सतरंगी ख्वाब – तरन्नुम तन्हा

मैंने हमेशा इतने दुःस्वप्न देखे हैं कि बचपन का एक भी सतरंगी ख्वाब मुझे याद नहीं। मेरी पीड़ा, मुझे दर्दो-ज़लन होने तक, मेरे माता-पिता को परेशां करती रही, लेकिन मेरा दर्द से चीखना बंद होने पर, वे भी मुझे हिक़ारत से ही देखते। इसमें मैं उनकी गलती नहीं मानती, एक अधज़ले चेहरे वाली, भयानक सी दिखती बालिका से कोई भी डर जाए; फिर एक सुंदर सी छोटी बहन भी हो, तो वे उसे अधिक तवज्जो देंगे ही।

दस वर्ष की आयु में दीवाली के दिन किसी पटाखे से मेरा चेहरा जल गया था। ईश्वर की दया से आँख बच गई थी, सबको यही कहते सुना और यही मुझे याद भी रहा। मेरे लिए चेहरे से कहीं अधिक मेरी आँख ही मूल्यवान थी, तब। चेहरे की सुंदरता के मोल का बोध तो मुझे जवानी में हुआ जब हर तरफ तिरस्कार महसूस होने लगा।

निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार की जले चेहरे वाली लड़की से कौन शादी करेगा, को मैंने यह कह कर दरकिनार करने का प्रयास किया कि मैं शादी ही नहीं करूँगी। लेकिन फिर समाज क्या कहेगा, लड़की को घर में बिठा कर रखा है? बड़ी की शादी न होगी तो फिर छोटी की कैसे होगी? फिर मेरे पास अपने माता-पिता के इन सवालों का कोई जवाब देने के लिए समय की कमी पड़ गई, क्योंकि मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा की तैयारी में व्यस्त हो गई।

मैं आरम्भ से ही बहुत पढ़ाकू रही। स्कूल में हमेशा टॉप करती, लेकिन जले चेहरे के कारण टीचर्स का व्यवहार भी अक्सर चुभने वाला ही रहता। मैंने अपने हर तिरस्कार को अपनी प्रेरणा बनाया और आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त की। ईश्वर ने मुझसे कुछ छीना था, तो उसके बदले मेधा दी थी।


अपने पहले ही प्रयास में भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण करके मैं ट्रेनिंग के लिए लालबहादुर शास्त्री नैशनल एकेडमी, मसूरी, गई, तो मैं नहीं जानती थी पीछे से क्या परिवर्तन होने वाले हैं। मुझसे विवाह करने वालों की लाइन लग गई थी।

छुट्टियों के दौरान घर आई तो मुझे यह जान कर हँसी आई और आनंदित हुई कि मेरे माता-पिता को एक लंबे समय से सताती, मेरी शादी की, चिंता तो दूर हुई। लेकिन जब मैंने शादी करने स्पष्ट इंकार कर दिया तो मेरी माँ बड़े आत्मविश्वास से सजीले-नौजवानों के चित्र दिखाने लगीं, और पापा उनकी अमीरी के विषय में बताने लगे ताकि मैं मान जाऊँ।

मैंने उनसे कहा कि ट्रेनिंग पूरी होने तक तो वे इस विषय में सोचें भी नहीं। तब पापा ने कहा कि मुझे एक बार उनके सेठ साहब के लड़के से मिल तो लेना चाहिए। मैंने इच्छा न होते हुए भी उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए ‘हाँ’ कर दी। उनके घर आने से पहले ही पापा कई प्रकार की मिठाइयाँ, बिस्किट वगैरहा ले आए और मैं मन ही मन मुस्कुराती रही।

खैर, थोड़ी देर बाद बाहर गली में शोर सा मचा। मैंने खिड़की से झाँका तो पाया कि हमारे घर, जिस पर कई सालों से धन की कमी के कारण पापा ने पेंट तक नहीं करवाया था, के बाहर एक शानदार ‘फरारी’ कार खड़ी थी। पापा मुझे इशारा करके बाहर की तरफ लपके। सेठ साहब का ‘फॉरेन रिटर्न्ड’ लड़का अपनी बहन के साथ आया था। उसके हाथ में महंगा बुके था।

वे बैठे। मैं उनके लिए कोल्ड-ड्रिंक ले कर गई। दोनों को मेरी कुरुपता का ज्ञान तो पहले ही से रहा होगा, क्योंकि वे मुझे देख कर चौंके नहीं, जिससे मैंने ये अंदाज़ा लगा लिया था। वे मुस्कुराते, एक-दूसरे को देखते और फिर मुझे देखते हुए कोल्ड-ड्रिंक पीने लगे। दोनों में से कोई कुछ न बोला तो मैंने ही इंटरव्यू लेने का फ़ैसला कर लिया।

“शादी के विषय में आपका क्या ख्याल है, करनी जरूरी है क्या?”

“समय पर कोई सही जीवन साथी मिल जाए तो जरूर कर लेनी चाहिए,” भाई बोला तो बहन ने उसका अनुमोदन किया।

“आप इतने अमीर हैं। पाँच करोड़ की कार में चलते हैं। मेरे जैसी कुरूपा से कैसे निबाह पाएंगे आप? आपको तो एक से बढ़ कर एक अमीर और रुपवती पत्नी मिल सकती है,” मैंने मिठाई उनकी ओर बढ़ाई।

“सुंदरता तो देखने वाले की नज़र में होती है और पैसा हमारे पास बहुत है। प्लास्टिक सर्जरी से कुरूपता हट भी सकती है,” उसने मन की बात कही, घर से ही समझ कर आया होगा।


“मुझे, जैसी मैं हूँ, वैसी ही पसंद हूँ, प्लास्टिक सर्जरी मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। मेरे होने वाले पति को मुझे ऐसे ही स्वीकार करना होगा।”

“वैसे आपको कैसे पता कि हमारी ‘फरारी’ पाँच करोड़ की है?” उसकी बहन ने मेरी अनिच्छा महसूस करके बातचीत का रुख मोड़ा।

“संयोग की बात है कि ट्रेनिंग में हमें भारत में टैक्स चोरी के विषय में ही पढ़ाया जा रहा था। उसमें ही ‘फरारी’ जैसी कारों का जिक्र भी आया और आर्थिक विश्लेषकों का कहना था कि टैक्स चोरी करके ही ‘फरारी’ जैसी महंगी कारें अफोर्ड की जाती हैं, जिस पर इम्पोर्ट ड्यूटी ही एक करोड़ ₹ से ऊपर की बनती है। एक सामान्य भारतीय आजीवन कठोर मेहनत करने के बाद भी एक करोड़ ₹ नहीं कमाता। मेरे पिताजी का उदाहरण सामने है,” मैंने वहीं बैठे अपने पापा की ओर इशारा किया।


“लेकिन हमने कभी टैक्स चोरी नहीं की,” भाई ने तुरंत बहन को कुछ कहने से रोका।

“बहुत अच्छी बात है। मैंने तो बस आर्थिक विश्लेषकों का निष्कर्ष सामने रखा,” चोर की दाढ़ी में तिनका देख कर मैं मुस्कुराई।

“अगर आपके पति के विरुद्ध कोई केस बनता है, और आप जिले की कमिश्नर हैं, तो क्या आप उसकी मदद नहीं करेंगी?” बहन ने नपातुला, अपने काम का और महत्वपूर्ण सवाल किया।

“बिल्कुल करूँगी,” मेरे जवाब से दोनों के चेहरे खिल गए।

“बहुत सुंदर विचार हैं, एकदम आदर्श भारतीय नारी जैसे,” भाई मुस्कुराया तो बहन भी मुस्कुराई।

“सही समझे आप। एक आदर्श भारतीय नारी की तरह मैं एक पत्नी के रूप में अपने जेवर बेचकर भी उसकी मदद करूँगी, लेकिन एक अधिकारी के तौर पर निष्पक्ष जाँच करवाऊँगी। दोषी पाए जाने पर कठोर सज़ा भी दिलवाऊँगी,” मैंने संज़ीदगी से कहा।

मेरी बात पूरी होते ही भाई-बहन दोनों के चेहरे देखने लायक थे। पापा बात को समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि वे दोनों जाने के लिए उठ खड़े हुए। पापा उन्हें बाहर तक छोड़ने चले गए।

मेरी आईएएस की ट्रेनिंग मुझे सतरंगी ख्वाब देखने लायक बना रही थी।

(मैं यह प्रमाणित करती हूँ, कि मेरी यह रचना पूर्णतया मौलक है और कहीं भी प्रकाशित या प्रसारित नहीं है)

—TT (तरन्नुम तन्हा)

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