सकून – रीटा मक्कड़

आज पूरी रात उसने आंखों में ही गुजार दी थी।   जब भोर के उजाले की किरणें खिड़की में से अंदर आती दिखी, और चिड़ियों के चहचहाने की आवाज कानों में पड़ी तब उसे सुबह होने का आभास हुआ। उठ कर जब मुँह धोने लगी तो शीशे में देखा आंखें सूजी पड़ी थी । आंखों के नीचे काले गढ़े और सूना सा चेहरा उसकी  बीती ज़िन्दगी की कहानी खुद ब खुद ही बयान कर रहे थे।

एक तो रतजगा और ऊपर से रात भर बीती ज़िन्दगी की बातें याद कर कर के आंखों के कोरों से झर झर आंसू बहते रहे थे। सिर जैसे दर्द के मारे फटा जा रहा था

वापिस आ कर वो फिर से बिस्तर पर लेट गयी। जैसे ही उसने आंखें बंद की उसको एक अजीब से सकून का अहसास हुआ।  शरीर और दिमाग चाहे थका हुआ था लेकिन मन एक दम शांत था आज। जैसे एक रोते हुए बच्चे को अपनी माँ की गोद मे आते ही सकून भरी नींद आने लगती है वैसे ही आज उसको भी महसूस हो रहा था।

आंखे बंद करते ही पिछली ज़िन्दगी एक चलचित्र की भांति उसकी बन्द आंखों के आगे चलने लगी। कितने सपने लेकर वो आयी थी इस घर मे शादी करके। माँ बाप ने कितने अरमानों से अपनी बेटी को डोली में विदा किया था और शादी भी अपनी हैसियत से बढ़कर की  कि हमारी लाडली हमेशां अपने घर मे सुखी रहेगी। 

पहली रात को ही सारे सपने चूर चूर हो गए जब वो दुल्हन बनी अपने सपनो के  राजकुमार का इंतजार कर रही थी और उस राजकुमार ने शराब से टल्ली हो कर गिरते पड़ते कमरे में प्रवेश किया।  वो तो उसे इस रूप में देख कर हक्की बक्की रह गयी ।

सारी रात उसके शराब की बदबू से भरे खराटे सुनती रही औरआंखों से जार जार आंसू बहते रहे।  उसको खुद पर विश्वास था कि वो एक दिन अपने पति को सुधार लेगी और सही राह पर ले आएगी। लेकिन उसकी हर कोशिश , हर त्याग ,समर्पण सब विफल होते गए क्योंकि पति की शराब की लत दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही थी।  सिर्फ एक यही बुरी आदत ही नही, दूसरी औरतों के पास जाना, जुआ खेलना हर वो बुरी आदत उसमे थी जिससे उसने शुरू से नफरत की थी।


दिन को बहुत बार उसने प्यार से भी समझाने का प्रयास किया। बहुत बार उसने वादे किए, कसमे खाई कि आगे से हाथ नही लगाऊंगा।लेकिन जैसे ही रात का अंधेरा घिरने लगता उसके  पेट मे जैसे शराब के कीड़े खलबली मचाते ओर वो उस समय किसी की भी नही सुनता।   शराब पी कर  आकर अपनी सारी भड़ास उस पर निकालता।गन्दी गन्दी गालियां निकालता । दिन को ससुराल वालों के जुल्म सहती और रात को पति के हाथों तार तार होती।  उसका तन मन सब लहुलुहान हुए पड़े थे।

जब दो प्यारे बच्चे ज़िन्दगी में आये तो उसकी आस बंधी थी कि शायद बच्चों को देखकर ही कुछ सुधार हो जाये लेकिन उसकी किसी भी आदत में सुधार नही हुआ तो परिवार वालों ने भी जिमेदारियाँ लेने से हाथ खींच लिया और उन्हें अलग रहने को बोल दिया। इन सालों में उसके पति ने कभी भी उसको पति पत्नी का  असली रिश्ता  और प्यार क्या होता है महसूस ही नही करवाया।

और अब तो उसके अपने मन मे धीरे धीरे पति के लिए प्यार और  भावनाएं खत्म होती जा रही थी।शराब का असर  अब उसके शरीर पर होने लगा था। जब एक दिन डॉक्टर ने बताया कि उसकी दोनो किडनियां खराब हो चुकी हैं और लिवर भी डैमेज हो चुका है।

उसने अपने पति नाम के प्राणी को बचाने के लिए जो भी जमा पूंजी थी वो भी लगा दी थी । उसके शरीर मे अब दम नही था लेकिन रात को गालियां निकालने की आदत नही छूटी ।वो कहते हैं न कि रस्सी जल गई पर बल नही गया और अब उसका मन पति के लिए वितृष्णा से  भरता जा रहा था। बच्चों के मन में भी बाप के लिए कोई प्यार या इज्जत नही बची थी क्योंकि उन्होंने बचपन से ही माँ को बाप के हाथों बेइज्जत होते देखा था।

और पाँच दिन पहले वो आखिर इस दुनिया को अलविदा कह कर उसको विधवा करके चला गया था। सभी रिश्तेदारों ने बहुत कोशिश की उसको रुलाने की, लेकिन उसके तो जैसे आंसू ही सूख गए थे। बाकी रिश्तेदार ओर परिवार वालों की आंखों से चाहे दिखावे के आंसू ही बह  रहे थे लेकिन उसकी आंख से एक कतरा भी नही गिरा

और आज उसी बिस्तर पर उसको आंखें बंद करते ही अजीब सा सकून महसूस हो रहा था ।ऐसा लग रहा था कि वो बहुत सालों से सो नही पायी थी और आज उसको बहुत  गहरी नींद आ रही थी।

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

 

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