सुबह का भूला  – डॉ. पारुल अग्रवाल

 

संध्या जल्दी-जल्दी काम निबटाकर हॉस्पिटल के लिए निकलना चाहती थी क्योंकि आज डिलीवरी का काफ़ी जटिल केस आया हुआ था। हॉस्पिटल से कई बार फोन आ चुका था। वो निकल ही रही थी कि उसके मोबाइल की स्क्रीन पर उसकी सबसे प्यारी सखी का नंबर चमकने लगा। वैसे तो अभी उसके पास सांस लेनी की भी फुर्सत नहीं थी पर अपने सगे संबंधी और मित्रों के फोन वो व्यस्तता के बाद भी समयनुसार सुनने का भरसक प्रयास करती थी। 

ड्राइवर को गाड़ी निकालने का बोलकर उसने अपनी मित्र रंजना का फोन उठा ही लिया। रंजना जो उसकी बचपन की दोस्त थी। रंजना की आवाज़ में काफी चिंता और अवसाद झलक रहा था। आवाज़ से ही उसकी हालत को भांपकर उसने लंच समय में ही रंजना को हॉस्पिटल आने को कहा। 

हॉस्पिटल पहुंच कर जटिल डिलीवरी का केस निबटाने के बाद जैसे ही संध्या कमर सीधी करने के लिए बैठी ही थी तभी रंजना भी पहुंच गई और उसके साथ उसकी उन्नीस-बीस साल की बेटी भी थी। दोनों मां बेटी बहुत परेशान लग रही थी। 

संध्या ने रंजना से उसकी परेशानी जानने की कोशिश की, रंजना ने आंख में आसूं भरे हुए उसको बताया कि उसकी बेटी किसी लड़के के चक्कर में फंसकर मां बनने वाली है। उसके पति और उसकी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई है, उन लोगों को नहीं समझ आ रहा कि अब क्या करें? संध्या के पास तो इस तरह के बहुत केस आते थे पर बात इस बार उसकी प्रिय सहेली और उसकी बेटी की थी। उसने एक नज़र उस किशोरावस्था और युवावस्था के दोराहे पर खड़ी नवयुवती पर डाली।



 कितनी मासूमियत थी उस चेहरे पर, वो अपने बच्चे को किसी भी तरह दुनिया से बचाना चाहती थी पर उसके सामने सारी जिंदगी पड़ी थी। शरीर से भी अभी वो पूरी तरह परिपक्व नहीं थी। संध्या ने उसका चेकअप कराया , शरीर में हीमोग्लोबिन बहुत कम था। वो अभी खुद भी इतनी फिट नहीं थी कि उसका शरीर इस बच्चे का भार वहन कर सके। कुछ समझा बुझाकर मेडिकल नियमों के अंतर्गत संध्या ने उसके शरीर को और उसके मां बाप को इस परेशानी से मुक्ति दिला दी।

 पर बात यहीं खत्म नहीं हुई थी अब रंजना के पति अपनी बेटी की पढ़ाई लिखाई बंद करवा कर जल्द से जल्द उसकी शादी कर देना चाहते थे क्योंकि उनको लगता था कि अगर बिरादरी में किसी को भी ये सब पता चल गया तो उनकी बहुत बदनामी होगी और उनके परिवार का समाज में रहना मुश्किल हो जायेगा। उधर वो लड़की अपने किए पर बहुत शर्मिंदा थी बस एक मौका और अपने मां बाप से चाहती थी जिससे वो अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी हो सके। 

संध्या ने रंजना की बेटी को हॉस्पिटल से छुट्टी देने के बाद रंजना को उसके पति के साथ घर आने के लिए कहा। शाम को जब रंजना और उसके पति संध्या के घर पहुंचे तब संध्या ने उन लोगों को अपनी बेटी पर भरोसा करके एक मौका और देने की बात कही। पहले तो रंजना और उसके पति तैयार नहीं हुए फिर संध्या ने उन्हें अपनी कहानी सुनाई। संध्या ने बताया उम्र के इस नाज़ुक दौर में वो भी ऐसे ही एक लड़के के आकर्षण में फंस गई थी। वो तो उसके साथ रातों रात घर से बहुत सारा नकदी और जेवर लेकर भागने वाली थी। पर शायद उसकी किस्मत अच्छी थी कि उसके भागने से पहले ही उस लड़के को किसी चोरी के इल्ज़ाम में पुलिस पकड़कर ले गई थी।



 उसके पिताजी को उसके भागने की योजना का भी पता चल गया था पर उन्होंने उसको कुछ न कहकर अनजान बनते हुए रात को उसको घर से निकलने दिया था। उसके निकलते ही पिताजी उसके पीछे पीछे भी गए थे, हालांकि वो उनको नहीं देख पाई थी। फिर थोड़ी देर के इंतजार के बाद जब वो टूटने लगी थी तब उसके कंधे पर हाथ रखकर बड़े प्यार से बोले थे, बेटा घर वापिस चलें। उस दिन वो घर आकर अपने मां-बाप के गले लगकर फूट-फूट कर रोई थी। उसकी आंखें खुल गई थी भगवान समान जन्मदाता के होते हुए भी वो कितनी बड़ी गलती करने जा रही थी। वो तो एक तरह से सदमे में ही चली गई थी तब उसके माता पिता ने ये कहकर जीवन की नई राह दिखाई थी कि बेटा गलतियां सबसे होती हैं पर सबसे बड़ी बात है उनसे सबक लेना। 

जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ और नया जीवन शुरू करो। ये उसके मां बाप का ही भरोसा था जिसने उसके बहकते कदमों को थामकर  डॉक्टर बनने के अपने लक्ष्य को पूरा करने की हिम्मत दी थी। अभी उनकी भी बेटी बहुत छोटी है, माना उसकी गलती माफ़ी लायक नहीं है पर एक मौका तो उसको भी मिलना चाहिए। अब रंजना और उसके पति को संजना की बात थोड़ी ठीक लग रही थीं। शायद संध्या की बातों का ही असर था जो रंजना और उसके पति ने अपनी बेटी की शादी का विचार त्याग कर उसको आगे बढ़ने का एक अवसर और देने का निर्णय लिया।

दोस्तों कहते हैं कि किसी भी रिश्ते में विश्वास अगर एक बार खो जाए तो फिर वापिस दोबारा नहीं पनप सकता पर मेरे को लगता है कि कई बार बच्चों से उम्र के नाज़ुक पड़ाव पर  अक्सर कुछ गलतियां हो जाती हैं। तब, ऐसे में माता-पिता को हर हालत में बच्चे की तरफ खड़ा रहना चाहिए और उसमें अपना भरोसा बनाए रखना चाहिए नहीं तो एक जीवन के खिलने से पहले ही मुरझाने की पूरी पूरी संभावना हो जाती है। वैसे भी सुबह का भूला अगर सांझ को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते । आप लोगों की इस बारे में क्या प्रतिक्रिया है, मेरे को अवश्य बताएं।

#भरोसा

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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