ससुराल में बहू के स्वाभिमान का क्या कोई मोल नहीं..? – निधि शर्मा
- Betiyan Team
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- on Jan 27, 2023
“मम्मी जी बहुत दिनों से मेरी इच्छा थी कि एक अच्छा माइक्रोवेव लूं। शादी के पहले मैंने बेकरी कोर्स किया था, अब गुड्डू भी बड़ा हो गया है कितने दिन बाजार का खरीदा हुआ केक उसे खिलाऊंगी। इस दिवाली पर हम माइक्रोवेव के साथ एक मिक्सी भी ले लेंगे, पुरानी मिक्सी कब से खराब है और सिलबट्टे पर मसाला पीसने में बहुत वक्त लगता है।” सीमा अपनी सास कल्याणी जी से कहती हैं। कल्याणी जी बोलीं “बहू अपनी चाहतों को थोड़ा कम करो। जब मैं ससुराल में आई थी तब तो कुछ भी नहीं था, इसी सिलबट्टे पर मसाला पीस-पीस कर सबको खाना खिलाती थी। देखो सिलवटें की घिसाई से मेरी मेहनत का पता चल रहा है, अभी घर में कुछ नहीं आएगा कुछ समय बाद रक्षाबंधन आ रहा है लावण्या (बेटी) को भी उपहार देना है।” इतना कहकर वो चली गईं। शाम में सीमा ने ये बात अपने पति रमेश को बतलाई जब उसने भी बात नहीं सुनी तो सीमा बोली “गलती आपके परिवार की नहीं है गलती तो मेरी है!
जो मैंने बिना सोचे समझे पूरे परिवार की चाहत को पूरा करने में लगी रही, मेरे साथ की लड़कियां आज अपने पैरों पर खड़ी है। मैं पति की चाहत पूरी करने में घर में बैठ गई, अगले साल सास की चाहत पूरी करने के लिए मां बन गई। पर मेरी चाहत या स्वाभिमान का क्या, घर वालों ने मेरे मन को समझने की कभी कोशिश की है..?” रमेश बोला “तुम पुरानी बातों को इस बात से क्यों मिला रही हो! तुम्हारा और मां का तो ये रोज का झमेला है, मैं इन मामलों में अब परना नहीं चाहता। तुम मुझसे क्या चाहती हो, क्या तुम भी काम करना चाहती हो? तो जाओ तुम भी आजाद हो अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए जो करना है करो बस बार-बार ताने मत मारो।”
सीमा बोली “हां हां अब तो आप कहेंगे ही जब मेरी उम्र निकल गई तब आप मुझे आजादी दे रहे हैं.! मैंने आपसे क्या कहा बस इतना ही कि मैं आपकी अर्धांगिनी बनकर, इस परिवार की बहू बन कर आई हूं तो इस परिवार में मुझे भी सम्मान चाहिए। अपने स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार चाहिए जो हर औरत हक होता है।” लंबे समय से पति को कुछ चीजों और बेटे के स्कूल को बदलने के लिए वो बोल-बोल कर थक गई थी। उसने फैसला लिया कि अब उसे अपने और अपने बच्चे के हर फैसले के लिए कुछ करना होगा अपनी चाहतों को पूरा करना ही होगा। सीमा ने अपने पिता को फोन किया और बोली “पापा आप मेरी सारी डिग्रियां और मेरे एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट मुझे कुरियर कर दीजिए। आपने सही कहा था, अगर औरत अपने लिए फैसला लेने में देरी करती है तो सामने वाली की चाहत उससे और बढ़ती जाती है! उसे पूरा करने में औरत अपने ही स्वाभिमान को ठेस पहुंचाती और सुनहरा वक्त गवा देती है।” पिता बोले “तुम करना क्या चाहती हो कुछ ऐसा मत करना कि इतने सालों का बसा बसाया तुम्हारा घर बिखड़ जाए!” सीमा बोली “पापा मैं थक गई सबकी चाहते पूरी करने में, इनको तो आप जानते हैं ये कुछ कहते नहीं हैं। मैं अपनी छोटी मोटी चाहते भी पूरी नहीं कर पाती, कुछ कंपनियों में बात की हूं वो मेरे घर से काम करने के लिए भी तैयार हैं।” कुछ वक्त बाद सीमा पति राकेश से बोली “सुनिए गुड्डू अब बड़ा हो गया वो खुद ब खुद अपना सारा काम कर लेता है, तो मैं भी काम करना चाहती हूं आप मेरे लिए एक लैपटॉप ला दीजिए।” राकेश बोला “तुम मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल रही है सोच लो इसका अंजाम आगे क्या होगा।” सीमा बोली “आपने खुद ही कहा था अब आप मेरे मामले में दखल नहीं देंगे!
अगर आप मेरा साथ नहीं देते तो विरोध में भी मत रहिए, आप मुझे लैपटॉप लाकर देंगे या मैं खुद खरीदने बाजार जाऊं?” रमेश बोला “ठीक है आज शाम में आते वक्त मैं लेकर आऊंगा।” शाम में जब रमेश घर आया तो उसकी मां कल्याणी जी की नजर लैपटॉप पे पड़ी वो बोलीं “बेटा रमेश तुम्हें तो कंपनी की तरफ से कुछ दिन पहले ही लैपटॉप मिला है फिर ये लैपटॉप किसका है.?” रमेश इधर उधर देख रहा था तभी सीमा आकर बोली “मम्मी जी ये मेरा है।” रमेश की बहन लावण्या हंसते हुए बोली “मैं सोच रही थी रमेश रक्षाबंधन पर मेरे लिए कुछ उपहार लेकर आया है! रमेश ये लैपटॉप मुझे देते तो समझ में भी आता क्योंकि मैं काम करती हूं। तुम्हारी बीवी जो चूल्हा चौका करती है वो ये लेकर क्या करेगी..?” कल्याणी जी बोलीं “हां बेटा रमेश तुम्हारी भांजी अब दसवीं की परीक्षा देने वाली है।
जब मैंने पिछले साल तुम्हें कहा था उसके जन्मदिन पर लैपटॉप दे दो, तब तुमने कहा था तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं। अब बीवी के लिए कहां से पैसे आए,और इसे खरीदने से पहले तुमने मुझसे पूछा भी नहीं..?” सीमा बोली “मम्मी जी आपके सुपुत्र तो अपने मुंह से कुछ बोलेंगे नहीं मैं ही बता देती हूं। मैं एक हाउसवाइफ थी, अब भी हूं पर अपने परिवार की सारी जिम्मेदारियों को उठाते हुए अब अपने चाहतों को भी पूरा करूंगी। मैंने अपने कदम आगे बढ़ा लिए हैं, आप सबको बता देती हूं कि मैं भी अगले हफ्ते से जॉइन कर रही हूं। घर से ही अपना काम करूंगी ताकि गुड्डू की जिम्मेदारी भी आप लोगों पर ना दे सकूं।” इतना कहकर वो अंदर चली गई। लावण्या बोली “मां तुम्हारी बहू की चाहत कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही है! अब तक हमारे लिए और परिवार के लिए तो कभी कुछ नहीं सोचा, देखो कैसे सुना कर चली गई कि अब वो भी नौकरी करेगी। कहने का मतलब है कि आप लोग अपना अपना देख लीजिए।” रमेश बोला “दीदी आपके कहने का क्या मतलब है! वो भी अपने जीवन में कुछ करना और आगे बढ़ना चाहती है, और आप ये कैसे कह सकती है कि वो परिवार के लिए कभी कुछ नहीं सोचती..? शादी के 9 साल उसने अपना पूरा समय परिवार को दिया, अब अगर वो अपनी चाहत पूरा करना चाहती है तो उसमें क्या गलत है? आप भी तो काम करती है आपसे ये उम्मीद नहीं थी!” इतना कहकर रमेश भी चला गया। सीमा ने अपने बेटे को समझाया कि “अब उसे कुछ काम खुद से करने होंगे।” बेटा भी मां की बातों को समझ गया, अगर हम सही समय पर बच्चों को उनकी जिम्मेदारियों को समझाएं तो वो भी आगे चलकर अपनी चाहतों को पूरा करने में सक्षम रहते हैं। यही सब सोचकर सीमा ने अपना काम शुरू किया।
एक रोज गुड्डू के रिक्शेवाले ने छुट्टी ली सीमा अपने ससुर किशन लाल जी से बोली “पापा जी क्या आप आज गुड्डू को स्कूल से ले आएंगे? क्योंकि उस वक्त मेरे ऑफिस का काम होता है।” जैसे ही वो कुछ कहते कल्याणी जी आकर बोलीं “सुनिए दोपहर में मुझे डॉक्टर के पास जाना है और किसी ने कहा था कि वो अपने दम पर सब संभाल लेगा। आप मुझे डॉक्टर के पास ले चलिए जिसे जो करना है खुद करेगा।” सीमा सोची अब मैं क्या करूं नया नया काम है यही सब सोचते हुए सीमा ने रमेश को फोन किया और सारी परेशानी बताई। रमेश बोला “मैं तुम्हें पहले ही बोला था ये सब इतना आसान नहीं है, ठीक है लंच टाइम में मैं जाकर गुड्डू को लाकर घर के दरवाजे तक छोड़ दूंगा। बस ये बात मां को पता नहीं चलना चाहिए वरना परेशानी बढ़ जाएगी।” जब घड़ी में 2:30 बज रहे थे तो किशन लाल जी अपनी पत्नी से बोले “अभी तक तुम तैयार नहीं हुई तुम्हें डॉक्टर के पास जाना था?” कल्याणी जी ने मुस्कुराते हुए घड़ी की ओर देखीं और बोलीं “आज बहुत धूप है आज मेरा मन नहीं कर रहा किसी और दिन चलेंगे।” किशन लाल जी समझ गए। थोड़ी देर में गुड्डू घर आया तो कल्याणी जी बोलीं “गुड्डू आज तो रिक्शावाला आया नहीं था तुम कैसे आए, क्या तुम्हें कोई छोड़ने आया था?
हां मैं तो भूल ही गई तुम्हारी मम्मी अब तुम्हें प्यार जो नहीं करती,वो अपनी चाहतों को पूरा करने में लगी है तो तुम्हें लेने कैसे जाती।” गुड्डू बोला “दादी आप ऐसा क्यों कह रही है! मैं अब बड़ा हो गया हूं मैं अपने दोस्तों के साथ आ गया। दादी आज तक मम्मी हमारी चाहतों को पूरा कर रही थी, अब मम्मी की चाहत पूरा करने में हमें भी तो मदद करनी चाहिए।” पोते का ये जवाब सुनकर जहां किशनलाल जी गदगद हो रहे थे वहीं कल्याणी जी गुस्से में बोलीं “हां हां तेरा बाप अभी तक बड़ा नहीं हुआ और तुम बड़े हो गए। आने दो आज रमेश को सारी बात साफ-साफ करूंगी, बहू की चाहतों की चादर समेटने की बहुत जरूरत है।” गुड्डू के जाने के बाद किशन लाल जी बोले “तुम फालतू में बात का बतंगड़ बना रही हो क्या हुआ अगर गुड्डू खुद से चला आया।” वो बोलीं “औरत की पहली जिम्मेदारी उसका घर परिवार और उसके बच्चे होते हैं ना कि उसकी चाहत। ये इतना भी बड़ा नहीं हुआ है कि अपनी जिम्मेदारी उठा सके, इसकी मां अपनी चाहतों को पूरा करने में लगी है! क्या कमी है घर में उसे जो नौकरी करेगी, वो बस मेरी बेटी से बराबरी करना चाहती है।” शाम में जब रमेश घर आया तो कल्याणी जी ने फिर से वही बात उठाई रमेश बोला “मा सीमा इसे शहर के बड़े स्कूल में पढ़ाना चाहती है तो क्या उसकी चाहत गलत है? मेरी नौकरी से घर का खर्चा, लोन पूरा नहीं हो रहा, छोटी-मोटी जरूरतों को आप उसे पूरा नहीं करने देती तो सीमा को ये कदम उठाना पड़ा है।” लावण्या बोली “इसी शहर में मैं भी रहती हूं मैं छुट्टी लेकर मां से मिलने आ जाती हूं तुम्हारी बीवी बेटे को लेने स्कूल नहीं जा सकती! क्या जरूरत है इतने बड़े स्कूल में पढ़ाने की, वहां तो मैं अपने बच्चे को नहीं डाली हूं।” तभी सीमा सबके लिए चाय और पकौड़े बनाकर लाई और बोली “दीदी आप इनसे क्यों सवाल कर रही हैं! बेचारे अपने मन की बातों को आज तक कभी किसी के सामने रख नहीं पाए।
ये तो इतने सीधे हैं कि अपनी चाहतों को अपने बटुए को देखकर दबा लेते हैं।” कल्याणी जी बोलीं “बहू तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे हमारा बेटा हमारी वजह से अपनी चाहतों को मार रहा है।” सीमा बोली “आपकी वजह से नहीं बढ़ती महंगाई और अपने बच्चे के भविष्य के लिए अपनी चाहतों को मार रहे हैं। मैं जानती हूं इन्हें मोटरसाइकिल से ऑफिस जाना पसंद नहीं, फिर भी ये कार नहीं ले रहे क्योंकि आप लोगों को अच्छा नहीं लगेगा और इन्हें भी दोबारा से लोन लेना पड़ेगा।” लावण्या बोलीं “रमेश क्या ये सच है अपनी पत्नी के साथ साथ तुम्हारे भी सपने उड़ान भर रहे हैं!” सीमा बोली “अगर अपने सपनों को पूरा करने के लिए हम मेहनत करने के लिए तैयार है तो फिर दूसरों को क्या दिक्कत है? मैं अपने बच्चे के भविष्य के लिए उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहती हूं, जिसके लिए मैं मेहनत पूरी कर रही हूं।
न जाने परिवार वाले एक बहू की चाहतों को कब समझेंगे कि उसके कुछ सपने हैं।” ससुर आगे बढ़ कर बोले “लावण्या तुम भी तो अपने परिवार के विरुद्ध जाकर नौकरी कर रही हो! जिसके कारण तुम्हारे सास ससुर तुम से अलग होकर रह रहे हैं। आज अगर बहू अपने बच्चे की चाहत को पूरा करने के लिए हमारा सहयोग मांग रही है तो क्या गलत कर रही है.?” कल्याणी जी बोलीं “आप क्या कर रहे हैं बहू के सामने विदा की हुई बेटी को बातें सुना रहे हैं!” वो बोले “सही कहा तुमने बेटी घर से विदा कर चुका हूं जितना उसे देना था दे चुका हूं।
अब जिसे बहू बनाकर लाया हूं उसके प्रति भी मेरी कोई जिम्मेदारी है। इतने साल तक बिना कुछ कहे ये हमारी चाहतों को पूरा करती रही, तो क्या अब इसका साथ हम नहीं दे सकते? याद रखो आगे चलकर बुढ़ापे का सहारा बहू-बेटे और पोते ही होंगे ना कि कोई और..।” इतना कहना मां बेटी दोनों को काफी था। जब कभी भी रिक्शावाला नहीं आता किशन लाल जी बड़े उत्साह के साथ अपने पोते को स्कूल से लेकर आते। कुछ समय बाद सीमा ने लोन लिया और अपनी 12 वीं सालगिरह पर अपने पति को एक कार तोहफे में दिया। धीरे-धीरे परिवार के सभी सदस्यों को सीमा का फैसला सही लगने लगा। रमेश को भी एहसास हुआ कि अगर वो समय रहते सीमा का साथ देता तो शायद उसकी कुछ मुश्किलें बहुत पहले हल हो गई होती। पर कोई बात नहीं अंत भला तो सब भला,अब छोटी-मोटी चीजों के लिए सीमा को किसी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ती थी और अपनी चाहतों को अब उसे दबाना नहीं पड़ता था। दोस्तों ये बात गलत है कि एक औरत अपना पूरा जीवन परिवार की चाहतों को पूरा करने में लगा देती है और अपने मन की चाहतों को मन में दवाई रखती है। तो क्या ये परिवार की जिम्मेदारी या फर्ज नहीं होता कि कभी बहू के स्वाभिमान और उसकी चाहत भी पूछे कि आखिर वो क्या चाहती है। आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को मनोरंजन एवं सीख समझ कर पढ़ें कृपया अन्यथा नहीं लें बहुत-बहुत आभार
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निधि शर्मा