आज सुबह से ही बारिश हो रही थी थोड़े ओले भी पड़ गये थे फलस्वरूप सर्दी में और भी इजाफा हो गया। अनुभा ने अपनी मेड के लिए गर्म पानी लगा दिया ताकि वह आराम से काम कर सके। दरअसल अब वह मेड कम संगिनी ज्यादा हो गई थी उसके लिए क्योंकि वह 22 साल से काम कर रही थी उसके यहाँ ,तो वह उसके हर सुख दुःख की प्रत्यक्षदर्शी थी और उसे इतना चाहती थी कि मजाल है परिवार का भी कोई सदस्य उसके सामने अगर अनुभा की बुराई कर जाये तो तुरंत कह देती तुम जानते ही कितना हो उन्हें उनकी मेहनत मैंने देखी है, वह ऐसा कर ही नहीं सकती।
आज घर में प्रवेश करते हुए वह बोली.. भाभी बड़ी ठंड कर दी आज तो आपने।
हालांकि बात बहुत साधारण सी थी पर आज सुबह सुबह विनीत से कुछ बातों को लेकर बहस हो गई थी जिससे वह बहुत दुःखी थी और राधा के यह कहते ही वह दुःख शब्द बनकर फट पड़ा।
राधा अगर सब कुछ मेरे करने से ही हो जाता न तो मैं अपनी किस्मत ही न बदल लेती।
ऐसा क्यों कह रही हो भाभी।
वह राधा के सामने कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी अतः बिना कुछ बोले किचिन में जाकर काम करने लगी पर यह मन है न जाने कहाँ कहाँ पहुँच जाता है पल भर में। कल बेटी दिवस था और बेटियों की तारीफों से फेसबुक और व्हाट्स ऐप पटे पड़े थे पर अपने बारे में सोचते ही एक बेटी होने का दर्द उसके दिल को बेधने लगा।
बचपन से ही बहुत होशियार थी वह पढ़ाई में, हमेशा क्लास में टॉप आती उसके माता पिता बहुत खुश होते और रिजल्ट आते ही पूरे मुहल्ले में मिठाई बँटवाते।उस समय आठवीं कक्षा के बाद ही विषय चुनना होता था वह डॉक्टर बनना चाहती थी जिसके लिए बायोलॉजी लेना जरूरी था लेकिन गर्ल्स स्कूल जो उसके घर के पास था उसमें या तो होम साइंस या आर्ट्स दो ही विषय थे। छोटा कस्बा था लोग लड़कियों को सिर्फ गर्ल्स स्कूल में ही पढ़ाना पसंद करते थे यह 1978 की बात है। उसके पिता ने बॉयज़ स्कूल में बात की जहाँ मैथ, बायोलॉजी सारे विषय थे पर स्कूल वालों ने यह कह कर एडमिशन देने से इंकार कर दिया कि हम अकेली लड़की की जिम्मेदारी नहीं लेंगे। यह पहला कटु अनुभव था जीवन का जहाँ अपने लड़की होने का अफसोस हुआ उसे।
खैर आर्ट्स लेकर उसने ग्रेजुएशन पूरा किया और पहली बार बैंक की परीक्षा के लिए फॉर्म भर दिया। पहले प्रयास में ही बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुई वह और आत्मनिर्भर जीवन बिताने के सपने देखने लगी दुनियाँ अचानक ही बहुत खूबसूरत हो गई उसके लिए। उस समय तक उसकी सगाई हो चुकी थी। बारात आई और उसने नई दुनियाँ में प्रवेश किया तीन दिन बाद ही उसे जॉइन करना था पर हाय री किस्मत यहाँ ऊँचे घराने का वास्ता देकर एक बार फिर उसके पंख काट दिये गये, वह फड़फड़ाती रह गई। अगर यही नौकरी उनके बेटे को मिली होती तो क्या गर्व से फूले नहीं समाते वो क्या बेटी होना एक गुनाह है?? यह प्रश्न उसे बार बार कचोटता।
समय का पहिया आगे बढ़ता रहा और एक बेटी, बहन, पत्नी और फिर माँ होने के दायित्व निभाते निभाते जीवन की सांध्य बेला करीब आने लगी। अभी तक कभी अपने बारे में सोचने का ख्याल ही नहीं आया। विनीत भी अपने फर्ज़ निभा रहे थे बस एक ही कमी थी उनमें जब भी किसी जरूरत के लिए अनुभा उनसे पैसे मांगती तो तुरंत एक ही जवाब होता उनका… मेरे पास नहीं हैं अपने पास से खर्च कर लो।
अपने पास से तो तब कर लूँ न जब तुमने कभी दिये हों जीवन भर से यही तो सुनती आई हूँ कि मेरे पास नहीं है। सब कुछ होते हुए भी बार बार ऐसा कहने पर लक्ष्मी और गृह लक्ष्मी दोनों ही रूठ जाती हैं। जरूरत पड़ने पर अगर इनसे न कहूँ
तो फिर किससे माँगू अगर सब्जी भी लेनी हो तो इतने पैसे भी नहीं होते उसके पास कि वह भी ले सके। ऐसे जवाब पर कलेजा मुँह को आ जाता उसके। वह तो इस योग्य थी कि उन्हें भी बैठा कर खिला सकती थी इस उम्र में तो अब कुछ किया भी नहीं जा सकता था।
मुझे नहीं पता मुझसे मत कहो।
ये शब्द पिघले शीशे की तरह कानों को चीरते हुए दिल में उतर जाते उसके।
तो फिर क्या सात फेरों के सातों वचन सिर्फ मेरे ही लिए थे ?क्या तुमने नहीं सुने कि मेरा दायित्व अब तुम्हारा है? क्या तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिए दिन रात कर्तव्य निभाने का वचन सिर्फ मैंने ही दिया था? या तुमने कुछ सुना ही नहीं या फिर तभी कह दिया होता कि मुझे ये वचन स्वीकार्य नहीं हैं। पत्नी सिर्फ काम करने के लिए नहीं होती उसे खुश रखने की जिम्मेदारी उस पुरुष की होती है जो उसे ब्याह कर लाता है।
एक स्त्री के लिए उसका पति और परिवार सब कुछ होता है उसे अथाह दौलत भी नहीं चाहिए होती लेकिन जब उसका पति अपनी कमाई उसके हाथ में ला कर रखता है तो वह अपने को दुनियाँ की सबसे खुशनसीब इंसान मानती है वह कमाई कम हो या ज्यादा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता पर पता नहीं क्यों कुछ पति उस पर इतना भी विश्वास नहीं कर पाते जिसके लिए वह अपना सब कुछ छोड़ कर आ जाती है तो क्या इसे अविश्वास कहा जाये और अगर ऐसा है तो क्या वह रिश्ता दिल से मजबूत हो सकता है ?
क्यों नहीं समझता कोई कि बिना कहे सबकी जरूरतें पूरी करने वाली स्त्री भी चाहती है कि उसके दिल की बात को भी कोई बिना कहे समझे। आपकी क्या राय है अवश्य बताएं।
स्वरचित एवं मौलिक
कमलेश राणा
ग्वालियर