सत्संग – अनुज सारस्वत

सुबह का समय था दादी घर के मंदिर में सभी भगवानों को स्नान करा रही थी उनके पास बेटे का गिफ्ट करा हुआ बलूटूथ स्पीकर था जिस पर हल्की मध्यम आवाज में भजन बज रहा था।

“श्याम से मिलने का सत्संग एक ठिकाना है ।

कृष्ण से प्रीत लगी उनको भी निभाना है।

एक दिन पहले घर में फंक्शन था तो सारे तो पोते पोती भी आये हुए थे कुछ शहरों से कुछ विदेश से कोई इंजीनियर कोई डाक्टर थे।दादी भी भजन गुनगुना रहीं थी सब चुपचाप पीछे आकर बैठ गये।और उनमें से एक पोती बोली।

“दादी हमारे मन में कुछ बात हैं आप बताओ “

यह जो सत्संग टाईप की चीजें होती हैं यह सब आउटडेटेड या सिर्फ बूढ़े लोगों के लिये ही होती या जो कुछ लोग अपने जीवन में नही कर पाते वो सार्थक कर इन चीजों में दिमाग लगा लेते आज के यूथ को क्या जरूरत है यह राम कथा,भागवत सुनने की सबके अपने लक्ष्य है और वो उसी पर चल रहे हैं इन सब चीजों में क्या हैं।”

दादी ने भगवान को पोशाक पहनाते हुए कहा

“सही कह रहे हो बच्चों आउटडेटेड तो हैं।अच्छा एक बात बताओ तुम्हें अपनी बारहवीं के सब्जेक्ट याद हैं।”


वो बोली हाँ दादी

“फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथ,हिन्दी, इंग्लिश”

दादी बोली

“शाबाश

अच्छा अपने वेद,पुराण कितने हैं ?”

पोती बोली

“अब ये कहाँ से बात आ गई ? हमें क्या पता और क्या फायदा जानकर भी,पता नही क्यों लिखे यह ?आपको पता है दादी”

दादी हँसी और बोली

“कोई बात नही चलो कुछ बताती हूँ।

देखो अपने चार वेद हैं अर्थात भगवान की वाणी इन्ही के आधार पर ज्ञान विज्ञान का प्रसार हुआ।

ऋग्वेद -लगभग 10,000 गूढ़ मंत्रो से सुसज्जित है इसकी विशेषता यह है सारे मंत्र कविता और छंद के रूप मे हैं।

सामवेद-इसमें तक़रीबन 1975 मंत्र हैं जिसमें अलौकिक देवताओं की उपासना के लिए गान है।

यजुर्वेद-इसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण को परिभाषित करते हुए क्रिया और यज्ञ के महत्व को विस्तार से बताया हैं लगभग 3750 मंत्रों के साथ।


अथर्ववेद-इसमें तुम्हारे सारे आयुर्वेद को परिभाषित किया गया है लगभग 7260 मंत्रों के साथ।

यह सब सुनकर उन सबके मुँह खुले रह ये और बोले

” दादी आप रूको नही बताती चलो “

दादी ने आरती करने के पश्चात बैठ गयीं और बताना शुरू किया

” कि वेद 4 हैं पुराण 18 हैं और 108 उपनिषद हैं

वेदों की भाषा बहुत जटिल है परम ज्ञानी और संस्कृत विद्वान है वही जान सकते। जैसे हर कोई तो अंतरिक्ष यात्री नही बन सकता उसके लिए कोर्स होता है। जो बेहतर अध्यापकों के सानिध्य में पूरा होता है।

इस व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए ऋषि मुनियों ने गुरूकुल बनाये।पर समय के साथ गिनेचुने बचे हैं।अब आजकल तो कोई संस्कृत समझता भी नही यह सब उन दूरदृष्टा ऋषियों को पता था, इसलिए उन्होंने पुराणों को रचा पुराण कहानियों के माध्यम से सरल तरीके से वेदों की बात हमारे तक पहुंचाते हैं। अब बात आती है कि ये 18 पुराण कौन पढ़े ,अपने कोर्स की 100 किताबें तो हम दिन रात करकर के चाट जायें।मानव अपने जीवनकाल में एक भी पढ़ ले तो बहुत। फिर लगभग 5500 हजार वर्ष पूर्व गीता का प्राकट्य भगवान के श्री मुख से हुआ उसमें केवल 18 अध्यायों में संपूर्ण वेद ,वेदांत समा गये सरल भाषा में।और तुम्हें पता है,

यह जो सब कथा भागवत बांचते हैं यह अधिकतर गुरू की शरण में गुरूकुल रीती से सीखते हैं स्पेशलिस्ट बनते है वेद पुराणों के ।कोई कोई अपवाद भी हैं क्योंकि कलयुग मति फेरने में उस्ताद है।


तो मै कह रही थी कि तुम्हारे अमेरिका के गणित और फिजिक्स के प्रोफेसर डा•स्टुअर्ट हेमरआफ ने 20 साल के शोध में गीता के परम वाक्य

“आत्मा अजर अमर है”

के आधार पर शोध किया और बताया कि बड़ी संख्या में ऊर्जा के सूक्ष्म स्तोत्र अणु मिलकर एक क्वांटम स्टेट तैयार करते हैं जो वास्तव में चेतना या आत्मा है।

जिसको नष्ट नही किया जा सकता।

यह वेद कोई पोंगापंथ नही है।परन्तु हम खुद की अपनी संस्कृति की टांग खींचने मे माहिर है तो विदेशी तो राज करेंगे ही।

आज के समय में जितने भी मोटिवेशनल कंसल्टेंट है भारत में सबके केंद्र में गीता ,रामायण, महाभारत, शिव पुराण रहती है और एक प्रख्यात मोटिवेशनल गुरू सबसे गूढ़ ज्ञान वाली अष्टावक्र गीता पढ़ता है सुनाता है।यही काम हमारे कथा कहने वाले लोग पुरातन काल से करते आ रहे मानव चेतना ही तो जगानी है सबका उद्देश्य पर कहते है ना घर का ज्ञान या फ्री का ज्ञान नही समझते और यह बुजुर्गों के लिये नही रचे गये हैं अरे बुजुर्ग क्या सुनेंगे क्योंकि ना देखने को आँखे बचती ना कान सुनने लायक ज्ञान के लिये और हाँ यह ज्ञान पंगु नही बनाता।

ना उन लोगों के लिए जो इसके सहारे अपनी कमियों को छिपाते ना यह धर्म विशेष है।कोई भी किसी भी धर्म का सुन पढ़ सकता है।वो तो आततायी अगर विश्व का सबसे बड़ा नालंदा विश्वविद्यालय ना जलाते तो ज्ञान आज घर घर होता वहाँ कितनी पुरानी पांडुलिपियों का दहन हुआ फिर भी हमारे ज्ञानियों ने जले हुए पन्नों से बहुत कुछ निकाला।

सारे पोते पोतियाँ अवाक रह गये दादी के इस परम ज्ञान से।

फिर बोले दादी हम तो यही समझता थे कि बाहर जाकर ज्ञान मिलता आपतो ज्ञान का सागर हो। हमारी आँखे खुल गयी गलती से भी वेद वेदों की बुराई नही करेंगे।”


इतने में दरवाजे पर घंटी बजी एक पोता उठकर गया देखा कोरियर वाला भारी सा पैकेट लाया था।

आकर दादी के सामने खोला तो वह

एक प्रख्यात अमेरिकन कालेज की बुक थी दादी के लिये।एक गोल्ड  के पत्र के साथ। और लिखा था उसपर

“आपको वेदों के सार को परिभाषित करने के लिए हमारी यूनिवर्सिटी की तरफ से आपकी यह बुक और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है ,हमने आपके जैसा निष्काम कोई नही देखा जिसने 11साल की रिसर्च हमें तुरंत बिना किसी शुल्क के साथ दी और पुरूस्कार के लिए भी नही आये ,यह आपकी उदारता है आप जैसे लोगों ने अपना इतिहास बचाकर रखा है आज से हम लोग इन वेद पुराणों को इंडियन हिस्ट्री के नाम से संबोधित करेंगे धन्यवाद “

यह सब देखकर सारे पोते पोति दण्डवत हो गये दादी सच में आप साक्षात सरस्वती देवी हो।

दादी बोली

“अरे चलो हटो पगलों यह तो बस ऐसे ही नेट पर फार्म भर दिया था।और सब मेरे बाबूजी की देन है प्रकांड पण्डित थे वह और प्रोफेसर भी।वही सब लिख तो रखा ही था।सब प्रभू की माया है उसे जो कराले इस देह से।मान सम्मान तो आता जाता रहता प्रभू हमेशा साथ रहते”

सब नतमस्तक हो गये।और उन्हें भी जीवन के लक्ष्य मिल गये।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित एवं मौलिक)

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