शक का घेरा – डॉ उर्मिला शर्मा : Short Moral Stories in Hindi

   Short Moral Stories in Hindi : अक्षिता और आकाश का सम्बंध करीब सात साल पुराना था। बारहवीं कक्षा में थे तब से उनकी दोस्ती चल रही थी जो आज प्यार में बदल गया था। उसके बाद अक्षिता इंजीनियरिंग के लिए बेंगलुरु चली गई और आकाश पुणे से इंजीनियरिंग करने लगा।

इतनी दूरी के बाद भी उनका रिश्ता बखुबी जारी रहा। इस दौरान दोनों एक दूसरे की खूबियां-खामियां, पसन्द- नापसन्द, पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि से बखूबी परिचित हो चुके थे। दोनों ही मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे।

उनदोनों ने पढ़- लिखकर सेटल होने के बाद शादी करने का मन बना रखा था। आकाश अपने परिवार का इकलौता सन्तान था। 

                 इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने ही वाली थी कि आकाश के पापा का हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। आकाश के लिए यह असहनीय दुःख था। उसे गहरा सदमा लगा इस दुर्घटना से। उसे इस  दुख से उबारने में अक्षिता ने काफी सम्वेदनशीलता दिखाई।

इधर पढ़ाई पूरी कर अक्षिता को बेंगलुरु में ही एक कम्पनी में नौकरी लग गयी। साथ ही साथ उसने एम. बी. ए करना शुरू किया। इधर आकाश ने भी इंजीनियरिंग पूरी कर पुणे में ही नौकरी करने लगा। 

एम. बी. ए खत्म करने के बाद अक्षिता ने एक नई कम्पनी जॉइन किया जिसमें काफी संभावनाएं और अच्छी सैलरी भी थी।  कुछ समय बाद अक्षिता ने अपना ट्रांसफर भी पुणे करा लिया ताकि वह आकाश के साथ समय बिता सके।

अब वे दोनों अक्सर मिला करते थे। चुकी अक्षिता की सैलरी आकाश की तुलना में काफी बढ़िया थी, अतः वह आकाश की जब-तब आर्थिक मदद भी किया करती थी। उसने आकाश के बेहतर भविष्य के लिए एम. बी. करने को कहा और आकाश की आर्थिक मजबूरी जताने पर उसने उसकी फीस भी भरी।

गुजरते वक़्त के साथ अक्षिता ने यह महसूस किया कि आकाश उसे लेकर जब- तब क़ाफी ‘पजेसिव’ हो जाया करता है। लेकिन इसे अक्षिता  उसका प्यार समझ कर इग्नोर करती रही।




                अक्षिता जिस कंपनी में काम करती थी वह मुख्य शहर से काफी दूर स्थित था।  सुबह नौ बजे के निकले उसे लौटने में कभी- कभी दस भी बज जाते थे। कभी बस न मिलने की स्थिति में उसे साझा रेंटल कार लेकर लौटना पड़ता था।

जब आकाश ने यह बात जानी तो उसे नागवार गुजरा। अब वह रोज अक्षिता के लौटने के समय उसे फोन करता और पूछता की तुम्हारे साथ कार में और कौन- कौन लोग बैठे हैं। किस उम्र के हैं। और भी न जाने कितनी बेतुकी बातें वह पूछता।

जिससे दिनभर काम के स्ट्रेस से गुजरी अक्षिता परेशान हो उठती थी। वह फोन पर ही ‘हाइपर’ हो जाता था जिससे आवाज़ स्पीकर से बाहर आने लगती थी। उसके सहयात्री उसे प्रश्नवाचक निग़ाहों से देखने लगते थे।

जिससे अक्षिता ‘इम्बैरेस’ महसूस करती। तब अक्षिता कभी – कभी फोन नहीं उठाती। इस बात पर वह बुरी तरह से अक्षिता पर क्रोधित होकर कहता-” फोन क्यों नहीं उठाया? मज़ा आता है तुम्हें औरों के साथ ट्रेवल करने में। हां! मेरा फोन क्यों उठायेगी ? डिस्टर्ब जो हो जाएगी।”

तरह- तरह के इल्जाम लगाता अक्षिता पर। ऐसी हरकत पर वह बहुत आहत होती। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आकाश ऐसा क्यों होता जा रहा है। जितना ही वह उसे समझाती और ठंडे दिमाग से सोचने को कहती,आकाश और बिफर पड़ता।

इसी तरह कई महीने निकल गए। आकाश लगातार अक्षिता को लेकर शक के घेरे  में स्वयं को और उलझाता रहा। अक्षिता अपने और आकाश के सम्बंध को लेकर काफी तनाव में रहने लगी। आकाश के व्यवहार को लेकर वह बहुत हैरान व परेशान हो गयी थी।

उसे समझाने का हर प्रयास असफल रहा। उसे लगने लगा कि इस सम्बंध को और ज्यादा वह आगे नहीं बढ़ा सकती। अब और जरा भी आगे बढ़ाने की कोशिश वह करेगी तो स्वयं उसका मानसिक संतुलन बनाये रखना मुश्किल हो जाएगा।

इसलिये आज ऑफिस से छुट्टी लेकर आकाश से मिल इस सम्बंध को यही विराम देने की मंशा जताई। एक- एक कप कॉफी पीकर बड़े ही मधुर ढंग से अक्षिता ने घिसट रहे इस सम्बंध को स्थगित कर आगे बढ़ने का निर्णय आकाश को सुना दिया। 

           — डॉ उर्मिला शर्मा

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