‘शीर्षक’ – पुष्पा ठाकुर 

आप सोच रहे होंगे,ये कैसा शीर्षक?

आज के लेख का शीर्षक ही ‘शीर्षक ‘है।

इस दुनिया में एक से बढ़कर एक हस्तियां हैं,जिनके नाम ही अपने आप में एक पूरी की पूरी दास्तान है। कुछ नाम तो अपने आप में ही अद्वितीय और अद्भुत हैं, ऐसे नाम जो किसी साधारण इंसान को भी असाधारण पहचान दे जाएं।जैसे – विवेकानंद,रामकृष्ण , शिवाजी, लक्ष्मीबाई …..जिनका नाम लेते ही भारत के आगे गौरवशाली भारत का बोध स्वत: ही हो आता है। वहीं मुकेश , लता ,रफी या किशोर …. जैसे नाम सुनते ही संगीत की सुमधुर स्वर लहरियां गूंज उठती हैं और मन के तार झनझना उठते हैं। प्रेमचंद नामक बालक को तो हर कोई मुंशी जी कह उठेगा । वहीं भगतसिंह कहते ही देश की रक्षा के लिए मर मिटने वाले शहीदों की स्मृति में आंखें भीग उठती हैं।

  क्या होता गर इंसान के नाम ही न रखें जाते……??

इसी तरह अनगिनत किताबें और लेख का क्या होता गर उनके शीर्षक ही न दिए जाते।

बिना किसी शीर्षक के उस ज्ञान का मोल क्या होता जो अनमोल है ?

क्या नहीं ये ‘शीर्षक ‘अपने आप में खास है?

इतना खास ,जितना इस देह के लिए वस्त्र,इस मन के लिए विचार और मंदिर के भीतर मूरत का वास….. मंदिर चाहे जितना सुन्दर बना दिया हो पर किसका मंदिर है … बताया न जा सके तो कितना अटपटा लगेगा न…

  यूं तो विचारों और जानकारियों के विस्तार के पहले ही शीर्षक का जन्म हो चुका होता है,फिर भी इसका चयन करना इतना सरल काम नहीं होता।किसी लेख या विषयवस्तु को शीर्षक देना ,एक जिम्मेदारी और बुद्धिमत्ता का काम है ताकि आने वाले समय में भी जब सदियों तक लोग उस शीर्षक को तलाशें तो उन्हें उसी से संबंधित सामग्री ही मिले ।

    यदि ये शीर्षक सही न रखें जाएं तो संबंधित जानकारियां भी कितनी अस्त व्यस्त हो जाएं।

गुजरी पीढ़ी ने आने वाली पीढ़ी को जो दिया,इन शीर्षकों ने उसे बहुत ही बढ़िया तरीकों से पिरोए रखा है मानो जिस माला का मोती ,उसी माला में ….. अन्यथा न माला की शोभा होती न पहनने वाले की।

   ये’ शीर्षक ‘ लेखक के जीवन में उस कोरे कैनवास की तरह है जिस पर उसके विचारों की कूची जब चलती है तो इतिहास रचती है।ऐसी कला उभारकर सामने रखती है जो युगों का निर्माण करने का साहस रखता है।

  ये शीर्षक ही तो हैं,जो तय करते हैं कि विस्तार कैसा होगा ……..तुच्छ , संकीर्ण या अनंत , अप्रतिम 

‘शीर्षक’की शुरुआत चाहे जब हुई हो लेकिन इतना तय है कि शीर्षक का अंत कभी नहीं हो सकता और न ही इसकी जगह कोई और शब्द ले सकता।एक’ शीर्षक ‘अपने आप में ही अद्वितीय है।

पुष्पा ठाकुर 

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