संगत का असर – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

नीला अपने कमरे में बैठी हुई साड़ी अलमारी से निकाल रही थी कि तभी रमा दरवाजे पर आ खड़ी हुई। “नीला दीदी, ये साड़ी तो बहुत सुंदर है, मुझे दे दो, मैं इसे पहनकर पूजा में जाऊँगी,” रमा ने आँखों में चमक लिए कहा।

नीला ने मुस्कुराते हुए साड़ी उसकी ओर बढ़ा दी। “ठीक है रमा, पर ध्यान से रखना। ये साड़ी मेरे पति ने खास मौके पर दी थी।”

“हां दीदी, बिल्कुल।” कहते हुए रमा ने साड़ी खुशी-खुशी ली और अपने कमरे में चली गई। यह कोई नई बात नहीं थी। जब से रमा इस घर की देवरानी बनी थी, उसकी यही आदत थी। वह नीला की साड़ियाँ, गहने, चूड़ियाँ, यहाँ तक कि मेकअप का सामान भी लेकर जाती और लौटाते वक्त कहती, “दीदी, आप भी मेरी चीजें कभी ले लिया करो।”

नीला कभी-कभी इस बात पर मन ही मन हँस देती थी। उसे लगता था कि रमा अभी नई-नई है, इसलिए शायद इस तरह की बातें करती है। वह जानती थी कि रमा उसे अपनी बड़ी बहन जैसा मानती है, इसलिए उसने कभी कुछ नहीं कहा।

समय बीतता गया। एक दिन नीला को अपने भाई की शादी में जाना था। उसने सोचा कि इस बार कुछ खास पहनना चाहिए। उसने अपनी अलमारी में रखे गहनों को देखा और मन ही मन सोचा, “ये तो पुराना हो गया। रमा के पास नए डिज़ाइन का सेट है, वही ले लेती हूँ।”

“रमा, तुम्हारे पास जो सोने का चूड़ियों का सेट है, वह बहुत सुंदर है। मेरी साड़ी से भी मैच कर रहा है। ज़रा दे दो, शादी में वही पहनकर जाऊँगी,” नीला ने विनम्रता से कहा।

रमा ने थोड़ी झिझकते हुए कहा, “अरे दीदी, वो तो मैंने पॉलिश के लिए दे दिया है। अगर पहले कहतीं तो जरूर दे देती।”

नीला ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “कोई बात नहीं।”

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लेकिन यह बात नीला के मन में घर कर गई। धीरे-धीरे उसने देखा कि जब भी वह रमा से कुछ माँगती, तो रमा कोई न कोई बहाना बना देती। यह सिलसिला लगातार चलता रहा। नीला को समझ में आ गया कि रमा सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही उसके करीब आती है। उसने सोचा, “अब समय आ गया है कि मैं इसे सबक सिखाऊं।”

हालांकि, नीला ने इसे अपने व्यवहार में कभी जाहिर नहीं होने दिया। उसने रमा से थोड़ी दूरी बना ली। वह अब अपनी चीजें उतनी उदारता से नहीं देती थी। रमा को यह बात खटकने लगी। उसने सोचा, “क्या दीदी मुझसे नाराज हैं? ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ।”

रमा ने अपनी चाल बदल ली। वह अब नीला के पास चाय बनाकर ले जाती, कभी उसे अपनी चूड़ियाँ जबरदस्ती पहनाने की कोशिश करती। धीरे-धीरे नीला का दिल पिघलने लगा और दोनों के बीच पहले जैसा रिश्ता फिर से बनने लगा।

एक दिन रमा को अपनी सहेली की शादी में जाना था। उसने नीला से मुस्कुराते हुए कहा, “दीदी, तुमने जो नई साड़ी खरीदी थी, वह बहुत सुंदर है। मुझे उसे पहनकर जाना है। मेरी साड़ी से बिल्कुल मैच कर रही है।”

“कौन सी साड़ी, रमा?” नीला ने अनजान बनते हुए पूछा।

“अरे, वही जो तुमने डिजाइनर शॉप से खरीदी थी,” रमा ने उत्साह से कहा।

नीला ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, “अच्छा वो, वह तो मैंने अपनी मम्मी को दे दी।”

“मम्मी को दे दी? लेकिन अभी तो…” रमा का चेहरा फीका पड़ गया। वह समझ गई कि नीला ने जानबूझकर ऐसा कहा है। गुस्से में बोली, “मैंने तुम्हें अपनी इतनी सारी चीजें दीं और तुमसे एक चीज माँगी तो तुमने रंग बदल लिया।”

नीला हँसते हुए बोली, “रमा, संगत का असर है। जब मैंने तुमसे कुछ माँगा था, तब तुम्हारी हरकत देखकर मैंने भी वही करना सीख लिया।”

रमा कुछ पल के लिए चुप रही और फिर दोनों हँस पड़ीं। नीला ने रमा का हाथ पकड़कर कहा, “रमा, मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ। लेकिन यह जरूरी है कि हम एक-दूसरे का सम्मान करें। यह लेना-देना तभी तक ठीक है जब तक उसमें प्यार और समझदारी हो।”

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रमा ने सिर झुकाते हुए कहा, “मुझे समझ में आ गया दीदी। आगे से मैं ऐसा कभी नहीं करूंगी।”

दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और उनके रिश्ते में और मजबूती आ गई। उन्होंने सीखा कि रिश्तों में ईमानदारी और आपसी समझ का होना बहुत जरूरी है। तभी वे रिश्ते सच्चे और मजबूत बनते हैं।

मूल रचना 

विभा गुप्ता

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