सयानी – नीरजा कृष्णा

वो ऑफ़िस से लौटी। हमेशा की तरह घर में लड़ाई झगड़ा मचा हुआ था। धड़कते दिल से घुसी…वही रोज वाली किचकिच… अम्माँ सलोनी के पीछे पड़ी थीं,”जरा उठ जा ।थोड़ी मेरी मदद कर दे। अभी शालू थकी हारी आएगी, उसके लिए कुछ नाश्ता बनवा ले। सुमित भी दो बार कुछ खाने को माँग चुका है। मैं अकेली कितना करूँ”

तब तक वो अंदर आ गई थी और प्यार से बोली,”अम्माँ ,आप इतना परेशान क्यों हो रही हैं। आज शायद सरला बाई भी नहीं आई। कोई बात नहीं। मैं कुछ करती हूँ सबके लिए”

थकी हारी बहू से काम कराना उन्हें सुहाता नहीं था। बेटे की अकाल मृत्यु के बाद उसी ने तो घर द्वार ऑफिस सब सम्हाल लिया था। शाम को घर में ट्यूशन भी करती है।वो  पोती सलोनी के पीछे ही पड़ी रहती,”बेटा, अब तू सयानी हो रही हैं, तुझे दूसरे घर की शोभा बनना है।कुछ सीख ले, थोड़ा माँ पर भी रहम कर लिया कर। वो बेचारी कितनी थकी टूटी रहती है”

सलोनी काफ़ी मदद करती रहती थी।उस पर भी तो पढ़ाई का बहुत लोड रहता है। आज वो झुंझला कर चिल्ला पड़ी थी,”दादी, आप मेरे ही पीछे क्यों पड़ी रहती हो। भैया तो मुझसे बड़ा है। उससे तो आप कोई काम नही करवातीं”

दादीजी प्यार से समझाने लगी,”चौका चूल्हा तो लड़कियों का ही काम है ना। तुझे सयानी बनने को कहती हूँ…तुझे ये घर छोड़ कर अगले घर जाना है”

सलोनी तो पहले ही बारूद के ढ़ेर पर बैठी थी,ये बात कह कर दादीजी ने जैसे सुलगती सिगरेट ही हाथ में थमा दी हो।वो बुरी तरह खिसिया गई,”ये सब पुरानी बातें हो गई दादी।अब तो लड़कियों को कराटे और लड़कों को पराँठे बनाना सिखाया जाता है”

दादीजी हँसने लगी …वो और चिढ़ गई,”आप सब मुझे ही सयानी बनने की शिक्षा देते हो।भैया को सयाना बनने को नही कहते हो,कोई उसके लिए भी तो अपना घर छोड़ कर सयानी बन कर आऐगी।”

नीरजा कृष्णा

पटनासिटी

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