स्वाभिमान – कमलेश राणा

कार गांव की सड़क पर सरपट भागी जा रही थी और उससे भी अधिक तेजी से विचारों का कारवां मेरे दिमाग में दौड़ रहा था। मेरी यादों में गांव की तस्वीर बिल्कुल वैसी ही थी जैसी 15 साल पहले मैं यहाँ आई थी ।

आज बहुत दिनों बाद गांव आना हुआ जीवन की आपाधापी में ऐसे बहुत सारे कार्य होते हैं जो हम चाह कर भी नहीं कर पाते पर गांव की मिट्टी की सौंधी खुशबू हमेशा मुझे अपनी जन्म भूमि की ओर खींचती। चूँकि अब भाई भी शहर में ही रहते हैं तो बस छुट्टियों में उन्हीं के पास जा कर आ जाते हैं। इस बार चचेरे भाई की शादी पर चाचा जी और चाची जी ने बहुत आग्रह किया तो मेरा भी मन खेतों और बागों में घूमने और सबसे मिलने के लिए उतावला होने लगा।

जब बच्चों से कहा तो वह बोले कि वहाँ टूटे फूटे घरों में कोई सुविधा भी नहीं होगी कैसे रहेंगे वहां तो नेट भी नहीं आता होगा, बिना मोबाइल के तो एक दिन काटना भी मुश्किल होता है क्योंकि उनकी नज़रों में गांव की यही छवि थी जो वे टी वी पर देखते या किताबों में पढ़ते थे।ऐसा करो आप ही चली जाओ पर जब मैंने बहुत जोर दिया कि जब जाओगे नहीं तो किसी को जानोगे कैसे। इस बात पर मन मसोस कर इस शर्त पर जाने को तैयार हुए कि अगर मन नहीं लगा तो दूसरे दिन ही वापस आ जायेंगे।

जैसे ही हम मुख्य सड़क से गांव की ओर मुड़े तो देखा बड़ी अच्छी सड़क बन गई है । दोनों तरफ सरसों के पीले फूल धरती की सुंदरता और संपन्नता की कहानी बयान कर रहे थे मैंने बच्चों पर नज़र डाली तो देखा वे भी इस नयनाभिराम सौंदर्य को बिना पलक झपकाए नैनों में बसा लेने को आतुर थे ऐसा लग रहा था जैसे चारों तरफ सोना बिखरा हुआ हो। मटर के गुलाबी बैंगनी फूल और गेंहूँ की सुनहरी बालियां सचमुच धरती के वैभव में चार चाँद लगा रही थी।

बच्चे बोले.. मम्मी गांव इतने सुंदर होते हैं हमने तो कभी सोचा ही नहीं था। घर पहुंचे तो सबने बहुत आदर के साथ हमारा स्वागत किया। मैं देख कर हैरान थी अब बैठक में सोफा और दीवान ने खाटों की जगह ले ली थी। रसोई में फ्रिज़, गैस था तो बाथरूम में गीजर, वाशिंग मशीन जैसी सभी सुविधाएं मौजूद थी । नेट के लिए वाई फाई लगा हुआ था यानि जो कुछ बच्चे सोचते थे उनकी कल्पना से भी परे था यह विकास और गांव की छवि भी।

बच्चों को खुश देखकर मैंने भी राहत की सांस ली।




विजय नहीं दिख रहा चाची जी.. मैंने पूछा

वो कल आयेगा बिटिया उसकी कल की फ्लाइट है

क्यों कहाँ गया है वह

अरे तुम्हें पता नहीं वह अमेरिका गया है MS करने

और मिली भी नहीं दिख रही

वह ओलंपिक में खेलने गई है सिडनी.. अब तुम्हारी बहन बहुत बड़ी खिलाडी बन गई है कुश्ती की

मुझे अचरज के झटके लग रहे थे और बच्चे मुँह फाड़े उन्हें देखे जा रहे थे।

किसानों की यह छवि उनकी सोच के बिल्कुल विपरीत थी।

बिट्टो अब बहुत स्वाभिमान और सुविधा की जिंदगी जी रहे हैं हम यह सब विज्ञान की उच्च तकनीक से खेती करने का परिणाम है अब हम वर्ष में चार चार फ़सल ले लेते हैं तो फिर क्यों मर मर कर जियें।

अब हमारे अंदर इतनाअत्मविश्वास और एकजुटता है कि अपने अधिकारों और

स्वाभिमान की रक्षा के लिए सालों सरकार से लडाई भी लडी है।

अब हम दीन हीन लाचार नहीं बल्कि सच में ही स्वाभिमान से भरपूर अन्नदाता हैं। इस प्राकृतिक सौंदर्य, शुद्ध हवा, पानी जिसके पास हो उससे अधिक भाग्यशाली कौन होगा।

दूसरे दिन मैंने जब बच्चों से वापस शहर चलने के लिए कहा तो वे समवेत स्वर में बोले.. अभी नहीं मम्मा कुछ दिन रुक कर चलेंगे न और हर छुट्टी में अब यहीं आया करेंगे। यहाँ हमें बहुत कुछ सीखने को मिला, यह भी कि मेहनत की कमाई से ही स्वाभिमान के साथ सर उठा कर जिया जा सकता है।

#स्वाभिमान

स्वरचित एवं मौलिक

कमलेश राणा

ग्वालियर

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