क्षितिज से आगे जहाँ और भी है – रवींद्र कान्त त्यागी 

उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र के परंपरागत संयुक्त ब्राह्मण परिवार के मुखिया नन्द गोपाल शुक्ला रेलवे में नौकरी करके जीवन निर्वाह करते रहे. शुक्ला जी का बेटा माधव प्रतिभा का धनी निकला और बचपन से सभी कक्षाओं में अव्वल रहते हुए आई.आई.टी. करने के बाद कॉलेज से ही सलेक्ट होकर अच्छे पॅकेज पर जर्मनी चला गया.

जर्मनी क्या चला गया, छोरे के तो रंग ढंग ही बदल गए. घुटनो से फटी हुई जींस की पेंट पहनता, यूरोपियन स्टाइल में फर्राटेदार अंगरेजी बोलता, ऑमलेट का ब्रेकफास्ट और पोर्क का लंच करता, शाम को अपने कमरे में लचीले सोफे में धंस जाता. तेज म्यूजिक बजाकर एक पैक बनाता और सिगरेट सुलगाकर मैडोनाये और स्टेसी फर्ग्युसन का म्यूजिक सुनता.

हर भारतीय पिता की तरह पंडित नन्द गोपाल जी को अपने होनहार नौनिहाल की शादी की चिंता होना स्वाभाविक ही था. बदलते वक्त और टूटते रिश्तों के दौर में, ज़माने की ऊंच नीच को परखे हुए अनुभवी पंडित जी बेटे की सलाह के बिना कोई रिस्क लेना नहीं चाहते थे.

एक दिन विस्तार से ई मेल भेजा कि “सुपुत्र महाशय, हम तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध कोई लड़की तुमपर थोपना नहीं चाहते. किन्तु पूरी दुनिया में सफल और लम्बे समय चले वाली गृहस्थी की दृष्टि से भारतीय लड़कियां आदर्श मानी जाती हैं. इसलिए हम चाहते हैं कि तुम ‘इण्डिया’ आकर ही शादी करो. समाज में अनेक योग्य पढ़ी लिखी और कमाऊ लड़कियां हैं. तुम चाहो तो हम तुम्हारे लिए उचित कन्या ढूंढने में तुम्हारी मदत कर सकते हैं. चाहो तो अपनी चॉयस भी लिख सकते हो”.

माधव ने अंगरेजी में बस तीन लफ्ज लिख भेजे “मॉडर्न, सैल्फडिपेंडेंट एन्ड कॉन्फीडेंट”.

हर समाज में पाए जाने वाले शौकिया शादी ब्याह के रिश्ते जोड़ने वाले धुरंधरों ने, रिश्ते के जीजा, फूफा और मामाओं ने और दूर पास के तमाम सम्बन्धियों ने विदेश में शानदार पॅकेज वाले सुन्दर लड़के की जोड़ी मिलाने के लिए सारे जुगाड़ भिड़ा लिए मगर सातंवे आसमान पर उड़ता चंचल परिंदा पिंजरे में फंसने को तैयार ही नहीं था. कोई उसके मापदंड पर मॉडर्न नहीं थी तो कोई आत्मनिर्भर नहीं थी. कोई फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में झिझक रही थी तो किसी का शलवार कुरता पहनने का स्टाइल पुराने ज़माने का नजर आता था. अंत में मैरिज ब्यूरो का सहारा लिया गया जिनकी पहुँच राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होती है.

हमारे यहाँ कहते हैं कि रिश्ते भगवान् के घर तय होते हैं. अब देखिये न, कितना अजीब इत्तेफाक है. जर्मनी में ही जॉब करने वाली बंगलौर में रहने वाले सेना अधिकारी की लड़की कुंवर साहब को अपने मापदंडों पर खरी उतरती दिखाई दी. फेसबुक और ट्वीटर भी दोनों ने खुद को ‘एक दूजे के लिए’ सौ टका, सौलह आने, एक दुसरे के अनुकूल पाया. सौने पर सुहागा ये कि परिवार दक्षिण भारतीय शुद्ध ब्राह्मण था और पंडित चमन लाल जी की स्वीकार्यता के लिए और समाज में नाक बचाने के लिए ये पर्याप्त कारण था. ये अलग बात है कि ‘कन्या’ और ‘वर’ ब्राह्मणत्व के संकुचित दायरे को बहुत पीछे छोड़कर कब के ग्लोबल हो चुके थे और ‘वसुदेव कुटम्बकम’ के सिद्धांत पर चलते हुए सारे संकीर्ण सीमाओं को कब का विच्छेदित कर बहुत आगे बढ़ चुके थे.




ब्रज क्षेत्र के लोगों ने इस से पहले शायद ही कभी इतनी भव्य और अनूठी साजसज्जा और रस्म-परम्पराओं से ओतप्रोत विवाह देखा होगा. दरी, सोफे, परदे, कृत्रिम फौआरे, लाइटें यहाँ तक कि परोसने वाले बैरों के वस्त्र भी एक कलर थीम पर आधारित थे. ब्रज के प्रसिद्ध भोजन के रसिकों ने तो आज उत्तर और दक्षिण के स्वादिष्ट व्यंजनों का भरपूर आनंद लिए था और कहावत भी है कि बाराती को दावत, घरातियों को दहेज़ और लड़के को दुल्हन मिल जाय तो विवाह उत्तम ही उत्तम है.

पलकों तक पारदर्शी ओढ़नी, लम्बा गौरवर्ण सांचे में ढला हुआ शरीर और लज्जाशील जमीन में गड़ी निगाहें, बाराती और मेहमान पंडित नन्द गोपाल की किस्मत पर रश्क कर उठे थे. जैसा गुणी बेटा वैसी ही रूपमती, कुलवंती बहू मिली है पंडित को.

ये अलग बात है कि दुलहन ने पंडित के कथित आधुनिक लौंडे को बाद में बताया कि ये इवेंट मैनेजमेंट का कमाल था और इस सब के लिए कई बार रिहर्सल की गई थी.

जर्मनी की राजधानी बर्लिन के एक फ्लैट में मिस्टर एन्ड मिसेज शुक्ला के गृहस्थी का पौधारोपण संम्पन्न हुआ. दक्षिण के तमिलनाडु की बाला और उत्तरप्रदेश के ब्रज क्षेत्र के बालक जर्मनी में पूरी तरह यूरोपियन स्टाइल में जिंदगी गुजारने लगे. वीकेंड के आलावा शेष दिनों में फ्रिज से कभी पैक्ड पाश्ता, कभी मैक्रोनी या ब्रैड ओवन में गर्म करके जूस के साथ निगलते और फटाफट अपनी अपनी जॉब पर निकल जाते. छुट्टी के दिन थियेटर या क्लब या कोई ख़ास रेस्टोरेंट. सब ठीक चल रहा था. सामान्य.

जनवरी का महीन, भयानक सर्दियों के दिन. सुबह आठ बजे अलार्म बजता और दोनों अपनी दैनिक व्यतताओं में जुट जाते मगर आज मुंह अँधेरे ही किचन में कुछ खटर पटर की आवाजें सुनाई दे रही थीं. माधव ने एक बार कम्बल से मुंह निकलकर देखा तो ‘अनया’ बिस्तर पर नहीं थी. वो दोबारा मुंह ढककर सो गया.

सामान्य दिनों की तरह माधव आठ बजे उठा तो घर की तस्वीर बदली हुई थी. दरवाजों पर आम के पत्तों की बंदनवार, ड्रॉइंग रूम में बड़ी सी सुन्दर रंगोली और रसोई में पकती मीठी खीर की खुशबू. अनया ने आज साड़ी पहन राखी थी और बालों के जुड़े में फूलों का गजरा लगा रखा था. मांग में सिन्दूर और माथे पर चमकती लाल बिंदी ने उस आधुनिका का व्यक्तित्व ही बदलकर रख दिया था.

माधव कई क्षण उसे मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया. फिर उसने एक अंगड़ाई ली और आँखें मसलकर कहा “हम जर्मनी में ही हैं ना, या जादू से तुम्हारे पैतृक शहर मदुरई पहुँच गए हैं डार्लिंग “.

अनया उत्साह से चहकती हुई बोली “अरे तुम्हे पता नहीं. आज हमारा सबसे बड़ा त्यौहार पोंगल है. पोंगल को हम सब बैंगलोर से अपने पुश्तैनी परिवार के साथ मदुरई जाकर मनाते थे. तरह तरह के पकवान बनाये जाते, रंगोलियां सजाई जाती, सूर्य और गऊ धन की पूजा होती, एक दुसरे के यहाँ मिठाइयां बांटी जातीं और शाम को हम सब बैलों की रेस देखने जाते. इन दिनों खेतों में पके हुए धान की कटाई होती और सौंधी सौंधी खुशबू से वातावरण महक उठता. उस दिन मेरी माँ कांजीवरम की सड़ी पहनकर अजंता की मूरत सी दिखाई देतीं और पापा मुग्ध दृष्टि से उन्हें निहारते रहते. काश वो दिन दोबारा लौट आएं”.

“अरे वाह. तभी किचन से इतनी सुगंध फूट रही है. देखो यार, अपुन तो मथुरा के पंडा ठहरे. यहाँ विदेश में खीर पूड़ी का भोग लग जाय तो क्या कहने मगर ये क्या भेस बना रखा है तुमने गंवारों जैसा. ये बिंदी, चूड़ी और कजरा गजरा. कोई देखेगा तो क्या कहेगा”.

“क्या कहेगा. मेरे देश की गौरवमई परम्परा है और शालीन परिधान है. आई डोंट केयर कि कोई क्या कहेगा”.




“बट …… खैर लग रही हो एकदम झकास”.

रात के दस बजे थे. माधव और अनया आधा शरीर कम्बल में ढके, घुटनो पर लैपटॉप रखकर अपनी अपनी दुनिया में डूबे थे. माधव ने अनया के कंधे पर हाथ रखकर कहा “सुनो डार्लिंग, मैं सोचता हूँ कि किसी भी जुगत से यहाँ यूरोप की ही नागरिकता ले लेंगे. जर्मनी ना सही इंगलैंड या इटली. जहाँ जुगाड़ बैठ जाये. ऐक्चुअली यूरोप इस मच बैटर दैन इण्डिया. ना मक्खी ना मच्छर, सड़कों पर बन्दर, कुत्ता, गाय बैल कुछ भी नहीं. पॉल्यूशन कम पॉपुलेशन कम. और देखो ना, कितने मॉडर्न हैं यहाँ के लोग. यार मैं तो अपने बच्चों को इण्डिया की शक्ल भी दिखाना प्रैफर नहीं करूंगा. गंवार थे और गंवार ही रहेंगे. पॉल्यूशन, पॉप्युलेशन, गन्दगिया, बीमारिया, करप्शन …..”

अनया ने हंसकर कहा “अपने बच्चे की नाक बहने लगे तो उसे सड़क पर फेंक दोगे या उसका इलाज कराओगे. अपना कंट्री है यार. क्या तुम बच्चों को सात लोक से न्यारी मथुरा भी नहीं दिखाओगे. यार मुझे तो एक बार जाना है …… बस भारत के मंदिर देखने. कैसी मायथोलॉजी है हमारी. अनोखा और आधुनिक दर्शन. अजंता – एलोरा देखना है, बनारस देखना है, पवित्र अमरनाथ की गुफा देखनी है और तुम्हारे ब्रज के बारे में तो बहुत पढ़ा है मैंने. और सुनो, मदुरई का मीनाक्षी देवी टैम्पल देखा है तुम ने. वास्तुकला का अद्भुत नमूना. रामेश्वरम का विशाल मंदिर. समुद्र की लहरों से टकराता तट. ना जाने कितने बरस पुराना है”.

“वो ठीक है मगर यहाँ की कल्चर अलग ही है यार. ना जातिभेद ना लिंगभेद. बस सब अपने काम में मशगूल. किसी के पास लफ्फाजी करने का, बहस करने का या झगड़े करने का समय ही नहीं”.

“और दरकते रिश्ते. रात को पति पत्नी हमबिस्तर होते हैं और सुबह को गुडबाय. सेवन्टी परसेंट बच्चों के भाग्य में या तो प्राकृतिक पिता होता है या माँ. इंसान भावना विहीन मशीन बन गया है”.

“देखो, तस्वीर के दोनों पहलू हैं. ऊपर वाले ने एक ही जिंदगी दी है. अब अगर किसी कारण से गलत जोड़ी बन गई है जिसमे ना लड़का संतुष्ट है ना लड़की, तो भला उस रिश्ते को जिंदगी भर क्यों ढोना”.

“हा हा हा, इस तस्वीर के भी दो पहलू हैं माधव जी. इंसान जब जंगलों में रहता था, गुफाओं में, पेड़ों पर तो ये विवाह नामक संस्था नहीं होगी. यकीनन जानवरों की तरह जोड़े बनाने में संघर्ष और खूनखराबा होता होगा. शादी की व्यवस्था बनाने का इंसान का उन झगड़ों को रोकना भी एक कारण रहा होगा, मगर मुझे लगता है कि संतति की जिम्मेदारी लेना और उसका लालन पालन कर्ता सुनिश्चित करना भी बड़ी वजह होगी. दुनिया भर में डाइवोर्स होते हैं. मगर बच्चों पर क्या बीतती है, ये भी सोचने का विषय है”.

अपनी बात पूरी करने के बाद अनया ने माधव की तरफ देखा तो वो सो गया था. अनया ने उसका लैपटॉप एक तरफ रखा और कम्बल ठीक कर दिया.

अनया महीने में कम से कम एक दिन व्रत रखती, अपने पारम्परिक त्यौहार मनाती, भारतीय परिधान पहनकर पूजा करती और इंटरकॉन्टिनेंटल फूड्स से परहेज रखती थी. माधव को ये सब रूढ़िवाद और अन्धविश्वास लगता था. कई बार खान पान और पूजा परम्पराओं को लेकर दोनों में बहस हो जाती थी यहाँ तक कि एक दो बार किसी त्यौहार पर नॉनवेज खाने को लेकर दोनों में कर्कश बहस हो चुकी थी. माधव खुद को नास्तिक कहने में गौरव का अनुभव करता था. अनया रोज और कई बार घंटों अपनी माँ से और पिताजी व बहन भाइयों से फोन पर या स्काइप पर बात करती मगर माधव अपने घर से आये फोन का भी कभी कभी ही जवाब देता था. एक वैचारिक लकीर दोनों के बीच में खींची हुई थी और कभी कभी गृहस्थी के मामले में ऐसी लकीरें अचानक चौड़ी हो जाती हैं.

जिंदगी बहुत तेज भागती है. शादी को दो साल हो गए थे और हनीमून पीरियड ठंडा हो गया था. वक्त के साथ दोनों में एक प्रैक्टिकल, प्रोफेशनल ट्यूनिंग स्थापित हो गयी थी. दो साल में तीन प्रमोशन लेकर अनया, माधव से अधिक कमाने लगी थी. उन दोनों का एक छोटा सा पुत्र था. दोनों के अलग अलग बैंक बेलेंस थे और घर की जिम्मेदारियां सुनिश्चित थीं. अपनी सैलरी का एक सामान भाग एक साझे खाते में डालते थे. बिजली का बिल, हॉउस रैंट, जनरल स्टोर का बिल, दूध, सब्जियां, डॉक्टर …. सब कुछ उस जॉइंट एकाउंट से जाता था. मशीनी दुनिया, मशीनी सोच, मशीनी इंसान. सब कुछ एक भावना से, दिल के रिश्ते से और संवेदनाओं से जुड़ा हुआ नहीं बल्कि एक भूख से जुड़ा हुआ. पैसे की भूख, रोटी की भूख और शरीर की भूख.

एक सुबह अनया को जल्दी ऑफिस पहुँचाना था. माधव अभी सो ही रहा था कि उसने स्नान किया, टोस्टर में डबलरोटी के दो टुकड़े ब्राउन सेंक लिए. फ्रिज से जूस निकलकर जल्दी जल्दी गटका और बेडरूम में गई माधव को जगाने.




“उठो डार्लिंग. मुझे जल्दी ऑफिस पहुँचाना है. जापान से एक डेपुटेशन आ रहा है. उस रिसीव करना है और मीटिंग्स. सुनो …… तुम ऑफिस जाने से पहले जरा घर की साफ सफाई कर देना और …… और सॉरी यार, किचन में रात की प्लेटें भी ऐसे ही पड़ी हैं. जरा देख लेना प्लीज ….. और हाँ मुन्ने की पॉटी साफ़ करके डाइपर बदल देना”.

माधव ने अलसाते हुए आंख खोलीं और आँख मींड़ते हुए कहा ” अब ये पॉटी वोटी साफ़ करने का काम मुझसे नहीं होगा यार. वो क्रैच वाले करते हैं ना सब”.

“क्रैच नौ बजे खुलेगा. तबतक क्या बेबी ऐसे ही पड़ा रहेगा. डर्टी. मुझे देर हो रही है. बाय”.

“अरे सुनो डार्लिंग, दरअसल ये बच्चों की सफाई, पॉटी वगैहरा का काम मैंने आज तक किया नहीं है. वैसे भी ये मर्दों का काम है क्या”.

“ओ … आई सी. अचानक तुम्हारी भीतर का इंडियन ‘मर्द’ जाग उठा है. यही है तुम्हारी मॉडर्न नैस. इसी तरह तुमने यूरोपियन कल्चर को अडॉप्ट किया है. भला क्यों नहीं है मर्दों का काम”.

“छोड़ो यार. तुम बात को बढ़ा रही हो. बच्चे की पॉटी धोने का काम मुझसे नहीं होगा. बस”.

“यही तो विषय है कि क्यों नहीं होगा. क्या तुम्हे घिन आती है. तो क्या अपनी साफ़ सफाई नहीं करते हो. या ….. या इस से तुम्हारे पौरुष को ठेस लगती है, स्वाभिमान को ठेस लगाती है. तुम तो कहते हो कि मैं सैद्धांतिक रूप से लैंगिक भेदभाव के खिलाफ हूँ और इसी लिए मुझे यूरोप की कल्चर पसंद है कि यहाँ कोई औरत और मर्द में भेदभाव नहीं करता. और …. और लगे हाथ ये भी बता दो कि औरत के काम क्या हैं और पुरुष के काम क्या है. किचन का काम, घर की सफाई, घर के लिए शॉपिंग और ……. पैसा कमाना. ये हैं औरत के काम, तो फिर मर्द का काम क्या है? बताओ ना मर्द का काम क्या है. इण्डिया वूमन की ड्यूटी है ? पुरुष के चरणों की पूजा करना. उसके लिए भूखे रहकर ईश्वर से दुआएं मांगना, कि कुछ भी हो मुझे वैधव्य का दुःख मत देना. क्योंकि हमारे भारत में वैधव्य से बड़ा अभिशाप कोई नहीं है. और पुरुष …… वो कभी भगवान् से दुआ क्यों नहीं मांगता कि उसकी अर्धांगिनी स्वस्थ रहे …… और जीवित रहे. क्योंकि उसके लिए बीवी के बाद भी दुनिया के सारे ऑफ्शन खुले हुए हैं. ना उसे मांग का सिन्दूर पोंछना है ना माथे की बिंदिया हटानी है. उसे तो बस दोबारा कुंवारा बन जाना है, ‘विधुर’ नहीं”.

अनया ने कंधे पर लटका बैग स्टूल पर रख दिया और सोफे पर बैठ गई. उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. ना जाने कब का भरा हुआ रोष बहार निकालकर हल्का हो जाना चाहती थी शायद. उसने फिर कहना शुरू किया.




“अच्छा माधव एक बात बताओ, सारे जोक पत्नी से मुक्ति पाने के ही क्यों बनते हैं. पत्नी मायके गई तो आजादी, मर गई है तो सैलिबरेशन. तुमने वो सुना है. एक खटारा कार की बोली लग रही थी. बीस लाख, तीस लाख. किसी ने पुछा कि इस कार में ऐसी क्या खासियत है तो ….. इस कार की दुर्घटना में हर बार बीवी ही मरती है……. हा हा हा. सब ठहाका लगते हैं. आई हेट दिस टाइप ऑफ़ ब्लडी मेल थिंकिंग”.

“बंद करो यार सुबह सुबह ये चख चख. पूरी दुनिया में पुरुष वादी समाज है. दुनिया के सबसे आधुनिक माने जाने वाले अमेरिका में और चीन में आजतक कोई औरत राष्ट्र नायक नहीं बन पाई है. ईशवर ने ही पुरुष को शक्तिशाली व औरत पर सत्ता करने के लिए बनाया है”.

“शक्तिशाली ….. सत्ता, दुनिया की आधी से अधिक आबादी के देशों में महिलाएं राष्ट्र अध्यक्ष रह चुकी हैं और शक्ति …. कौन सी शक्ति. मसल पॉवर या ब्रेन पॉवर…… या स्टेमिना. और मसल पावर का क्या. गृहस्थी चलानी है या बॉक्सिंग करनी है. जो जॉब भी कर सकती है, साथ साथ गृहस्थी भी चला सकती है और बच्चे भी पैदा कर सकती है वो ताकतवर है या …….. और सुनो. तुम पुरुष की औरत पर सत्ता की बात कर रहे हो ना तो ….. तो मुझे नहीं रहना है किसी की सत्ता के आधीन”.

“ये तुम नहीं बोल रही हो. तुम्हारी सैलरी बोल रही है जो मुझसे ज्यादा है. दम्भ हो गया है तुम्हे उसका. कहीं इण्डिया में किसी कमाने वाले की मात्र हाउसवाइफ होतीं तो ये तेवर नहीं होते”.

“ओफ्फ, निकल गई सारी यूरोपियत. आ गए औकात पर. यही है तुम्हारी आधुनिकता. मॉडर्न नैस. फ्रेंच काट दाढ़ी रखकर, अंग्रेजों की तरह हैट लगाकर चलने से इंसान के विचार नहीं बदल जाते. तुम्हारे भीतर आज भी एक गंवार इंसान जिन्दा है जो औरत को पांव की जूती समझता है. उसे गुलाम बनाकर रखना चाहता है. तुम अपनी भारतीय संस्कृति की अच्छाइयां छोड़कर और दुसरे देश की केवल बुराइयां अपनाकर त्रिशंकु बन गए हो. एक हाथ में सिगार और दूसरे में महंगी शराब का जाम लेकर विदेशी धुनों पर ट्विस्ट करने से कोई अपने दिमाग में पीढ़ियों से जमे हुए रूढ़िवाद और सामाजिक विकृतियों के जाले साफ़ नहीं कर सकता. उसके लिए सोच बदलनी पड़ती है. परिवेश और परिधान नहीं. मैं जा रही हूँ तुम्हारी दुनिया से अपने बच्चे के साथ”. और वो बच्चे को उठाने के लिए बैड की तरफ बड़ी. तभी माधव ने उसे एक हाथ से धक्का देकर पीछे की तरफ धकेलते हुए कहा “तुम बच्चे को नहीं ले जा सकतीं. उसपर तुम्हारा कोई क्लेम नहीं है”.

“आज तक तुम में बस यही एक विशेषता थी कि हमारा कितना भी झगड़ा हुआ मगर तुमने मुझे कभी शारीरिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया. कभी पुरुषोचित शक्ति प्रदर्शन नहीं किया. आज वो कमी भी पूरी हो गई. बच्चे को मैं अदालत से भी प्राप्त कर सकती हूँ. बेहतर होगा कि हमें कोर्ट का मुँह ना देखना पड़े”.

इस बार माधव ने दो कदम पीछे हटते हुए कहा “चली जाओ जहाँ जाना है. यहाँ विदेश में दो दिन में दिमाग ठिकाने ना आ जाए तो कहना”.

अनया ने सोते हुए बच्चे को गोद में उठाते हुए कहा “नहीं आएगा. तुमने ही तो मैरिज ब्यूरो वालों को लिखा था, मॉडर्न, सैल्फडिपेंडेंट एंड कॉन्फीडेंट लड़की चाहिए. भारतीय सेना के अधिकारी की बेटी है ‘अनया’. हर हालात से जूझना जानती है”. और दरवाजा खोलकर बहार निकल गई.

 

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