संस्कार – अंजू निगम

“माँ,आज ऊपर वाली आंटी ने फिर सारा कूड़ा हमारे घर के आगे कर दिया| मैं अभी जा सारा कूड़ा उनके घर के आगे फेंक आता हूँ|”प्रनव के स्वर में गुस्सा था|
“फिर उनमें और तुम में क्या अंतर रहा|” ऐसा कह नेहा ने घर के आगे झांडू लगा सारा कूड़ा समेट दिया|
प्रनव दसवीं कक्षा में है|पढ़ाई में तेज| इस बार भी दसवीं में उसके अठ्ठानबे प्रतिशत नंबर आये| बधाईयों का तांता लगा रहा मगर उसके सबसे अजीम दोस्त शशांक की ओर से कोई संदेशा नहीं आया| प्रनव दुख और क्षोभ के बीच घिरा रहा|
“शशांक इतना व्यस्त हो गया?एक फोन नहीं आया?” प्रनव के स्वर में तल्खी थी|
“तुमने उसे फोन किया| उसके भी तो अच्छे प्रतिशत आये है|”नेहा बोली|
“मैं क्यों करुँ फोन?पिछत्तर प्रतिशत ही तो आये हैं|”
“इतने प्रतिशत भी कम नहीं होते|  क्या पता किस परेशानी में घिरा हो?”नेहा ने बात संभाली|
माँ के कहे पर प्रनव ने शशांक को फोन लगाया,”बधाई हो तुझे!!तेरे फोन का सुबह से इंतजार ही करता रह गया|”
“तुझे भी बधाई हो| कल रात पापा की तबीयत काफी खराब हो गई| अस्पताल में भरती करना पड़ा| अभी भी यही हूँ| इसी वजह से तुझे फोन न कर पाया|’
“इतना सब हो गया और तु मुझे अब बता रहा हैं?कौन से अस्पताल में है,मैं अभी आ रहा हूँ| “
फोन रख प्रनव भावुक हो उठा,”माँ,आपने सही राह न दिखाई होती तो आज एक अच्छा दोस्त मैं खो देता|”
माँ ने प्रनव के हाथ में पैसे रखते कहा,” अस्पताल का मामला है, जरूरत पड़ेगी| धैर्य से कई बिगड़े काम बन जाते है बेटा|”
अंजू निगम

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!