स्त्री और फूल  – कमलेश राणा

आज सुबह जब फूल लेने गई,,बगीचे में तो देखा,,आज तो बहुत सारे फूल खिले हैं,,मन खुश हो गया,,अरे वाह!आज तो कान्हा जी बड़े सुन्दर लगेंगे इनसे सजकर,,

मैं फूल तोड़ने लगी तो सहसा एक फूल मेरी पकड़ सही न होने के कारण नीचे गिर गया,,,और एकाएक मैने उस फूल को उठा कर अलग कर दिया कि अब यह देवता को समर्पित न होगा,,,

पर दूसरे ही पल ख्याल आया कि महज धरती पर गिर जाने के कारण मैने उसे एक सुख से वंचित कर दिया ,,जबकि इसमें तो उसकी कोई गलती भी नहीं थी,,मेरी पकड़ ढीली होने के कारण ये छूट गया तो फिर इसे यह सज़ा क्यों??

एक तो मैने इसे पेड़ से अलग करके कष्ट दिया और फिर इसे नाकाबिल घोषित कर दिया,,मुझे एक जीवन के फैसले लेने का हक किसने दिया,,क्या वाकई मैं इसकी हकदार हूँ ???

 एकाएक याद आया कि एक स्त्री और फूल के जीवन में कितनी समानता है,,

आज सुबह मेरी एक स्टूडेंट ने वाट्सएप पर स्टेटस डाला,,जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया,,,

एक बेटी की शादी हर माता पिता बड़े अरमान के साथ हर तरह से योग्य वर ढूंढ़ कर करते हैं,,और अक्सर खुद से बेहतर घर देखते हैं कि बेटी को किसी चीज़ की कमी न हो,,,

लेकिन आगे चलकर यदि ससुराल में उसके साथ गलत हो ,,तो क्या माता पिता को अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेना चाहिए,,इसमें उस बेटी की क्या गलती है,,उसने तो आँख बंद करके आपके फैसले को शिरोधार्य किया,,,

शर्मा जी ने नेहा का विवाह एक संपन्न घर में किया,,समाज़ में अच्छा नाम है उनका,,दामाद गल्ले का व्यापार करते,,अच्छी-खासी जमीन जायदाद है,,कोई कमी नहीं,,,

लेकिन कुछ दिन बाद ही नेहा को समझ आने लगा कि जो दिखता है वो है नहीं,,बोलचाल की भाषा बहुत खराब,,आपस में ही गाली-गलौज करते,,महिलाओं की कोई इज्जत नहीं,,पैर की जूती समझते,,



यहाँ तक कि नेहा की आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए भी पैसा माँ बाप ही देते,,एक बेटा भी हो गया फिर भी व्यव्हार में कोई अंतर नहीं  आया,,,बल्कि अब तो बात-बात पर मारना पीटना और शुरू कर दिया,,इसी तरह 12 साल निकल गये,,

माँ – बाप से कहती,,तो वो यही कहते,,हमारे पास आ जाओ,,लेकिन नेहा यही कह देती और कुछ दिन देखती हूँ,,शायद सब ठीक हो जाये,,मैं आप पर बोझ नहीं बनना चाहती,,

आखिर उसे एक स्कूल में जॉब मिल गई,,सोचा अब सब ठीक हो जायेगा,,पर अब हालात और भी बिगड़ने लगे,,घर में घुसते ही लांछनो की बरसात होने लगती ,,ऐसे-ऐसे आरोप लगाते कि शरीफ इंसान कानों पर हाथ रख ले,,

औरत अकेले में सब बर्दाश्त कर लेती है पर जब उसके बच्चे और सारे परिवार के सामने हो तो तिलमिला जाती है,,

सफाई में एक शब्द भी बोलती तो लात-घुंसे चलाते,,हाथ मरोड़ देते,,स्थिति यह हो गई कि अब उसका पोर-पोर दर्द करता है,,

पर सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है,,एक दिन जब बात सर से ऊपर हो गई तो उसने पुलिस को फोन किया और बेटे को साथ ले कर घर छोड़ दिया,,

मायके भी नहीं गई,,अपना अलग घर बसाया जिसमें वह अपनी मर्जी की मालिक है,,वह कह रही थी देखो,”ये घर मेरा है सिर्फ़ मेरा “

मैं उसके आनंदातिरेक को महसूस कर पा रही हूँ और सोच रही हूँ क्या गुनाह था उसका,,,

अब आप सबसे उम्मीद करती हूँ,,मुझे बतायें,,क्या नेहा ने गलत किया,,,

 

क्या सच में स्त्री और फूल का भाग्य एक जैसा ही है,,,गलती किसी की भी हो,,सज़ा उन्हें ही मिलनी है,,निर्दोष होते हुए भी,,

क्या नेहा ‘मेरी बेटी मेरा अभिमान’ पर खरी नहीं उतरती??,,क्या उसे अपना जीवन जीने का अधिकार नहीं है,,

मेरे विचार से तो उसने एक बेटी के फ़र्ज को तो निभाया ही 15 साल तक ऐसी ससुराल में रह कर,,, लेकिन खुद के स्वाभिमान की रक्षा की जिम्मेदारी को भी पूरा किया,,,🙏🙏

 

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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