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सोच बहू की ” – सरोज माहेश्वरी

सुबह के 9 बजे चुके थे राधा अपने कमरे में अभी तक सो रही थी…नाश्ते की टेबल पर उसकी हमउम्र भावी शालिनी सभी का मनपसंद नाश्ता बनाकर सभी के आने का इंतजार कर रही थी….उसे दस बजे कॉलेज पढ़ाने भी जाना था….राधा की इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी घर बैठ कर नौकरी के लिए आवेदन कर रही थी…. एक साल हो गया कहीं नौकरी नहीं लगी…अब तो देर रात तक टी ० वी ० देखना और सुबह देर से उठना सारे दिन फोन पर दोस्तों से बातें करना उसकी दिनचर्या बन गई थी किसी भी काम में वह अपनी भावी की मदद न करती…जबकि शालिनी घर और कॉलेज दोऩों का काम संभालती… जब राधा के पिता पंकज इस बात का विरोध करते तब राधा की माँ शकुंतला कहतीं…अरे! राधा तो थोडे दिन की मेहमान है शादी होकर ससुराल चली जाएगी अभी उसे आराम करने दो ….शकुंतला हमेशा खाने पीने, पहनने ओढने,काम आदि में बहू बेटी में भेदभाव करती। घर में कोई मेहमान या पड़ोसी आते तो  सासू माँ का रूप कुछ और ही होता वे कहतीं…हम तो बहू बेटी में कोई भेदभाव नहीं करते हैं ,परन्तु सासू मां की समानता का पैमाना शालिनी जानती थी अपनी शालीनता के कारण दिल की बात मुंह पर न लाती घर में क्लेश का माहौल न हो इसलिए वह अपने पति सौरभ से भी कुछ न कहती ।





                                          एक साल बाद राधा की शादी मुम्बई महानगर में सम्पन्न परिवार में हो गई।कुछ साल बाद शालिनी और राधा दोनों  को मां बनने का  सौभाग्य प्राप्त हुआ….राधा को प्रसव के लिए मुम्बई से माँ के घर बुला लिया गया….शालिनी अपनी मां के घर न जा सकी क्योंकि उसने अपनी माँ को बचपन में खो दिया था घर में कोई और जच्चा बच्चा की देखभाल करने वाला न था….शालिनी ने एक बेटी और राधा ने एक बेटे को जन्म दिया….बेटे और बेटी की माँ की देखभाल में भी भेदभाव किया जाने लगा… राधा को ज्यादा आराम करने दिया जाता, शालिनी दो सप्ताह बाद ही घर के काम में जुट गई जबकि कॉलेज से ६ महीने की छुट्टियाँ मिली थीं…. शकुन्तला खाने पीने की चीजों में भी बहू बेटी में पक्षपात करतीं ….यहां भी माँ शकुन्तला का झुकाव बेटी के प्रति ही अधिक दिखाई देता ….
                                  समय बहुत बलवान है। हुआ कुछ यूं…एक दिन रात को शकुन्तला देवी की हालत बिगड़ गई ।अचानक खून की उल्टी होने लगीं तुरन्त अस्पताल ले जाया गया ….निरीक्षण के बाद पता चला कि शकुन्तला जी को पेट का कैंसर है जो अपनी तीसरी स्टेज पर है डॉक्टरों ने कहा…कि यदि इनका इलाज मुम्बई शहर के “टाटा मेमोरियल “अस्पताल में कराया जाए तो
शायद सफलता मिल सकती हैं…आनन फानन में बेटी राधा को फोन लगाया गया जो कि मुम्बई में रहती थी….शकुन्तला जी की लाडली बेटी राधा ने बच्चा छोटा होने का बहाना बनाकर अपनी ही माँ को इलाज के लिए मुम्बई बुलाने की असमर्थता जता दी…लाडली बेटी से किसी को ऐसी उम्मीद न थी।





                  उधर बहू शालिनी के भाई का एक महीने पहले ही मुम्बई में तबादला हुआ था…अब शकुुंतला जी का इलाज कैसे होगा, मुंबई महानगर में उनका कोई और रिश्तेदार भी नहीं था…सभी शान्त थे ,…तभी शांत वातारण को चीरते हुए शालिनी के शब्दों ने कुछ राहत की सांसें दीं…शालिनी बोली …पापा जी! आप चिन्ता न करें ,मैंने अपने भाई से बात कर ली है हम मम्मी जी का इलाज मुम्बई के “टाटा मेमोरियल” में ही कराएंगे … हम भाई के घर आराम से रह सकते हैं।मैं गांव से अपनी मौसी को भी बुला लूँगी जिससे मम्मी जी की देखभाल ठीक से हो सकेगी…मेरे भाई ने हमारी मां के गहने बेचकर कुछ रुपयों का भी इंतजाम कर लिया … पापा जी! मेरा  सोचना है कि  यदि एक मां के गहने दूसरी मां के काम आ जाएं इससे ज्यादा सौभाग्य की और क्या बात होगी…मां तो मां होती है पति या पत्नी की माँ में भेदभाव कैसा ? शालिनी बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव के पूरी तन्मयता से सासू मां  की सेवा में लग गईं….


                                    कुछ महीनों में शकुन्तला देवी पूर्ण स्वस्थ होकर घर आ गईं ।शालिनी को उस पूरी रात नींद नहीं आई ,वह ख्यालों में खोक़र सोचने लगी…. बहू को बेटी कहना और समझना दो अलग अलग बातें हैं । बहू बेटी हैं यह कहने से नहीं बल्कि व्यवहार से दिखता है…बहू को बेटी कहक़र भेदभाव करना बेटी और बहू दोऩों रिश्तों का तिरस्क़ार है।न तो बहू के रिश्ते के प्रति न्याय है और न ही बेटी के रिश्ते के प्रति न्याय है…..एक नारी ही नारी की दुश्मन बन समाज में नफरत फैलाती है।  बहू भी प्यार, सहानुभूति अपनत्व की हकदार है ।बहू बेटी में भेदभाव की भावना प्यार की जड़ों को हिला देती है जिससे परिवार में विघटन पैदा हो जाता है इससे आने वाली पीढ़ी पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है….जब एक आदर्श बहू इन सब से परे उठकर समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करती है तब भेदभाव का स्वरूप डगमगाने लगता है….

स्व रचित मौलिक अप्रकाशित रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)

# भेदभाव

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