शामली – लतिका श्रीवास्तव

…अब दूल्हे की भाभी दूल्हे को काजल लगाएगी दूल्हा नेग देगा…..भाभी को बुलाओ पंडित जी की आवाज सुनते ही शामली तुरंत काजल की डिब्बी लेकर आ गई …भाई जी की सारी अलाये बलाए दूर….बुरी नजर बुरी आफ़त से दूर हों… दुआएं देते हुए भाभी ने शुभ्र की आंखों में काला काजल लगाया तो शुभ्र की आंखों में पश्चाताप सम्मान और हर्ष मिश्रित अश्रुकण झिलमिला उठे थे.. अरे ये क्या नेग देने के नाम से ही आंसू आ गए भाईजी ….शामली का मधुर तंज सुनते ही शुभ्र अपना पूरा वॉलेट भाभी के चरणों में रख दंडवत हो गया था…भाभीजी आपको मैं क्या दे सकता हूं…सब आपका ही दिया हुआ है……अरे अरे भाईजी आज आप सेहरा सजाए हैं…उठिए … दोनों हाथों से शुभ्र को उठाते हुए शामली को अचानक अपनी शादी के बाद के वो दिन याद आ गए थे….

शादी के तीसरे दिन सुबह की ही बात थी….

…..जैसे ही शामली ने अपने कपड़े उठाए ऐसा लगा किसी ने उन्हें अस्त व्यस्त कर दिया हो…. मैंने तो शाम को सभी कपड़े तह कर के ही रखे थे ….सिर्फ मेरे ही कपड़ों से छेड़छाड़ है ..!!मेरा भ्रम होगा सोच कर वो जल्दी से नहाने चली गई …सोचने विचारने में देर हो गई तो सासू मां की पूजा की तैयारी में देर हो जायेगी ….फिर ससुर जी की चाय में भी देर हो जायेगी…नहा धो कर ही किचन में जाना है ससुराल का यही कायदा है… मां की ताकीद याद आ गई बेटा सबको अपने काम से खुश करते रहना किसी को तेरे से शिकायत का मौका ना मिले….”…नहाने गई तो अपना शैंपू भी उसे अलग जगह पर मिला ऐसा लगा किसी ने उसे भी उठाया रखा है… सुबह अपना टूथ ब्रश भी जमीन पर पड़ा मिला था…!शामली का दिल जाने क्यों आशंकित हो उठा था…!




जल्दी से तैयार होकर जैसे ही नीचे पूजा कक्ष से सटे हाल में पहुंची …. गुड मॉर्निंग ब्यूटीफुल …..सुनते ही पलट के पीछे देखा तो …भाभी …भाभी जी…कहते हुए अपने बड़े देवर शुभ्र को खड़ा पाया…काम की व्यस्तता से वो शादी में नहीं आ पाए थे…कल देर रात घर आए थे…!गुड मॉर्निंग भाई जी..कह कर शामली जल्दी से पूजा कक्ष में चली तो गई परंतु वो दो जोड़ी आंखें मानो उसके वजूद को समूचा निगल गईं थीं।

मां तुम्हारी पूजा के चक्कर में चाय भी नहीं मिलेगी क्या घर में..!शामली को पूजा कक्ष से ना निकलते देख शुभ्र ने अधीरता से आवाज लगाना शुरू किया तो मां ने हंसते हुए शामली को …जा बेटा उसे चाय दे आ….बड़े सबेरे से जब से आया है तुझे देखने और मिलने को अधीर है….शादी में तो आ नहीं पाया था ना तो तुझसे नखरे करवाने की इच्छा हो रही होगी जा उसके पास बैठ के थोड़ी बातें कर ले…अपने भैया मेहुल से तो इसकी बातचीत होती नहीं है भाभी से तो होगी ही..!आज मां की प्रसन्नता का पारावार ना था..।

….जी मां अभी चाय बनाती हूं कहती वो तुरंत किचेन में आकर चाय बनाने लगी साथ ही पिताजी की पसंद के चावल के चीले की तैयारी में मग्न हो गई….अरे मेरी स्वीट भाभी जी आप तो फोटो से कहीं ज्यादा स्वीटर हो…. मैं तो बस आपसे ही मिलने के लिए सारे काम छोड़ कर दौड़ता चला आ रहा हूं…देखिए और आप हैं कि कहीं पूजा कहीं किचेन….इन सब में व्यस्त हैं अब तो मां ने भी हमारा ही ख्याल रखने के लिए कहा है ना तो फिर आइए हमारे साथ गप्पे मारिए….जैसे ही शामली ने शुभ्र को चाय दिया उसने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास जबरदस्ती ही बिठा लिया था…!




शालीन सी शामली बहुत असहज महसूस करने लगी थी….इस तरह की बातें इस तरह का व्यवहार उसके संस्कारों  में अमर्यादित आचरण की श्रेणी में आते थे…वो एक मध्यम परिवार की सीधी शालीन लड़की थी संयुक्त परिवार को संभाल कर रखने वाली उसकी मां ने उसे बहुत मीठे कोमल पर कठोर संस्कार दिए थे जिसमे अदब और आचरण के साथ साथ बोलचाल शब्दावली की मर्यादा भी शामिल थी…उसने खुद भी ज्यादा बात करना जवाब देना सीखा ही नहीं था …जी भाई जी वो पिताजी के नाश्ते का टाइम हो गया है कहती हुई वो झपाटे से उठकर किचन में समा गई थी।

अपने पति मेहुल और बाकी घरवालों से बस इतना ही उसे पता लग पाया था कि शुभ्र कॉलेज टाइम से ही काफी अलग स्वतंत्र विचारों वाले जिद्दी और मनचाहा करने के आदी हैं….इन्ही सब वजहों से गंभीर सौम्य बड़े भाई मेहुल से उनकी नहीं बनती थी और अभी बोलचाल बन्द होने की नौबत है…रिटायर्ड पिता जी शांत ही रहते हैं मां का भरपूर समर्थन अपने बिगड़ैल पुत्र को मिलता रहता है…मां के बहुत ज्यादा  समझाने बुझाने पर ही शादी के बाद  शुभ्र घर आए हैं वरना तो मेहुल से लड़ाई के बाद कभी घर नहीं आने  का संकल्प कर लिए थे।

अरे शामली यहां क्या कर रही है जा बेटा शुभ्र बुला रहा है तुझे.. कितने महंगे उपहार अपनी नई नवेली भाभी के लिए लेकर आया है जा जाकर देख …उसका व्यवहार उसका स्वभाव थोड़ा अलग है तू हैरान नहीं होना…मेरे तो यही दो बेटे हैं अब तू आई है मैं नहीं चाहती मेरा घर बिखरे ….देख मैं शुभ्र को बहुत मुश्किल से घर बुलवाई हूं …उसे कोई बात बुरी लगे दुखी करे मैं ऐसा हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करूंगी…मां की नजरों में आदेश था या आग्रह ..!शामली सोचती रह गई थी।




देखो भाभी ये साड़ी तो आपके लिए ही बनी है लगता है….ढेर भर महंगे आकषर्क उपहारों को दिखलाता उत्साही शुभ्र वो मजेंडा कलर की साड़ी उसके कंधे पर रख सेट ही करने लग गया था और वहीं पर लगे विशाल दर्पण के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया था … व्हाट ए ब्यूटी भाभी …तुम पर तो हर ड्रेस हर रंग जंचता है….भाभी जी से भाभी…आप से तुम …इतनी जल्दी शुभ्र की बदलती शैली शामली को दुश्चिंता में डाल रही थी…!भाभी डियर अब तुम जाओ फटाफट ये नई ड्रेस पहन कर आ जाओ तुम्हे लेकर लॉन्ग ड्राइव पर जाना है अपना पूरा शहर तुम्हे घुमाना है मैं भी रेडी होकर आता हूं..और हां मां सुनो ..जब तक मैं यहां हूं ये अपना किचन तुम्हीं संभालो भाभी को फ्री करो…हंसते हुए वो चला गया।

सुनिए ….शुभ्र भाई जी लॉन्ग ड्राइव पर जाने के लिए बोल रहे हैं आप भी चलिए ना साथ में…शामली ने अपने कमरे में आते ही बड़ी हिम्मत करके मेहुल से जोर देकर कहा तो मेहुल उसका चेहरा देख कर आश्चर्य में पड़ गया..”” अरे शामली तुम इतनी नर्वस क्यों हो रही हो वो मेरा भाई है भले ही मेरे से उसका वैमनस्य है पर तुम्हारे प्रति उसका स्नेह अतुलित है…वो थोड़ा ज्यादा ही मनमौजी है अब तुम्हें ही उसकी जिम्मेदारी लेनी होगी ठीक तो है जाओ उसके साथ घूम आओ ….तुम भी उसको समझ लोगी..!आज सन्डे है मैं तो अभी एक घंटा और सोऊंगा और ऑफिस का बहुत सा पेंडिंग काम भी करना है फिर… कहता वो वापिस नींद में चला गया।

दुविधा और दुश्चिंता से घिरी थी शामली अभी मेहुल को तो समझ नहीं पाई थी वो….आज तक अपने पति के साथ तो लॉन्ग ड्राइव या बाहर गई नहीं थी और इतनी जल्दी इस बेबाक शुभ्र को समझ ले …जिम्मेदारी ले ले….घर बिखरने से बचा ले…!




दिन पर दिन शुभ्र का व्यवहार उसके प्रति अत्यधिक खुलता जा रहा था…शामली कैसे बैठे उठे…कैसे हंसे कैसे तैयार हो…कौन सी साड़ी कौन सा सूट कब पहने… सबमें शुभ्र का निर्बाध हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था… उस सुबह के बाद से उसे रोज शाम को अपने तहाए हुए कपड़े शुभ्र के कपड़ों के साथ रखे हुए मिलते थे…शुभ्र का टूथ ब्रश उसके टूथ ब्रश के साथ देख उसका रक्त खौलने लगता था… घर और घर के लोग अत्यधिक प्रसन्न थे उनका बिगड़ा बेटा शुभ्र सुधर गया है …कहां तो घर ही नहीं आता था और अब है कि घर से जाना ही नहीं चाहता …छुट्टियां बढाता ही जा रहा है…।

मेरी शादी जिस व्यक्ति से हुई है उसके साथ तो मैं समय ही नहीं बिता पाती हूं…ना उनके साथ कहीं घूमना ना फिल्म…कभी कभी तो शामली को अपने पति की  खामोशी और अपनी नई नवेली दुल्हन के प्रति बेपरवाही बुरी तरह खल जाती थी…. मां कहती घर का सबसे बड़ा है गंभीर है..संकोची है..!!अरे पर ऐसा भी क्या संकोच अपनी ही पत्नी से!!..मेरे पति को मेरे साथ समय बिताने में कोई रुचि उत्साह नहीं है …शुभ्र भाईजी बेइंतहा ख्याल करते रहते हैं…खास कर के मेहुल के सुबह ऑफिस  के लिए निकलते ही ….!!इस विचार से ही वोअसहज हो उठी।

मां कहती है अरे दो चार दिन में चला जायेगा शुभ्र फिर तो तुम दोनो ही यहां बचोगे जो चाहे करना जहां चाहे जाना अभी जब तक वो यहां है उसका ख्याल रखो.. उसका स्नेह है बाकी घरवालों से तो उसकी कोई बात चीत ही नही होती सिर्फ तेरे कारण वो यहां रुका है कितना ख्याल रखता है अपनी भाभी का…  मां का अपने बिगड़ैल  पुत्र के प्रति अंधा अनुराग और किसी भी कीमत पर घर पर रोकने का रवैया शामली को अंदर से अक्रोशित कर देता था…पर सासू मां की बात काटना अवज्ञा करना उसके मासूम संस्कारों को आहत करता था..!




मर्यादा और संस्कार उसकी रग रग में बसे थे..आज हर रिश्ते की मर्यादा निभाने की चुनौती उसके समक्ष विकराल रूप में उपस्थित थी।

आज तो शुभ्र ने शहर से काफी दूर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया था….मेहुल को ऑफिस का काम था मां पिताजी की देख भाल में व्यस्त थी …शामली को सुबह जल्दी से तैयार हो जाने की हिदायत देकर शुभ्र मुसकुराता हुआ सोने चला गया था…शामली का दिल कांप रहा था उसे पिकनिक पर जाने का बिलकुल मन नहीं था मां से कहने पर मां की पुत्र मोह की दलीलें….क्या करे शामली किससे कहे अपने मन का चोर…!मां उसे गलत समझने लगेगी हमेशा के लिए भाई भाई में दरार आ जायेगी वैसे ही दोनो  भाईयो में मनमुटाव की स्थिति रहती है…!पर अगर आज नहीं बोलेगी तो फिर कब बोलेगी..!!

…..सुनिए मुझे आप से एक बात कहनी है आखिर में हिम्मत करके उसने मुंह खोला मेहुल के सामने ….”कल फिर से शुभ्र भाई जी ने पिकनिक का प्रोग्राम बनाया है …हां तो जाओ ना बढ़िया तो है ….हमेशा की तरह मेहुल ने कहा तो शामली के सब्र का बांध टूट गया  …””क्यों क्यों जाऊं मैं ही क्यों जाऊं घर के बाकी लोग भी क्यों नहीं जाएं!!मुझसे तो अभी दो चार दिनों की मुलाकात है पूरे घरवालो के साथ कहीं जाने का प्रोग्राम क्यों नहीं बनाते….उनकी इच्छा है  उनकी इच्छा है ….!और मेरी इच्छा क्या है किसी को कोई फिक्र है…!

मेहुल  अपनी खामोश रहने वाली नई नवेली पत्नी को अप्रत्याशित रूप से इस तरह बिफरते हुए देख कर सकते में आ गए थे….अरे शामली क्या हुआ !!ऐसा नहीं है तुम्हारी इच्छा का ख्याल क्यों नही रखा जायेगा!!पर देखो मैं तो कितना व्यस्त रहता हूं अच्छा तो है शुभ्र के आने से तुम्हे घूमने और बात करने का साथ मिल गया है!!क्या तुम्हे घूमना पसंद नही है!!

…”पसंद है सब कुछ पसंद है मेहुल पर आपके साथ !!आप भी साथ में चलिए नहीं तो मैं नही जाऊंगी….आप क्यों नहीं बात करते अपने भाई से …क्यों नहीं बैठते साथ में.. और आज के बाद से जब तक आप साथ में नहीं चलेंगे मैं शुभ्र भाईजी के साथ अकेले कभी कहीं नहीं जाऊंगी ..!बस यही मेरा आखिरी फैसला है….जाने कौन सी हिम्मत से ये सब कह कर शामली तत्काल पिता जी को दूध और दवा देने चली गई थी।




मेहुल आश्चर्य चकित था….. अपनी शांत रहने वाली वाली पत्नी के इस व्यवहार ने उसे उद्विग्न कर दिया था।

दूसरी सुबह शामली के साथ मेहुल को देख कर तो शुभ्र को जैसे सांप ही सूंघ गया था ….भाभी भैया को आज ऑफिस नहीं जाना है क्या!!!भैया से तो बोल चाल बंद थी…हां मेरे भाई आज ऑफिस की छुट्टी…. जब से तू आया है एक घंटे के लिए भी तेरे साथ समय नहीं निकाल पाया मैं …आज तुम लोगो के साथ  पिकनिक पर सारी कसर निकाल लूंगा क्यों शामली कहते हुए मेहुल ने बड़े प्यार और अधिकार से सबके सामने ही शामली का हाथ पकड़ लिया….!जी भाई जी चलिए सब तैयारी हो गई है पिकनिक की .. आज खुलकर चहकती हुई भाभी और बदले हुए भैया को देख कर ही शुभ्र मानो सब कुछ समझ गया था…!जी भाभी जी मैं कार निकालता हूं आप लोग आइए कहता वो तेजी से गैरेज की ओर बढ़ गया था।

वो पूरा दिन शामली ने शुभ्र और मेहुल की आपसी आत्मीयता और अपनत्व को उभारने में लगा दिया था..पिकनिक के अनौपचारिक माहौल में आज कई बरसों के बाद मानो शुभ्र को अपने बड़े भाई का स्नेह भाभी के निश्छल असीम स्नेह में पगा हुआ मिला था ….भाई और भाभी के आपसी रिश्ते जैसे आज ही वो समझ पाया था…अपने मन के अंदर पनपते हुए दूषित विचारों को आज इस निर्मल स्नेह की सरिता में उसने विसर्जित कर दिया था ।

उस दिन के बाद से ही वो जिद्दी शुभ्र विनम्र शुभ्र में तब्दील हो गया था…मां ने मौके का फायदा उठाते हुए तुरंत शामली के सामने ही शुभ्र की शादी के लिए लड़की पसंद करवा ली थी .. और बस अब चट मंगनी पट ब्याह…आज मंगल गीत ढोल और शाहनाइयो की मीठी स्वरलहरियो के बीच एक तरफ मां और दूसरी तरफ से शामली अपने अपने स्नेह आंचल की ओट करके शुभ्र को नए जीवन की डगर दिखाने  ले जा रहे थे।

#5वां_जन्मोत्सव 

लतिका श्रीवास्तव 

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