शक करना पत्नियों का अधिकार है – मनप्रीत मखीजा 

“कितनी बार कहा है तुम्हें निशा, मेरे फोन कॉल रिसीव मत किया करो । कुछ इंटरनेशनल कॉल्स भी आते है तुम उनकी लैंग्वैज मे बात नही कर पाओगी। फिर वहाँ से ऑर्डर नही मिलते। ” इतने मे पुनीत का फोन बजा और पुनीत, “हैलो सर, हाऊ आर यू ” कहते.. फोन पर बात करते हुए बाहर निकल गया। 

यहाँ निशा खुद से बतिया रही थी, “हम्म…. तो मुझे कौन सा शौक है तुम्हारे फोन कॉल उठाने का । वो तो बस ऐसे ही देख रही थी कि किसका फोन है! ”    आधे घंटे बाद, दोनो नाश्ते की टेबल पर मिले। 

` भई वाह, क्या हलवा बनाया है तुमने मंजूबाई, थोडा मेरे टिफीन मे भी पैक कर देना प्लीज़। ” `हो.. साबजी, ज़रूर। आप लोगो के लिए ही बनाया है ।”मंजूबाई ने मुस्कुराहट के साथ कहा। 

  तू क्या यहाँ खडी खडी दाँत दिखा रही है ,जा जाकर कमरा साफ कर बहुत काम है.. निशा की बात सुनकर मंजू दबे पाँव भाग गई।  निशा को मॉर्केट मे कुछ काम था, इसलिए पुनीत के साथ चली गई। सिग्नल पर पुनीत ने गाडी रोकी तो फूल बेचने वाला कार के शीशे खटकाता है। 

`साहेब, फूल लेलो ना.. गर्लफ्रेंड को दे देना नही तो ये आंटी मन्दिर ले जाएंगी। निशा चिढ़ सी गई और तुरन्त बोली, `ऐ लडके ,आंटी किसको बोलता है और इनकी कोई गर्लफ्रेंड नही है ये शादीशुदा है, मेरे पति है। ” इतने मे सिग्नल चेंज हुआ ।पुनीत कार लेकर आगे बढ़ा। निशा का गुस्सा सातवे आसमान पर था किसी ने उसे आंटी कैसे कह दिया । कब से मुँह फूलाये बैठी थी। पुनीत ने निशा को मार्केट छोड़ते वक्त कहा, “ अब गुस्सा छोड़ भी दो, मै उम्र मे तुमसे छोटा लगता हूँ तो इसमे मेरी क्या गलती। चलो जाओ, कुछ शौपिंग कर लो। ” निशा कार से उतरी, पुनीत को बाय कहने ही वाली थी कि इतने मे उसका फोन बजा।  



`हैलो, हाँ सोनू.. मै तुम्हें रिसीव करने ही आ रहा हूँ। “और पुनीत धपाक् से कार लेकर निकल गया। अब तो निशा का दिमाग और गरम हो गया। पूरे रस्ते यही सोचती रही कि ये सोनू कौन है, कैसी दिखती होगी। कद, काठी, रंग और बात करने का ढंग.. मेरे जैसी आंटी तो नही लगती होगी। कही पुनीत को फँसा लिया तो!!!! जो खरीदने आयी थी, खरीद भी न पाई।  घर जाकर भी चैन ना मिला तो पुनीत को फोन मिला दिया। वो आफिस के काम मे व्यस्त था इसीलिए तीसरी बार फोन आने पर ही उठा पाया। 

`क्या कर रहे हो पुनीत, कहाँ हो, फोन क्यूँ नही उठा रहे, कब से मिला रही हूँ ..निशा नॉनस्टाप बोले जा रही थी। 

`अरे अरे.. निशा जरा सांस तो ले लो, यार मीटिंग मे था, तुम बताओ..शौपिंग कर आई! पुनीत की बात अभी चल ही रही थी कि फिर से किसी का फोन बजा और निशा की कॉल होल्ड पर चली गई। दो मिनट के बाद जब लाइन कनेक्ट हुई तो पुनीत भूल चुका था कि निशा लाइन पर है वह ऑफिस के फोन पर बात कर रहा था और निशा को सुनाई दिया, `हैलो सोनू, जल्दी से मेरे केबिन मे आओ “। अब तो निशा की बेचैनी और तिलमिलाहट बर्दाश्त के बाहर थी ।बिना कुछ सोचे, निशा ने पर्स उठाया और पुनीत के ऑफिस पहुँच गई।

 मन ही मन बडबडाती हुई फटाफट केबिन की तरफ बढ़ी। दरवाजा खोलते ही देखा कि एक लडकी स्कर्ट टॉप पहने पुनीत के सामने खडी है, निशा भागकर अन्दर गई तो पैर फिसला और गिरने लगी मगर उस लडकी ने संभाल लिया। निशा ने उसे देखा और कहा.. `सुनैना तुम ! तुम यहाँ क्या कर रही हो। ‘ (ये सुनैना, निशा के मामा की लडकी थी जिसे घर पर सब प्यार से सोनू कहा करते थे) 



“अरे क्या जीजी, तुम फोन नही उठाती हो ।मैसेज करो तो रिप्लाई नही करती। पिछले पाँच दिनो से तुमसे बात करने की कोशिश कर रही थी तुम्हें बताना था कि मेरी जॉब अब जीजाजी की कम्पनी मे लग गई है और अब से मै तुम्हारे शहर मे ही रहूँगी कम्पनी के दिए हुए फ्लैट मे। कल रात को ही यहाँ शिफ्ट हुई और आज जॉब का पहला दिन है। “

निशा ने पुनीत की ओर देखा जो सब समझ चुका था और मंद मंद मुस्कुरा रहा था। `आप क्या मुस्काये जा रहे है, बता नही सकते थे कि सोनू, और कोई नही.. अपनी सुनैना ही है। ” `यार तुम कुछ कहने ही कहा देती हो, बस.. एक के बाद एक ना जाने कितने सवाल घूमते है तुम्हारे दिमाग मे। वैसे अगर तुम एक बार मेरे फोन की बजाय अपना फोन चैक कर लेती तो तुम्हें खुद-ब-खुद सब पता चल जाता ‘ पुनीत ने मस्ती भरे अंदाज़ मे कहा। 

एक बार फिर पुनीत का फोन बजा और स्क्रीन पर `कुसुम कॉलिंग’फ्लैश हो रहा था। पुनीत ने फोन पर बात की और निशा को भी देखा और बात के बीच मे ही फोन पर हाथ रखते हुए निशा से कहा… `कुसुम लडकी नहीं, कम्पनी का नाम है ‘। अब निशा थोडी सकुचाते हुए मुस्काई और पुनीत के गले लग गई। पुनीत ने फोन पर बात खत्म की और निशा से कहा, ` हम मर्द तो घर से बाहर निकलते वक्त अपनी पत्नी को बाय कहते है और बाहर की दुनिया मे व्यस्त हो जाते है एक बार भी तुम्हें फोन करके नही पूछते कि कहा हो, क्या कर रही हो क्यूँकी पता है, घर पर ही होगी, कहाँ जाएगी। एक तुम औरते, घर पर बैठी बैठी कितने विचारों से घिर जाती हो! अगर अपने पति की दिनचर्या और हरकतो पर नजर रख भी ली तो क्या गलत किया। आखिरकार तुम्हारा उद्देश्य तो यही होता है कि मर्द को भटकने से रोक लो।’ “ दुनिया की नजर में जो शक है… मेरी नजर मे वो जानकारी, हर पत्नी का हक है। “

 मनप्रीत मखीजा 

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