ससुराल में कितना भी कर लो बुराई ही मिलेगी-मीनाक्षी सिंह 

रमा जी – संजना सुन रही हैं ना य़ा बहरी हो गयी ! मैने क्या बोला बताना ज़रा !

संजना – मम्मी जी ,आप कह रही थी कल गांव से चाचा चाची आ रहे हैं इलाज करवाने !

रमा जी – कान की तो चलो पक्की हैं तू ,और सुन पथरी का ओपरेशन हैं चाचा जी का ,,शायद कुछ दिन रुके ! इसलिये बैठक से सोफा  किनारे करके उनके सोने की व्यवस्था कर देना !

संजना – जी मम्मी जी !

रमा  जी – और हाँ ,जानती तो होगी ही पथरी में खान-पीन का  बहुत परहेज होता हैं ! तेरी  भाभी को भी तो थी ये बिमारी ! पिछले साल ही तो ऑपेरेशन हुआ था उसका ,जब तू बहाना मार के चली गयी थी ,,15 दिन रुककर आयी थी ! चाची चाची जी सबेरे 4 बजे ही उठ जाते हैं ,चाय पीते हैं ! तो तू भी उनसे पहले उठ जाया करना ! इसी बहाने तू जल्दी तो भी उठ जाया  करेगी ! नहीं तो 6 बजे से पहले उठने का नाम नहीं लेती ! सबेरे ही झाड़ू ,पोछा कर दिया करना ! नहीं तो चाची बड़ी पंचायतीन हैं ,पूरे गांव में गा देगी कि बिल्कुल लक्षण की नहीं हैं रमा  जीजी की बहुरिया ! समझी ! (जैसे खुद तो रमा जी पूरे मोहल्ले में संजना की तारीफें करती आयी हैं )

संजना – जी मम्मी जी !

अगले ही दिन चाचा चाची जी निर्धारित समय पर आ गए ! कुनाल  (संजना का पति ) उन्हे स्टेशन से ले आया !

संजना( पैर छूते हुए )- नमस्ते चाची जी !

चाची – नमस्ते बहुरिया ,सुन तेरे चाचा जी वहाँ खड़े हैं ,उनके बस पैर छूना ! नमस्ते मत बोल देना ! हमारे घर में बहू बात नहीं करती ससुर के आगे ! और घूंघट थोड़ा और नीचे कर ले ,मुंह ना दिख जाए ! बड़े गरम मिजाज के हैं !

संजना – जी चाची जी ,आप लोग बैठिये ,मैं चाय बनाकर लाती हूँ !

चाची – सुन मैं  थोड़ा ज्यादा चीनी और पत्ती की चाय पीती हूँ और ये कम ! इसलिये अलग अलग बनाना !



रमा  जी – अरबी के पकोड़े भी बना ला चाय के साथ ,तेरे चाचा जी को बहुत पसंद हैं ,क्यूँ सुनीता (चाची जी ) ! याद हैं जब अम्मा बनाती थी तो किसी को मौका नहीं देते थे छोटे !

चाची जी (हँसते हुए )- हाँ जीजी ,,कह तो सही रही हैं आप !

संजना -मम्मी जी पथरी में अरबी के पकोड़े सही रहेंगे क्या ??

रमा जी – तू बहुत जानती हैं पथरी के बारे में ,जा अपना काम कर !

बेचारी संजना चकर घिन्नी सी घुम जाती चाचा चाची की खातिरदारी में ! सुबह 3:30 बजे उठती ! अपनी दो साल की बीटिया को दूध पिलाकर ,निवृत्त होकर ,इतने बड़े घर का झाडू ,पोछा करके नहा धोकर रसोईघर में प्रवेश करती ! बेटे के स्कूल का  अलग लंच ,पतिदेव के ऑफिस का अलग खाना ,चाचा चाची का अलग ! सुबह का काम निपटाते हुए बेचारी को तीन बज ज़ाते ! एक मिनट भी दिन में कमर सीधी करने का मौका नहीं मिलता ! फिर चार बजे से नास्ता पानी शुरू हो जाता ! रात में पतिदेव कुछ देर पत्नी के साथ  प्यार भरे पल बिताना चाहते ,वो भी कह देते ! कैसी हो गयी हो तुम ,हाथ देखो अपने ,कैसे पत्थर जैसे हो गए हैं ,ये  शरीर का क्या हाल कर लिया हैं,,ना ही तुम्हारे चेहरे पर हंसी होती हैं कभी ! तुम में वो बात रही ही नहीं अब ! पतिदेव भी मुंह पलटकर सो जाते ! उनसे भी अपने दुख को जाहिर नहीं कर पाती बेचारी !

रमा जी पूरे दिन अपनी देवरानी से संजना की बुराई करती रहती ! हम तो गांव में कितना काम करते थे ,कच्चा घर था ,चाकी पर हाथों से अनाज पीसते थे ,सिल पर चटनी पीसते थे बाऊ जी के लिए ,कुंयें से पानी भर के लाते ,निवृत्त होने भी खेतों पर ज़ाते ! चुल्हे पर रोटी बनाते !कितनी मेहनत करते थे ! 5-6 बच्चें होते ! ये आजकल की बहुएें क्या जाने ! एक बच्चें में ही जान निकल जाती हैं इनकी ! क्यूँ सही कहा ना सुनीता ,रमा जी संजना को सुनाते हुए कहती ! सुनीता जी भी हामी भरती ! दो चार बातें और जोड़ देती !

संजना बेचारी उफ़ तक ना करती क्यूंकी बड़ो की बात मानना ,उनको जवाब देना  उसके संस्कारों में नहीं था !

एक दिन बेचारी महिलाओं के वो चार दिन जब वो महीने के सबसे कठिन दौर से गुजरती हैं ,उन दिनों का सामना कर रही थी !

उसकी कमर में असहनीय दर्द हो रहा था ! वो अपने कमरे में दिवार के सहारे आते हुए बिस्तर पर लेट गयी ! शाम के 5 बज गए !जब चाय हाजिर नहीं हुई तो रमा जी और सुनीता जी उसके कमरे में आ धमकी  ! रमा जी ने चिल्लाना शुरू किया !

कोई शर्म हया हैं य़ा बेच आयी ! यहाँ आराम  फरमा रही हैं ,महारानी ! हम इतनी देर से चाय की राह देख रहे हैं !

संजना (सकपकाते हुए उठी ) -घूंघट सर पर डालते हुए बोली ,वो मम्मी जी ,मेरी कमर में बहुत दर्द हैं ,इसलिये सारा काम निपटाकर  थोड़ी देर लेट गयी ! कब आँख लग  गयी पता ही नहीं चला ! माफ कीजियेगा अभी चाय बनाकर लाती हूँ !

रमा जी – तूने मेरी नाक तो कटा ही दी ! अब तू अपना सामान समेट और अपने मायके जाकर आराम  कर ! तू काम चोर तो हमेशा से रही हैं ! मेरे ही कर्म फूटे जो अपने एकलौते बिटवा के लिए तुझ जैसी फूहड़ को ब्याह के लायी ! ऐसे ऐसे ऊँचे घराने के रिश्ते लगे थे मेरे सलोने से  कुनाल  के लिए !



संजना आंसू रोकते हुए पहली बार बोली – बस, बहुत हुआ मम्मी जी अब और नहीं ! आपको मम्मी जी कहती हूँ इसका मतलब ये नहीं कि आपकी कोई भी गलत बात बर्दाशत करूँगी ! मेरा भी आत्मसम्मान हैं ! आपके घर की बहू हूँ नौकरानी नहीं ! मेरे सिर्फ बहू के ही फर्ज नहीं हैं ,पत्नी और माँ भी हूँ मैं ! क्या एक दिन अगर आप य़ा चाची जी चाय बना लेती तो कोई पहाड़ टूट जाता ! मुझसे पहले भी इस घर में खाना बनता होगा ! मै बिमार हूँ ,मैने खाना खाया य़ा मेरे बारे में कभी आपने पूछा ! दीदी (ननद ) के घर में तो नौकर चाकर हैं फिर भी आप दिन में चार बार फ़ोन करके हाल चाल लेती हैं ! कितना तरस खाती हैं उन पर आप ! कभी पूरे महीने में एक बार भी मेरे बारे में पूँछती हैं ! तभी कहते हैं मम्मी जी ,सास कभी माँ नहीं बन सकती और ससुराल में तुम अपना दिल भी निकाल के रख दो फिर भी बुराई ही मिलेगी ! मैं कहीं नहीं जाऊंगी ,मेरे पति का घर हैं ये ! अब यहाँ से अर्थी ही उठेगी मेरी ! समझी आप ! कान  खोलकर सुन लिजिये ! कल से किसी काम में दखल मत दिजियेगा ! मैं अपने मन मुताबिक काम करूँगी ! संजना एक आत्मविश्वास से भरी हुई  मुस्कान के साथ कमरे से बाहर आ गयी !

रमा जी और सुनीता जी कभी एक दूसरे को तो कभी संजना को बड़ी बड़ी आँखों से देखती रह गयी !

सुनीता – जीजी अब हम तो जा रहे हैं गांव ! वैसे भी इनका ऑपेरेशन हो गया ! अब करना भी क्या हैं रुककर !

अगले दिन से संजना सुबह से ही सज धज के तैयार हो जाती और गाना गुनगुनाते हुए घर के काम अपने मन मुताबिक करती !मजाल हैं रमा जी चूँ भी कर जाए ! और पतिदेव जी को पत्नी श्री का बदला हुआ संवरा हुआ रुप आकर्षित किये बिना ना रहता !

मेरी सहेलियों ,कभी कभी कदम उठाना पड़ता हैं ,गलत के खिलाफ बोलना पड़ता हैं ,तभी इस तरह परेशान करने वालों की अकल ठिकाने आती हैं ! जीवन एक बार मिलता हैं ,घुट घुटकर मत रहिये ! किसी का अपमान मत करिये ! पर अपमान सहिये भी मत !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

आगरा

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