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 शिद्दत वाला प्यार – आरती झा आद्या 

तेरी यादों के सहारे जीवन काट लिया मैंने। कुछ दिन और चैन से रह ले, फिर मैं ऊपर आकर पल पल का हिसाब लूँगा । रूपा की फोटो देख मुस्कुराते हुए रिटायर्ड आईएएस अधिकारी व्यास साहब सोच रहे थे। किसी की यादों के सहारे जिंदगी काट देना, सबके वश की बात नहीं होती है। फिर भी यादें जस की तस ही बनी रहती हैं, मानो कल की ही बात थी। जब रूपा को देखा था और देखता रह गया था। साँवली सलोनी सी रूप की खान लग रही थी गुलाबी रंग के सलवार कुर्ते में। अपने आप में मस्त.. सहेलियों संग क्लास रूम में प्रवेश करती अप्सरा लगी थी। जाने कैसे आज क्लास करने आ गया था व्यास। कॉलेज के ट्रस्टी का बेटा होने के कारण कोई उससे कुछ नहीं कहता था। उसकी बदतमीज और आवारा लड़कों में गिनती थी..

चमचों को साथ लेकर चलने वाला लड़का। 

उसकी नज़र में लड़कियों के लिए में कोई सम्मान नहीं था, ऊपर से कितनी मन्नतों के बाद इकलौता बेटा हुआ था तो माता पिता भी हर जायज नाजायज़ माँग खुशी खुशी मान लेते थे। जिसका नतीजा था उसका गैर जिम्मेदार होना। रूपा को देख उसके मन में पहली बार किसी लड़की के लिए इज्जत की भावना आई, सबके होते हुए भी रूपा के अलावा कोई और नहीं दिख रहा था क्लास रूम में उसे। 

अब तो ये रोज का हो गया, क्लास में आने लगा, सिर्फ रूपा के लिए। अब क्लास में आने के कारण थोड़ी बहुत पढ़ाई भी करने लगा क्यूँकि रूपा के सामने अपनी हेठी होते नहीं देखना चाहता था। प्रेम ऐसा हुआ कि दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो चुकी थी। 

उसमें आए परिवर्तन से घर से लेकर कॉलेज तक हर कोई अचम्भित था। जिसके कारण ये परिवर्तन आया था, उसे ही कोई खबर नहीं थी। इश्क ने शायर बना दिया था व्यास को… 

तेरे संग मेरी सहर होगी, 

तुझे भी कुछ खबर होगी।

ग़ज़ल गुनगुनाता उसने बाइक लगाया ही था कि रूपा आती दिखी । उसकी इच्छा हुई अभी ही जाकर अपने प्यार का इजहार कर दे। पर उसे पता था… उसकी इमेज इतनी खराब हो चुकी है कि रूपा इसे आवारगी के अलावा कुछ नहीं समझेगी।अब उसने अपना एक मात्र ध्येय बना लिया.. क्लास टॉपर होने का, जिससे उसका व्यक्तित्व रूपा के लायक बन सके। क्लास के टॉप टेन में हमेशा रूपा भी होती थी। प्यार दीवाना होता है.. व्यास इसका सर्वोत्तम उदाहरण बन गया था। 




आज तक उसने मेहनत से पढ़ने वाले बच्चों का मज़ाक ही बनाया था। अब व्यास को पता चल रहा था कि ये राह इतनी सुगम नहीं है, जितनी सुगमता से वो मज़ाक उड़ाया करता था। आखिर व्यास की मेहनत रंग लाई और उसने द्वितीय स्थान हासिल कर लिया। हर तरफ सिर्फ इसी बात की चर्चा थी… व्यास में इतना बदलाव कैसे। अब उसे देख कोई नहीं कह सकता था कि ये वही बदतमीज लड़का है.. जिसकी नजर में किसी की कोई कद्र नहीं होती थी। अब तो अदब और संस्कार का सबसे उपयुक्त उदाहरण था व्यास।व्यास के माता पिता भी इस बदलाव से चमत्कृत थे… जो भी था.. दोनों बहुत खुश थे। अब व्यास के लिए माता पिता सिर्फ एटीएम नहीं थे, उसके माता पिता थे। 

आज सुबह कॉलेज के लिए तैयार होते व्यास ने सोच लिया था कि रूपा की हाँ हो या ना…..इजहार कर ही देगा। कैसे क्या बोलेगा.. सोचते सोचते कॉलेज पहुँच गया व्यास। 

कॉलेज आते ही पता लगा कि उसकी शुरुआत की दो क्लास कैंसिल है आज। जाकर कैन्टीन में बैठ गया.. लेकिन नजरें जिसे ढूँढ रही थी.. वो कहीं नहीं दिख रही थी। अनमने ढ़ंग से चाय के लिए कह मोबाइल देखने लगता है। अचानक उसे खिलखिलाती हँसी सुनाई देती है।नजर उठा कर देखता है तो दिल की धड़कन रुकते रुकते बची। उसके बिल्कुल सामने उसकी महबूबा खड़ी थी अपनी सहेली सुहाना के साथ … व्यास बस उसे देखता रह गया। आसमानी रंग के कुर्ते में उसके चेहरे की चमक से नजर हटाना मुश्किल हो रहा था व्यास के लिए। वो भूल गया था कि क्या सोच कर आज कॉलेज आया है। 

जब तक रूपा कैन्टीन से बाहर नहीं चली गई… व्यास मंत्रमुग्ध रहा। जैसे ही कैन्टीन से बाहर निकल कॉलेज के पार्क की तरफ बढ़ी…व्यास उसके पीछे दौड़ा। 

पार्क में रूपा और उसकी सहेली के बैठते ही व्यास उनके पास पहुँच कर बैठने की अनुमति माँगता है। दोनों आश्चर्य से देखते हुए हामी भर देती हैं। कुछ देर चुपचाप बैठ बोलने की हिम्मत बटोरता व्यास की मुखमुद्रा अजीब सी होने लगी थी शायद। 

आप ठीक हैं.. रूपा व्यास से पूछती है। 

व्यास – हाँ मैं ठीक हूँ.. तुमसे कुछ कहना चाहता था। देखो इसे अन्यथा मत लेना… अटक अटक कर व्यास कहता है। तुम्हारी हाँ या ना दोनों मेरे लिए सम्मान योग्य होंगे। 

रूपा – कहिए आप… 

व्यास – मैं तुम्हें पसंद करता हूँ… बिना किसी लाग-लपेट के एक ही झटके में बोल जाता है।

रूपा – जी… ये क्या कह रहे हैं आप। 

व्यास – तुम्हारा जो निर्णय होगा.. मुझे मंजूर होगा रूपा।




रूपा – आप क्या किसी को भी मैं हाँ नहीं कह सकती हूँ… आप को आपके जीवन में आपके लायक कोई ना कोई मिल जाएगी। 

व्यास – लेकिन मैं तो उसका साथ चाहता हूँ… जिसके लायक बनने के लिए मैंने दिन रात एक कर दिया है। 

रूपा – ये असंभव है। मैं सिर्फ आपको भविष्य की शुभकामनाएं ही दे सकती हूँ। 

ये कहकर रूपा वहाँ से उठकर चली जाती है। 

सुहाना – व्यास उसे परेशान मत करो.. उसके पास छः महीने से ज्यादा का समय नहीं है। 

व्यास – क्या मतलब.. 

सुहाना – रूपा को कैंसर है व्यास.. डॉक्टर्स जवाब दे चुके हैं। जितने भी समय हैं उसके पास.. शांति से जीने दो। 

सुहाना बोल कर चली जाती है। 

व्यास के अंदर छन से जैसे कुछ टूटा था, धरती घूमती नजर आने लगी । अचानक से उसकी तो दुनिया ही बदल गई.. हुआ तो उसे शिद्दत वाला प्यार था। 

अब एक पल भी रूपा से दूर रहना उसके लिए गवारा नहीं था .. इन छः महिनों में उसके कदमों पर सारी खुशियाँ रख देना चाहता है। 

तुरंत घर की ओर रवाना हो गया वो और जाकर अपनी माँ पापा से रूपा के साथ शादी की बात करता है। साथ ही सारी बात भी बताता है। 

माँ – ये क्या बात कर रहा है तू… जिसके जीवन का भरोसा नहीं.. उससे शादी। 

व्यास – पर मेरे लिए तो वो मेरी जिन्दगी है…अब उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है। 

माँ – पर… 

पापा मौके की नजाकत देखते हुए उससे उसके परिवार से मिलवाने की बात करते हैं।




सुहाना की मदद से व्यास सबको मिलवाता है और रूपा को भी शादी के लिए तैयार कर लेता है। 

बहुत धूमधाम से शादी हो जाती है… अब साथ ही कॉलेज आना जाना.. उठना बैठना.. खाना पीना होता है दोनों का। एक क्षण के लिए भी नजर से ओझल नहीं होने देता है रूपा को। हर चीज़ डॉक्टर के कहे अनुसार करता है। 

लेकिन अब रूपा की सेहत गिरती जा रही थी। खाना पीना भी बंद हो चुका था। डॉक्टर भी अस्पताल में एडमिट कराने की सलाह देता है। जिससे अच्छे से देखभाल हो सके। 

व्यास रात भर अस्पताल में रूपा के साथ ही रहता है और रूपा की जिद्द के कारण दिन में कॉलेज जाता था। रूपा उसे ऊँचाइयाँ छूते देखना चाहती थी… भले वो उस समय दुनिया में रहे या ना रहे । इसीलिए एक दिन भी उसकी पढ़ाई रुकने नहीं देना चाहती थी और व्यास हर दिन बिना मन के कॉलेज जाता था। आज भी कॉलेज जाते समय उसकी आँखें भर आई थी। 

रूपा – ना मेरे महबूब.. मेरा हर सपना तो तुम्हें ही पूरा करना है… ऐसे आँखों में पानी लाते रहोगे तो मेरा सपना तो तुम्हारी आँखों से बह जाएगा.. समझे मेरे सनम…. जब भी जाऊँगी तुम्हारे सामने ही जाऊँगी। अब मुस्कुरा कर दिखाओ और पढ़ाई पर ध्यान लगाओ। 

व्यास उसकी बात पर मुस्कुराने का अभिनय करता हुआ बिना इच्छा के ही कॉलेज के लिए निकल जाता है।

आज की रात रूपा के लिए भारी हो रही थी.. बेतहाशा दर्द से चीख रही थी। डॉक्टर ने पूरी तरह से हाथ खड़ा कर दिया कि आज की रात निकल जाए.. यही बहुत है।पौ फटने के साथ ही रूपा व्यास से मुस्कुराते हुए हाथों में हाथ लेकर क्षीण स्वर में कहती है-

हम मिले ना मिले 

महका करेंगे….. 

बोलती हुई रूपा की आँखें हमेशा के लिए आँखें बंद हो जाती हैं । आज भी रूपा के हाथों का स्पर्श व्यास अपने हाथों में ज्यों का त्यों महसूस करते हैं और दीवानगी का आलम लिए अपनी प्रियतमा से मिलने के लिए दिन गिनते रहते हैं। 

 

आरती झा आद्या 

दिल्ली

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