के गालों पर एक ज़ोरदार तमाचा मारते हुए बोला,”ज्यादा तेवर मत दिखाओ।अगर पैसे नहीं ला सकती तो चली जाओ यहां से अपनी इस मनहूस बेटी को लेकर।”




और तेज़ कदमों के साथ वह ऑफिस के लिए निकल पड़ा। आज सलोनी को अहसास हो रहा था कि अगर चार साल पहले उसने उस मल्टी नेशनल कम्पनी में जॉब कर लिया होता तो शायद ये सब ना सहना पड़ता। उसके मां-बाप ने उसको कितना समझाया था कि पहले अपना कैरियर बना ले, फिर शादी कर लेना।मगर उसने अपने माता-पिता की एक न सुनी।प्रकाश के प्यार में वह इतनी अंधी हो चुकी थी कि उसे प्रकाश के सिवा कुछ न दिख रहा था। पता नहीं प्रकाश ने भी क्यों नहीं उसे उसके कैरियर के प्रति प्रोत्साहित किया।शायद प्रकाश का मर्दानगी वाला अहम हमेशा सलोनी को आगे बढ़ने से रोकता था।वैसे भी वह अक्सर सलोनी को यही जताता था

कि नौकरी उसके बस की बात नहीं,ये सिर्फ मर्दों को शोभा देती है। हालांकि सलोनी काफ़ी पढ़ी-लिखी लड़की थी ,मगर उसके लिए उसके रिश्ते अपनी कैरियर से ज़्यादा महत्व रखते थे। इसलिए उसने हमेशा प्रकाश के तानों को नजरंदाज किया।मगर आज की हरकत ने सलोनी को अंदर से हिला दिया। मन में बेचैनी और आंखों में आंसू लिए उसने अपनी पुरानी फाइल्स को टटोलना शुरू किया और उसे उसी कंपनी का कॉन्टैक्ट नंबर और मेल आईडी मिला जिससे उसे चार साल पहले ऑफ़र आया था।उसने बिना कुछ आगे-पीछे सोचे उस नंबर पर कॉल लगाया। बातचीत होने के बाद उसने अपना सामान पैक किया और अपनी बेटी के साथ टैक्सी पर सामान रख चल दी। प्रकाश शाम को ऑफिस से लौटा तो पड़ोसी ने उसे घर की चाबी और एक लिफाफा थमाते हुए कहा कि सलोनी ने उसे देने को कहा है।प्रकाश अचंभित था।घर का ताला खोलने से पहले उसने लिफाफे को खोला और उसमे रखे पत्र को पढ़ना शुरू किया। लिखा था ,” प्रकाश तुमने मुझे आज एक और सबक सिखाई और वो है अपने स्वाभिमान से समझौता न करना।मैं अब तक तो इस अभिमान में थी कि तुमसे शादी करके मैंने सही फैसला किया है,मगर आज मैं अपने स्वाभिमान के लिए तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं।

अपने अभिमान और स्वाभिमान में मैंने अपने स्वाभिमान को चुना है।अपना खयाल रखना।” प्रकाश ने चुपचाप दरवाज़े का ताला खोला और धीमे कदमों से अपने कमरे में जाकर गहरी सोच में बिस्तर पर लेट गया।

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