शब्दों के तीर, प्रभु के ह्रदय को गये चीर, – सुषमा यादव

एक बिल्कुल सत्य कहानी लेकर मैं आप की सेवा में फिर से हाजिर नाजिर हुई हूं,, आप की प्यारी प्रतिक्रया का हमेशा की तरह बेसब्री से इंतज़ार रहेगा, धन्यवाद

कभी भी क्रोध में विवेक खोकर किसी को भी अपशब्द

अपमान रूपी तीर से घायल मत करिए,, बोलने वाला, सुनने वाला भी कुछ दिन में भूल जायेगा, परंतु ईश्वर

कभी नहीं भूलेगा,,

,, बंदूक से निकली गोली और मुख से निकली बोली कभी वापस नहीं हो सकती, दोनों व्यक्ति को लहूलुहान कर देती है,, एक शरीर को तो दूसरी आत्मा को,,,

,,, एक खूबसूरत सा शादी का निमंत्रण पत्र मिला,, नाम पढ़ते ही मेरे आंखों से आंसूओं की बरसात होने लगी ,,टप टप आंसू कार्ड पर गिरने लगे,, आंखें धुंधलाने लगी, और दूर कहीं यादों के झरोखों में कुछ ढूंढने लगी,,,,,

,आप कहेंगे,भला शादी की खुशी में भी कोई आंसू बहाता है,, नहीं,,जी,ये तो किसी की कामयाबी और सफलता के खुशी में बहाये गये आंसू हैं,,


मैं अपने स्कूल के आफिस में सबके साथ बैठी थी कि एक लंबी

गेहुंआ रंग की सुघड़ नैन नक्श वाली एक युवती ने प्रवेश किया,हम सब उसे देखते रहे, अपलक निहारते हुए,

प्रिंसिपल सर ने पूछा,, कहिए,

उसने कहा,वो ज्वाइन करने आई है,,उसका नाम कांति था,,एम ए,

हिंदी से प्रथम श्रेणी,,

पता नहीं, हमारे उसके बीच ऐसा क्या था,कि हम दोनों की दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी, कांति एक गरीब मां की इकलौती बेटी थी,

दारिदर्य की झोपड़ी में एक बुद्धिमान, होनहार हंसमुख, शांत,गायक, और गंभीर प्रकृति

की शिक्षिका ने जन्म लिया था,

मां ने औरों के घर मेहनत मजदूरी कर के अपनी बेटी को इतने ऊंचे मुकाम पर पहुंचाया,,

, उसने अपने जीवन की हर सच्चाई से अवगत करा दिया था मुझे,,वो इस शहर में अकेले कमरा लेकर रहती थी, उसके बगल मे शिक्षा विभाग के बाबू रहते थे,, उनकी पत्नी तीन बच्चों को छोड़कर हमेशा के लिए सबसे विदा ले चुकी थी,,वो बच्चे गांव में अपने दादा दादी के साथ संयुक्त परिवार में रहते थे,,


धीरे धीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी और चुंकि एक ही जाति के थे, उनकी पत्नी का तो बहुत पहले ही देहांत हो चुका था, अतः बिना किसी रुकावट के दोनों की शादी हो गई,,

कांति बहुत खुश रहती,, खूब सज कर स्कूल आती,, उसके पति भी मुझे और मेरे परिवार को बहुत सम्मान देते,,सब कुछ बहुत ही बेहतरीन तरीके से चल रहा था कि एक दिन कांति मेरे पास आई और रुआंसे होकर बोली कि, मैडम, मैं कभी मां नहीं बन सकती,, मैंने हंसते हुए कहा, अरे, इतनी जल्दी क्या है?? अभी तो दो साल हुए हैं,, कुछ देर चुप रहने के बाद बोली,, इन्होंने फैमिली प्लानिंग कर ली है,अपना आपरेशन करवा लिया है, और मुझे बताया तक नहीं,, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे,,

मैं कुछ देर सकते में आ गई, फिर मैंने उसे समझाते हुए कहा,, कोई बात नहीं, कांति,,तुम दोनों ने सच्चा प्यार किया था, उन्हें सब बातें तुम्हें बता देना था,पर अब क्या हो सकता है,, तुम मेरी एक बात मानोगी,,जी बताइए,, मैंने कहा,, उनके दो बेटे और एक बेटी है ना,वो सब तुम्हें मम्मी कह कर पुकारते हैं,, तो तुम अपने मातृत्व का सुख उन्हीं में देखो,, जिनके किसी कारण से बच्चे नहीं होते हैं, उनके दुःख को महसूस करो, तुम्हें तो भगवान ने पले पलाये तीन बच्चे दिये हैं,,है तो आखिर तुम्हारे अपने प्यार अपने पति के ही तो हैं,,

, शुक्र है कि उसने मेरा कहना माना और उन बच्चों की सगी मां बन गई, उसके बाद कभी भी इस बात की कोई शिक़ायत नहीं की,

कुछ सालों बाद एक और शिक्षिका ने ज्वाइन किया,, सोनिया ने,, उसके प्यारे प्यारे दो

छोटे बच्चे थे, मेरी भी एक बेटी हो

गई थी ,, कांति मेरी दो महीने की बेटी को बहुत प्यार करती, खूब खिलाती,, शाय़द छोटे बच्चे को अपनी गोद में नहीं ले पाई थी, अतः सारा मातृत्व उस पर उड़ेल देती,, वो कभी कभी उसे स्कूल भी लेकर पहुंच जाती, पास में ही था,सब उसके इस जनून को देख कर मुझे टोकते,पर मैं मुस्करा कर अनदेखा कर देती,,


एक दिन स्कूल में सोनिया मैडम अपने तीन साल के बेटे को लेकर आई, कांति अक्सर उसके बच्चों को खिलाती थी,उस दिन भी वो भाग कर बच्चे के पास आई और प्यार करते हुए उसके गालों को जोर से खींचते हुए दो चार पप्पी ले डाली, बच्चा इस आकस्मिक प्रेम दुलार से घबराकर रोने लगा, यह देखकर बच्चे की मां चिल्लाते हुए बोली,, आपने मेरे बेटे को क्यों रुलाया,, उसके गाल लाल हो गये हैं,, उसकी आंखों से अंगारे बरस रहे थे,,, ज़बान से दहकते शोले निकले,,,,आप क्या जानें, बच्चे का दर्द क्या होता है,

,बांझ कहीं की,,निपूती,, एक बच्चा पैदा कर के दिखाओ,तो जानूं,,, कांति के साथ ही पूरा स्टाफ स्तब्ध रह गया था, सोनिया अपने बेटे को लेकर चली गई,सब लोग कांति को दयनीय,कातर निगाहों से देखते हुए बोलते रहे, मैडम को इस तरह नहीं कहना चाहिए,, कांति आंखों में आसूं भरे

सीधे अपने घर चली गई,,

सब अफ़सोस जाहिर कर रहे थे, बेचारी को इतने सालों बाद भी एक बच्चा नहीं हुआ,, लेकिन हकीकत तो मैं जानती थी कि क्यों नहीं वो‌ मां बन सकती,

शाम को उसके पति मेरे घर आये और बोले,, मैडम, कांति को क्या हो गया, किसी ने कुछ कहा क्या,बस रोये जा रही है, खाना पीना सब बंद कर दिया है, मैं क्या कहती,किस मुंह से कहती,,

, मैं उनके घर गई और अपनी नन्हीं सी बच्ची को उसके गोद में डाल दिया, आज़ से ये तुम्हारी बेटी है,, और चुपचाप दूसरे कमरे में आ गई, थोड़ी देर वो रोती रही, बच्ची भी बिलखने लगी,,पर मैंने नहीं लिया,, अचानक कांति उठी और उसे अपने सीने से लगा कर पुचकारने लगी,हम दोनों ने संतोष की सांस ली,, और शायद उसके पति भी समझ चुके थे,

ऐसा लग रहा था कि सब कुछ शांत हो गया है,, कांति भी मेरी बेटी पर अपनी पूरी ममता उड़ेल रही थी,,हम कहीं भी जाते, वो उसकी गोद में ही रहती, यहां तक कि पिक्चर हॉल में भी,, उसे बुरा ना लगे इसलिए मैं कुछ नहीं कहती,,उसका जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया करती,, तीन साल की होने पर वो रीना की गुरु बन कर पहला अक्षर ज्ञान कराई थी,, आज़ भी हम उसे रीना की गुरु मां कह कर संबोधित करते हैं,


, हम सब सोनिया की उस कड़वी बातें भूल चुके थे,पर कांति और उसके पति के साथ ऊपर वाला नहीं भूल सका था,, सोनिया की वाणी के तीर ने कांति के साथ ही भगवान के ह्रदय को भी चीर कर दिया था,,उनका भी दिल लहूलुहान कर दिया था,

,, शायद उसके पति को ये जानकारी हो गई थी,, और अंदर ही अंदर कांति का ये दुःख उन्हें खाये जा रहा था, बहुत सदमा लगा था, एक दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा,, और वो सबको रोता बिलखता छोड़ कर चले गए,,

उसने अपने पति के परिवार की सब जिम्मेदारी संभाली, तीनों बच्चों को अपने पास रख कर पढ़ाया लिखाया, और शादी भी कर दी,,

कांति की उम्र अपने पति से बहुत कम थी,, एक दिन मैंने उसे दूसरी शादी के लिए मनाया, और कुछ दिनों में उसकी शादी एक शिक्षक से हो गई ,,

एक साल के बाद ही प्यारा बेटा उसकी गोद में खेलने लगा, और आज़ वो एक वकील बन गया है,,

उसकी शादी का कार्ड देखकर मैं अपने आंसू खुशी के मारे रोक नहीं सकी,,

कांति ने भी पी एच डी कर लिया था और आज वो प्रोफेसर पद से रिटायर हो गई है,,पति शिक्षक ही थे पर उनके विवाहित जीवन पर इसका कोई असर नहीं हुआ,

, भगवान की लीला अपरंपार है,,

उनकी नजर सब पर रहती है,,हम किसी को दुःख देकर,चोट पहुंचा कर भूल सकते हैं,,पर वो नहीं भूलता, समय आने पर सबका हिसाब किताब करता है,,

उसने कांति के दाग़ को हमेशा के लिए धो दिया,,,


, मैंने प्रभू का हार्दिक धन्यवाद आभार व्यक्त किया और कांति को बधाई

देने के लिए मोबाइल उठा लिया,,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित मौलिक,, अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!