संघर्षों भरा – कंचन श्रीवास्तव

अम्मा ने जिस लाड़ प्यार से किशन को पाल पोश कर बड़ा किया था आज उसके जिम्मेदारियों को देखकर सोचने पर मजबूर हैं।कि ईश्वर ने पुरुष को  भेजा ही इसी काम के लिए है तो कोई क्या करे, करना ही पड़ेगा।

उसे अच्छे से याद है कि इसके पिता की लापरवाही की वजह से इसे कितनी दर दर की ठोकर खानी पड़ी,

किस किस के रात जूते नहीं सही,क्या क्या नही लोगों ने कहा।

पर कमजोरी अपनी थी तो चुप रहकर सुनने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था इसलिए सुनती रही कभी ससुर की तो कभी जेठ की।

पर परिस्थितियों से उकता कर या हार कर कभी पीहर नहीं गई‌।

जाती भी कैसे,पहली विदाई के वखत अम्मा ने हिदायत जो दी थी ,कि देख लड़की की डोली मायके से उठती है तो अर्थी ससुराल ने, इसलिए कोई ऐसा काम मत करना कि ओरहना मिलेगा पैर उठाकर यहां आना पड़े।



तू तो जानती है अपने बाऊ जी को उल्टे पैर वापस कर देंगे।

और यदि वापस कर दिए तो तेरी और बदनामी होगी।

इसलिए जैसे भी हो मुंह बंद करके वहीं पड़ी रहना चाहे कितना भी सहना पड़े।

बस यही बात इसके दीमाग में घर कर गई।

और ढेहरी डाकते ही भूल गई,नैहर की गली।

सती कर दिया पूरा जीवन उस घर में जहां अपमान,जिल्लत,और आधी टूका रोटी के साथ पति का दाब भी सहना पड़ा।

आधी इसलिए कि घर खर्च पहले ससुर के ऊपर रहा फिर जेठ और उसके बाद जैसे तैसे गृहस्थी चलती रही ।



क्योंकि उन लोगों के रहते इन्होंने अपनी जिम्मेदारी कभी नहीं समझी।

पर जब वो लोगों का इंतकाल हो गया तो जो भी ये कमाते उसी में गुजारा करना पड़ा।

सबकी अपनी अपनी रसोई जो हो गई।

फिर जब चेता तो उम्र ढल चुकी थी शरीर उतना काम नहीं करता ।

खैर जैसे तैसे करके समय खिसकने लगा ,किशन बड़ा हो गया।

उसने देखा वो काफी समझदार था।हर छोटी बड़ी जिम्मेदारियों को बड़ी खूबी से निभाया।

फिर उसकी नौकरी लग गई।

और अब शादी की बारी आई।

तो उसने अपने पसंद की लड़की से शादी किया।

सब कुछ अच्छा चल रहा था पर कहते हैं ना कि सुख दुख जीवन का हिस्सा है ये ना हो तो जिंदगी कैसे चले।



अचानक एक रोज चाय पीते पीते इनको हार्ट अटैक पड़ा।

और कुछ समझते कि इसके पहले इन्होंने दुनिया छोड़ दी।

भगवान का खेल तो देखो ,इधर बहुत को बच्चे होने वाला था,और उधर वो बाप का दाग़ देखें बैठा था।

ऐसे में बहुत का अब तब जानकर सब यही मना रहे थे कि कैसे भी करके तेरह दिन बीत जाए।

पर भला आने वाले को कौन रोक सकता है।

दसवां वाले दिन ही उसे तत्काल अस्पताल ले जाना पड़ा।

वो तो कहो कि शुद्धि हो गई थी।

और देर रात उसने एक बेटे को जन्म दिया।

जिसे सुन सबके चेहरे खिल गए।



दुख मानों कुछ देर के लिए रफूचक्कर हो गया।

पर बेटे को सारी भाग दौड़ करते देख वो सोचने पर मजबूर हैं।

कि वास्तव में पुरुष के ऊपर कितनी जिम्मेदारी होती है।

अपनों के साथ साथ जिसे सात वचनों में बांधकर घर लाता है।उसे और उससे मिले नए जीवन के प्रति कितनी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती है।

सच  एक पुरुष का जन्म खुशियों भरा पर जीवन  कांटों वाला यानि कठिन संघर्षों वाला होता है।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

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