शीतल झोंका – गीतांजलि गुप्ता।

शीना जैसे ही बैग उठा जब भी घर से निकलती  हमेशा अपनी माँ से झिडकी खाती माँ उसे हरेक बात में टोकती रहती उन्हें हमेशा बेटी से नाराज़गी ही रहती ये नहीं है कि शीना उनकी नाराजगी का कारण नहीं जानती पर क्या करे सब जैसा चल रहा है उसे बदलना इतना आसान भी तो नहीं था।

माध्यमवर्गीय परिवारों में अक़्सर कुछ रिवाज़ कुछ रिश्ते बस निभाने के लियें ही रह जाते हैं। आपसी रूखापन चुपचाप कब रिश्तों में दाखिल हो जाता है किसी को पता नहीं चलता। पिता जी ने सारी जिंदगी सरकारी नौकरी की और पूरा जीवन तीनों बच्चों का भविष्य बनाने में गुजार दिया। माँ ने कितने जतन से गृहस्थी चलाई समाज में सदा सम्पन्न परिवार की छाप छोड़ने की कोशिश की। कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुँह नहीं फेरा दोनों बहनों को ख़ूब पढ़ाया सबसे छोटे भाई को लड़के होने की पूरी छूट मिली जिस के करण वो थोड़ा गैरजिम्मेदार ही रहा गया। पिता जी उसके भविष्य के लिए परेशान ही रहते थे।

शीना को याद है कि माँ बड़ी बेटी रीना को सारा दिन अपने साथ घर के काम में लगाये रखती बेचारी रीना रात रात भर पढ़ती। माँ को उसकी हालत का पता था पर आर्थिक मजबूरी के कारण नौकरानी रख ही नहीं पाती थी। शीना शुरु से ही स्वभाव में अपने बहन भाई से अलग थी शायद उस पर किसी का ध्यान कम ही जाता था। लगा बंधा रूटीन लगी बंधी जिंदगी। सुबह से शाम तक का समय एक निश्चित पावंदी के हिसाब से चलता रहा सब कुछ माँ ही कुशलता से व्यवस्थित रखती।

समय से रीना पढ़ाई पूरी कर सरकारी बैंक में नौकरी कर ली और पिता ने उसकी शादी कर दी और अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी। माँ कितनी खुश थी बेटी अपने घरवार की हो गई। शीना ने वकालत की पढ़ाई तो पूरी कर ली पर शादी न करने का फैसला भी ले लिया। बस यहीं से माँ बेटी के बीच तनाव गहराता गया।

भाई हर्ष पढ़ाई में सफल नहीं हो पाया ले दे कर बी ए ही पास कर पाया माँ उसकी चिंता में पहले से ही घुल रही थी ऊपर से शीना के फैसले से और भी निराश हो गई। अब तक पिता जी भी रिटायर हो चुके थे और किसी प्राइवेट फर्म में एकाउंटेंट की नौकरी कर रहे थे।



अचानक एक दिन पिता जी को दिल का दौरा पड़ा और वो नहीं रहे। उनके जाने का गम और बेटे के निकम्मेपन से माँ बिल्कुल टूट गई थी और उनकी सारी झुंझलाहट शीना पर ही निकलती।

हर्ष ने अपने किसी दोस्त के साथ कुछ काम कर लिया माँ को उससे कोई उम्मीद बाकी नहीं बची थी इसलिए उसे उसके हाल पर ही छोड़ दिया। माँ के पास बस एक ये छोटा सा अपना घर ही बचा था जहाँ पूरी जिंदगी बिता दी थी। उसे बेटे पर जरा भी विश्वास नहीं  था क्या पता उसे पैसे की जरूरत पड़े और वो घर मांग बैठे इसिलए बूढ़ी हो रही माँ ने हर्ष से दूरी बना ली। हर्ष घर में बस खाने व सोने ही आता पता ही नहीं चलता था कि चाहता क्या है। कुछ दिन बाद उसने घर आना भी छोड़ दिया। माँ ने भी उसके बारे में सोंचना छोड़ दिया। रीना की तरफ़ से तो वह पहले से ही सन्तुष्ट थी। वो अपनी गृहस्थी में खुश थी बाल बच्चे वाली हो गई थी।

बस अब उन्हें शीना के अकेलेपन की चिंता सता रही थी और उनकी झुंझलाहट बढती जा रही थी।

हर्ष अचानक एक दिन माँ से जबदस्ती मकान के पेपर्स ले ही गया। शीना ने माँ को समझा बूझा लिया और दूसरे घर में अपने साथ ले गई। चाहती तो हर्ष को कुछ नहीं लेने देती वकील है सब कानून जानती है। परन्तु अब माँ की पूरी जिम्मेदारी शीना ने ओट ली।

दोनों माँ बेटी की नजदीकियां बढ़ने लगीं शीना माँ को खुश रखने की कोशिश करती। माँ की इच्छा थी ऋषिकेश व हरिद्वार जाने की बरसों से घर में पड़ी रही एक ही तरह की जिंदगी जीती रही कभी शहर से बाहर नहीं गई थी शीना माँ को यात्रा पर ले गई।

दोनों पहली बार बहुत हलका महसूस कर रही थीं माँ ऋषिकेश के लक्ष्मण झूले पर शीना का हाथ थामे खड़ी थी और दुनियाभर के गम भूल कर शीतल हवा का आनंद उठा रही थी शीना को ये सही मौका लगा और उसने माँ को अपने एक साथी वकील के बारे में बताया शीना उससे शादी करना चाहती थी ये जान कर माँ की आंखों से ममता के आंसू झर पड़े माँ ने शीना को गले से लगा लिया, “अब मैं चैन से मर सकूँगी बेटा, आज तो मैंनें सच मे गंगा नहा लिया बस तू ही बची थी जिसकी चिंता मुझे खाये जा रही थी।” शीना ने भी माँ के ममता भरे आलिंगन में कभी इतनी गर्मी महसूस नहीं की थी जितनी आज महसूस की। शीना को लगा चारों और शांति ही शांति फैली है क्योंकि माँ को उसकी असली खुशी जो दे पाई थी।

गीतांजलि गुप्ता।

नई दिल्ली©®

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