सुकून – सीमा पण्ड्या

प्रिंसिपल साहब के कक्ष में सांस्कृतिक गतिविधियों को लेकर एक बैठक चल रही थी। बैठक में छात्रसंघ के पदाधिकारी, कुछ लेक्चर्स और प्रोफ़ेसर्स सम्मिलित थे।

प्रिंसिपल साहब के पास एक फ़ोन आया उन्होंने कहा – “ ओह नो, बहुत ही दुखद”!

सभी जिज्ञासु दृष्टि से देखने लगे वे बोले- “राजमल जी नहीं रहे”।

“ओह”- सभी के मुँह से निकला।

एक हाल ही में स्थानांतरित होकर आई लेक्चरर जो कि राजमल जी को जानती नहीं थीं, चहकते हुएबोली- “अरे वाह, इसका मतलब शोकसभा औंर फिर छुट्टी”?

प्रिंसिपल बोले-“ नही मैडम, सरकारी नियमानुसार सेवानिवृत्त कर्मचारियों के देहांत पर शोक सभा औरछुट्टी नहीं होती”।

वे बोलीं-“ ओह नो..”  वे उदास हो गयीं।

ख़ैर , बैठक पश्चात सभी अपने अपने कार्य में व्यस्त हो गए।

थोड़ी देर बाद ही छात्रसंघ के पदाधिकारी पुनः प्रिंसिपल सर के कक्ष में आए, उनके साथ ढेर सारे छात्रोंका समूह भी था। वे बोले-“ सर राजमल जी के लिये शोक सभा तो अवश्य होगी”।

प्रिंसिपल-“ भाई मुझे भी दुख है राजमल जी के निधन का, लेकिन मैं नियमों में बंधा हूँ, छुट्टी नहीं करसकता”।

छात्र नेता- “ सर छुट्टी का हम नहीं बोल रहे, हम तो सिर्फ़ शोकसभा का बोल रहे हैं चाहे आप कॉलेजटाईम ख़त्म होने के बाद करें “!




छात्रों की ज़िद देख कर प्रिंसिपल बोले- 

 “ चलिये ठीक है शाम को पॉंच बजे होगी शोक सभा”।

मेरी आँखों के आगे राजमल जी का चेहरा घुमने लगा। 

सरल हृदय के धनी राजमल जी यों तो कॉलेज में लेब असिस्टेंट के पद पर नियुक्त थे। लेकिन उनकीख़ासियत यह थी कि वे विभाग के किसी भी कार्य को  मना नही करते थे। लाइब्रेरियन नहीं आता तोलाईब्रेरी सम्हाल लेते। ऑफिस असिस्टेंट नही आता तो ऑफिस सम्हाल लेते, टाइपिस्ट नहीं आता तोटाइपिंग कर देते। उनकी इस खूबी के कारण कुछ कर्मचारी उनसे नाराज़ रहते थे कि क्यूँ बेकार मेहनतकरते रहते हो? तनख़्वाह तो उतनी ही मिलेगी और कुछ कर्मचारी स्वयं के काम के प्रति भी लापरवाहीबरतते, सोंचते राजमल जी हैं तो सही, कर लेंगे ।

मैं इस कॉलेज में मै दो वर्ष पूर्व ही स्थानांतरित हो कर आई थी। कई बार उनसे अच्छी लंबी चर्चा भीहोती।जानने लगी थी उनके सरल हृदय को। यही समझ आया था कि विद्यार्थियों को परेशान होतेदेखना उन्हें बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था।इसीलिए कोई कर्मचारी यदि विद्यार्थी के काम कोटालता तो वे स्वयं ही उस कार्य को कर देते।

विद्यार्थियों को भी किसी भी प्रकार की कोई समस्या आती तो वे राजमल जी के पास ही पहुँचते और वेभी जुट जाते समस्या के निदान में । कई बार मैं उन्हें कहती राजमल जी आप तो चलता फिरता “ विद्यार्थी कल्याण विभाग” हैं ।




वे हँसते हुए कहते-“ अरे मैडम जी , इन छात्रों की वजह से ही तो अपनी रोज़ी रोटी चल रही है। इनकाध्यान तो रखना ही पड़ेगा ।

एक दिन मैं सुबह कॉलेज पहुँची तो देखा कॉलेज के बगीचे के एक कोने का बड़ा हिस्सा जो कि कईवर्षों से बंजर पड़ा था वहाँ राजमल  जी कुदाली से गड्ढे खोद रहे हैं।आज तो मुझे भी लगा कि राजमलजी तो वाक़ई हद ही करते हैं । तृतीय तो तृतीय,अब माली, जो कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी होता है, उसका भी काम करने लगे?  इसमें भला विद्यार्थियों का क्या हित होगा? 

मैं गाड़ी पार्क कर उनके पास पहुँचीं । मुझे देख बोले-“ अरे मैडम जी, अच्छा हुआ आप आ गये। मैंआपको बुलाने ही वाला था”।

मैंने देखा, वहाँ बहुत सारे पौधे रखे थे, साथ ही बहुत सारी खाद, मिट्टी और भी कई चीजें रखी थीं ।

वे बोले-“ मैडम जी देखो, तीन जामुन के, तीन आम के, चार चीकु के, दो आँवले ,दो अनार के पौधे मैंइस एरिया में लगाने के लिये लाया हूँ“

ये कोना बंजर पड़ा है, सोंचा यहीं लगा देता हूँ। बस साल भर इन पौधे की अच्छी देख-रेख और सेवाकर दी ना तो फिर तो इनके देख रेख की भी ज़रूरत नहीं ।हरा-भरा हो  जाएगा ये कोना और तीन चारसाल में तो फल आ जाएँगे ”।

मैंने कहा-“ लेकिन ये काम तो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी माली का है , इसे आप क्यूँ कर रहे हैं”?

वे बोले-“ अरे मैडम जी, माली की भी कोई श्रेणी होती है क्या? माँ बच्चे को जन्म देती है, पालतीपोसती है, ध्यान रखती है, कभी वो सोंचती है क्या कि वो किस श्रेणी के कर्मचारी का काम कर रही हैं? बताओ, आपने कभी सोंचा”?

मैं निरुत्तर थी।




मैंने कहा- “चलो ठीक है, पर आप जो ये सब पौधे और सामान लाए हैं ये कम से कम ढाई-तीन हज़ारका सामान तो दिख रहा है, तो ये पैसा आपने क्या प्रिंसिपल  

साहब से कह कर कॉलेज फंड में से निकलवाया”?

वो बोले-“ नही , प्रिंसिपल साहब के पास तो मैं गया ही नहीं, ये तो मैं ही ले आया अभी डी ए काअरियर मिला था ना! उसमें से”।

मैं नतमस्तक थी उनकी बात सुन कर। कल ही कॉलेज के एक सीनियर प्रोफ़ेसर जिनकी कि तनख़्वाहक़रीब तीन लाख मासिक है, उनको प्रिंसिपल से कहते सुना था कि कॉलेज फंड से पेन मँगवाइये,छात्रोंकी कॉपियाँ निजी पेन से जाँचनी पड़ रही है।

ख़ैर , मैंने बात आगे बढ़ाई -“ पर राजमल जी, ये तो बताइये कि दो साल बाद आप तो सेवानिवृत्त होजाएँगे फिर आपको क्या फ़ायदा ये पेड़ लगाने से? फल तो चार साल बाद आएँगे। 

वे बोले- “मेडम जी , वो ही तो बात है। देखो, दो साल बाद में सेवानिवृत्त हो जाऊँगा तब तक इनकीअच्छी सेवा कर दूँगा! ये पेड़ काफी बड़े हो जाएँगे , फिर जब भी मैं कभी इधर से निकलूँगा तो छात्र-छात्राएँ मुझे इन पेड़ों के नीचे सुकून से बैठे हुए  या फल खाते हुए दिखाई देंगे और ये सब देख कर मुझेबहुत सुकून मिलेगा”। 

आश्चर्य चकित थी मैं!

दूसरों के सुकून में सुकून महसूस करने वाले राजमल जी के विचारों के प्रति  मेरा मन दंडवत् हो गयाथा।




आज उनकी खबर सुन कर सारा दिन दिमाग़ में वे ही घुमते रहे।

शाम के पॉंच बजने वाले थे। प्रिंसिपल और हम सभी अध्यापक शोकसभा के लिये हॉल में जाने लगेतो एक छात्र ने कहा- “ सर शोकसभा बाहर रखी गयी है”।

बाहर जामुन और आम से लदे हुए पेड़ों के नीचे छात्रों का बड़ा भारी हुजूम राजमल जी के प्रति छात्रोंकी दिल से की हुई इज़्ज़त को दर्शा रहा था।

छात्रों द्वारा कुछ गड्डे खोद के तैयार कर दिये गये थे जिनमें प्रिंसिपल सर के हाथों वृक्षारोपण करवायागया एवं बीचोंबीच एक बोर्ड पर लगा था आवरण हटाया गया। बोर्ड पर लिखा था “राजमल स्मृतिवाटिका “। 

तत्पश्चात् दो मिनिट के मौन के साथ शोकसभा संपन्न हुई ।

आज राजमल जी की आत्मा जरुर यहाँ से गुजरी होगी  और जब छात्रों के इतने बड़े हुजुम को अपनीयाद में इन फलों से लटालूम वृक्षों के नीचे देखा होगा , तो निश्चित ही बहुत सुकून के साथ स्वर्ग कोगयी होगी।

स्वरचित 

सीमा पण्ड्या 

उज्जैन म.प्र.

#इज़्ज़त

1 thought on “ सुकून – सीमा पण्ड्या”

  1. बहुत ही उम्दा और दिल को छूने वाली रचना

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