स्वाति ,मैं सुबह से कह रही थी कि संदूक खोलने की रस्म कर लो …. रह गई ना रस्म , और बहू मायके चल पड़ी …. बता , रुकेगी क्या हफ़्ता-दस दिन? नहीं तो रस्म अभी घर चलकर करवा देती हूँ । कल से पंचक लग रहे हैं, अब तो बहू सोमवार को आएगी ।
बैंकेट हॉल में बहू के रिशेपशन के बाद नीरा ने अपनी बेटी से कहा ।
हाँ मम्मी, मैं तो रूकूँगी अभी , प्रभात बैंक की तरफ़ से एक महीने की किसी ट्रेनिंग के लिए मंगलवार को लखनऊ जा रहे हैं और देव की छुट्टियाँ हैं तो वहाँ जाकर अकेली करूँगी क्या , आपको बताना ही भूल गई थी ।
चल फिर ठीक है, आराम से बहू के आने पर निभाएँगे इस रस्म को, तेरी दोनों बुआ भी अभी यहीं हैं ।बाक़ी सब भी रूक रहे हैं, आगे दो दिन की छुट्टियाँ हैं , किसी चीज़ की ….. बस मुझे यही था कि प्रभात के बैंक में छुट्टी होगी या नहीं…
इतना कहकर उन्होंने नई बहू को उसी समय मायके वालों के साथ पग फेरे की रस्म के लिए भेज दिया क्योंकि अगले पाँच दिन में बहू को पंचक के कारण भेजना नहीं चाहती थी और उसके दो दिन बाद बेटे-बहू हनीमून पर जाने के लिए टिकट बुक करवा चुके थे ।
देखते ही देखते पाँच दिन के बाद सोमवार को बहू तारा आ गई। उसी दिन नीरा ने अपनी देवरानी- जेठानी, भाभी और बहनों को सपरिवार रात्रि भोज पर आमंत्रित किया क्योंकि अगले दिन दामाद प्रभात को लखनऊ जाना था …. इसलिए उन्होंने तय किया कि बहू की पहली रसोई का नेग भी सभी रिश्तेदारों के सामने करवा लेंगी क्योंकि बड़ी बहू का उलाहना आज तक उनकी बड़ी ननद देती है—-
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नीरा ने तो बहू के हाथ की खीर भी नहीं खिलाई , मैंने तो नेग में देने के लिए पायल ख़रीदी थी । जो इस शहर में थे , बस उन्हें ही खीर खाने का मौक़ा मिला ।
अरे दीदी , अब बनवा देती हूँ….. बताओ , इधर बहू आई …उधर सब चल पड़े , इतना ध्यान भी नहीं गया ।
अब खाने में और नई नवेली बहू के हाथ की बनी पहली रसोई की खीर के स्वाद में फ़र्क़ होता है ।
नीरा ने उसी दिन सोच लिया था कि मयंक के ब्याह में सबके उलाहने- ताने उतार देंगी । इसलिए उन्होंने अपनी बेटी से भी कह दिया था कि सबके आने-जाने का हिसाब रखें ताकि सारी रस्में और नेग पूरे परिवार के साथ निभाए जा सकें । ये भी संयोग था कि शादी के बाद दो दिन की सरकारी छुट्टी थी इसलिए किसी ने जाने की जल्दी नहीं मचाई ।
ये तो अच्छा है कि बस दोनों ननदें दूसरे शहर में रहती हैं वरना ससुराल और मायका एक ही शहर में होने के कारण ज़्यादा परेशानी नहीं होती ।
सोमवार की दोपहर नई बहू मणि के आते ही नीरा ने अपने पति से कहा—-
सुनो , संदूक खोलने और बहू की पहली रसोई का नेग आज ही करवा देती हूँ… अच्छा दिन है । कल प्रभात जी भी चले जाएँगे और दोनों दीदी भी कहीं चल ना पड़े …. और फिर से वही गगन की शादी की तरह कोई उलाहना रह जाए ….. आप सबको रात के खाने की कह दो फ़ोन पर , मैं तैयारी शुरू करवाती हूँ ।
एक बार फिर से पूरे परिवार के साथ शादी सी चहल – पहल हो गई, सबने बहू के हाथ की बनी खीर के साथ स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया । नीरा ने खाने बाद बड़ी जेठानी के सामने बहू के मायके से आया मौली लिपटा बक्सा रखते हुए कहा—-
जीजी , मौली लिपटे संदूक में से ही तो ननद साड़ी छाँटेंगी ना ?
नहीं… ये तो शगुन का धागा किसी एक अटैची पर लपेट देते हैं। संदूक खुलाई के नेग में तो ननद अपनी पसंद की साड़ी उठाती है….. याद होगा तुम्हें, हमारी आरती ने अपनी पूरी अलमारी , संदूक , अटैची सब खोल दिए थे….. और एक-एक नहीं, दोनों बहनों ने , स्वाति ने , मेरी भतीजी- भाँजियों ने …. कुल मिलाकर आठ ननदें थी सबको उनकी मनपसन्द सूट- साड़ी दी थी । गगन की बहू ने तो एक- एक दी थी । स्वाति….आ जाओ सारी बहनें, नीरा ! बोल दें मंयक की बहू को….. कि यहीं सारी सूट- साड़ी ले आएँ ।
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इशिता बेटा….. जा अपनी साड़ियाँ उठा ला …..
पर मम्मी जी …. नेग की साड़ी तो इस लाल धागे से लिपटे संदूक में हैं फिर मैं क्यूँ……
अरे बहू ….. संदूक खोलने की रस्म तो इसी संदूक से निभाई जाएगी पर ननदें तेरी साड़ियों में से भी ले सकती हैं ।
पर ताईजी….. वो मेरी महँगी- महँगी साड़ियाँ है…..
क्या मतलब ? हमारी लड़कियाँ सस्ती साड़ियाँ पहनती हैं या इन्होंने महँगी साड़ियाँ देखी नहीं….. तेरे से पहले इस घर में चार बहुएँ आ चुकी हैं….. वे क्या महँगी साड़ियाँ नहीं लाई …..
मुझे नहीं पता , कौन कैसी साड़ी लाई पर मैं अपनी साड़ियों में से एक भी साड़ी नहीं दूँगी…
पूछ ले नीरा , कहीं तेरी बहू को चाचा- ताऊ की बेटियों को नेग देना भारी तो नहीं लग रहा ?
नहीं जीजी … चाचा- ताऊ की अलग थोड़े ही हैं …. इशिता ! हमारे घर में ना ये बात हुई और ना होगी । ये तो केवल एक रस्म है ….. देने को तो नेग के नाम पर हम ख़रीद कर दे सकते हैं पर ये तो प्रेम संबंध बनाने और बढ़ाने के लिए रीत- रिवाज बने हैं….. आदर के साथ अपनी ननदों को बुला और जिसे जो भी साड़ी या सूट पसंद है, ख़ुशी के साथ दे ।
तभी ताऊ की दोनों बेटियों , चाचा की एक बेटी ,एक मामा की और एक बुआ की बेटी ने मौली लिपटे संदूक में से एक-एक सूट उठाकर कहा कि उन्होंने पसंद का ले लिया हालाँकि वहाँ उपस्थित हर स्त्री जानती थी कि उन्होंने केवल औपचारिकतावश रस्म पूरी की है ।
पर स्वाति के अहम को ठेस लगी । उसने कहा—
लेने को तो मैं भी इसमें से ले सकती हूँ पर क्यूँ लूँ , जब इसमें सब लेने- देने के कपड़े भरे- पड़े हैं, हम क्या मजदूरन है?
इतना कहकर वह एक सिल्क की भारी साड़ी इशिता के कमरे से उठा लाई ।
ये साड़ी मेरी बुआ ने बड़े प्यार से दी है…. मैं इसे हरगिज़ नहीं दूँगी…..
ठीक है…. जो तुम्हें गिफ़्ट में मिली …. उन्हें हटा लो फिर बाक़ी में से छाँटूँगी…..
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इशिता ने सात- आठ साड़ियाँ एक तरफ़ रख दी । उसके बाद स्वाति ने एक साड़ी उठाई तो स्वाति के हाथ से छीनते हुए इशिता बोली—-
ये कलर तो मेरा मनपसंद है …. मैं इसे नहीं दूँगी…..
अब स्वाति को लगा कि इशिता असल में नेग देना ही नहीं चाहती…. इसलिए उसने तैश में आकर कहा-
भाभी…. लूँगी, तो यही साड़ी लूँगी वरना मना कर दो …..
अचानक इशिता ने स्वाति के हाथ से साड़ी छीनकर फेंकते हुए कहा—-
उठा ये साड़ी…. और निकल मेरे कमरे से….. अगर शर्म लिहाज़ है तो इस साड़ी को लेकर चली जा….
इशिता के मुँह से इतना सुनते ही नीरा का मुँह खुला का खुला रह गया । पूरा परिवार हकदम रह गया, कोई नई बहू तो क्या … आज तक बड़ों के सामने छोटो ने पलटकर जवाब देना नहीं सीखा था ।
तेज आवाज़ सुनकर बाहर के कमरे से स्वाति के पति अंदर आए और रोती हुई स्वाति ने ज़िद पकड़ ली कि वह अभी इसी वक़्त यहाँ से चली जाएगी ।
ताऊ-ताई , चाचा- चाची, मामी – मौसी , बुआ सभी ने शांत करने की कोशिश की पर स्वाति के आँसू देखकर प्रभात ने उसी समय कैब बुला ली ।
माता-पिता और बड़ी भाभी- भाइयों ने रोकने की कोशिश की पर स्वाति और प्रभात अपने बेटे देव को लेकर चले गए । शादी की मिठाई- कपड़े वैसे के वैसे पड़े रह गए ।
स्वाति और प्रभात के जाने के बाद बहुत देर तक सब बैठे रहे नीरा रोती रही…. बाक़ी दिलासा देती रही । उधर मयंक अपराधी सा कोने में खड़ा था …. क्या करे , किस हक़ से पत्नी कही जाने वाली लड़की को कुछ कहे …. अभी तो ठीक से जाना- पहचाना भी नहीं…. ख़ैर, ताईजी ने सबको उठाते हुए कहा——
चलो …. उठो , सारी रात बैठे रहेंगे तो भी कुछ ना होने वाला अब ….. सुबह बात करेंगे, अभी मन भरा है, हो जाएगा सब ठीक ।
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अगले दिन नीरा ने दसियों फ़ोन किए पर प्रभात ने फ़ोन उठाया नहीं और स्वाति का फ़ोन स्विच ऑफ था । उसी दिन नीरा ने बड़े बेटे बहू को मिठाई- कपड़े लेकर भेजा और बेटी- धेवते को साथ लाने के लिए कहा पर वहाँ पहुँच कर पता चला कि वे तीनों ही लखनऊ गए क्योंकि देव की छुट्टियाँ थी ।
मम्मी….. क्या करूँ? ये क्या हो रहा है मेरे साथ…. हवाई जहाज़ की आने-जाने और होटल की बुकिंग हो चुकी है, जाऊँ या नहीं….
चला जा तू …. पर एक बात तो बता , क्या इशिता को अपने व्यवहार पर पछतावा है? मैंने पूछा कि ऐसा क्यों किया तो बोली कि ग़ुस्से में हो गया ।
उस दिन ताईजी ने कह दिया कि सब ठीक हो जाएगा पर एक महीना हो गया….. कुछ ठीक ना हुआ । समझाने के बाद भी इशिता माफ़ी माँगने के लिए तैयार नहीं थी ।
मयंक और इशिता हनीमून पर गए और लौट आए । नीरा ने बार-बार कहा कि स्वाति के घर चले जाओ …. तुम छोटी हो , माफ़ी माँग लो ।
पर इशिता ने माफ़ी माँगना स्वीकार नहीं किया । दोनों ननद- भाभी झुकने के लिए तैयार नहीं थी । हाँ….. जब स्वाति का मन करता …. नीरा और उनके पति को अपने पास बुला लेती …. हफ़्ता- दस दिन माता-पिता के पास रह लेती , तीज त्योहार पर कभी बड़े भाई-भाभी तो कभी मयंक अकेला चला जाता । रिश्तेदारी में कोई ब्याह-काज होता तो स्वाति मायके भी आती पर अपने घर की दहलीज़ पर कदम तक नहीं रखा ।
अचानक एक दिन इशिता की भाभी ने नीरा को फ़ोन किया—
मौसीजी! क्या स्वाति दीदी के साथ इशिता ने कोई बदतमीज़ी की थी ?
ये तो बड़ी पुरानी बात हो गई बेटा……
आपके लिए पुरानी हो चुकी पर मुझे तो कल ही पता चली … जब हम अपनी छोटी ननद के लिए लड़का देखने इंदौर गए , वो लड़का , आपकी बड़ी ननद की ननद के देवर का लड़का निकला । बातों- बातों में पता चला कि यहाँ तो पहले से ही रिश्तेदारी है । रिश्ते की हामी भी हो गई थी, अगले इतवार को माँग भरने की तैयारी करने की सोच रहे थे कि कल लड़के वालों का फ़ोन आया और उन्होंने यह कहकर रिश्ता तोड़ दिया
कि जब बड़ी बहन ने पहले ही दिन घर की बेटी को घर निकाला दे दिया तो छोटी भी यही सब करेगी । इस बात को पूरे दो साल हो गए …. ना मयंक ने , ना इशिता ने और ना कभी आपने ज़िक्र किया….. हम भी आपके यहाँ आए पर किसी के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला…….
उससे क्या हो जाता ? पहली बात तो ये कि बिन माँ की बेटी है, क्या तुम्हारे ससुर से शिकायत करते ?मयंक के पापा ने उसी दिन सबको कह दिया था कि हमारे घर की बहू की बेइज़्ज़ती अब हमारी बेइज़्ज़ती है ….. इसलिए मयंक को ख़ासतौर पर इस बात का ध्यान रखने को कह दिया था….. दूसरी बात ……
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नहीं मौसीजी…. माँजी भले ही ना हो पर मैंने इशिता और वंशिका को अपने बच्चों की तरह पाला है…. उसके इस व्यवहार से तो मेरे ऊपर भी उँगली उठ सकती है, मैं और इशिता के भइया कल ही आ रहे हैं, आप हमारे आने का ज़िक्र मत करना ।
अगले दिन इशिता के भैया- भाभी आए । इशिता को सामने बिठाकर सबके सामने बात हुई ।
— इशू! अगर मैं माँ के मरने के बाद तुम्हें और वंशिका को तुम्हारे घर से निकल जाने को कहती तो तुम्हें कैसा लगता ? तुमने ये भी ना सोचा कि जब पापाजी को ये सब पता चलेगा, उन्हें कैसा लगेगा? सुन …. आज हम ठीक उसी तरह तुमसे रिश्ता तोड़ने आए हैं, जैसे तुमने स्वाति दीदी के साथ अपना रिश्ता तोड़ लिया है….. वंशिका की शादी करके हम उसके साथ भी संबंध ख़त्म कर लेंगे क्योंकि वो भी अपनी बहन कीं देखादेखी उसी जैसी बनेगी ।
इतना कहकर वे दोनों उठकर बाहर जाने लगे …. तभी पीछे से अपनी भाभी का हाथ पकड़कर इशिता बोली —-
भाभी, इस तरह मुझे अकेला मत छोड़ो, मुझे सच में पछतावा है… मैं वैसा कभी नहीं करना चाहती थी पर….. रुकिए, मैं अभी आप सबके सामने स्वाति दीदी और जीजा जी से माफ़ी माँग लेती हूँ ।
उसी समय इशिता ने मयंक का फ़ोन लेकर मिलाया—-
दीदी, मैं स्वाति हाथ जोड़कर आपसे और जीजाजी से अपने दुर्व्यवहार के लिए माफ़ी माँगती हूँ….. दीदी ! मैं और मंयक कल आपके पास आ रहे हैं ।
और अगले दो दिन बाद ही मयंक और इशिता स्वाति, प्रभात तथा देव के साथ घर लौट आए । रात के खाने के बाद इशिता वहीं शादी वाला लाल धागे से लिपटा बक्सा उठाकर लाई और हाथ जोड़कर स्वाति से बोली —-
दीदी , जो संदूक खुलाई का नेग बचा है , उसे पूरा कीजिए । जो भी सूट- साड़ी पसंद हो…. छाँट लीजिए । आज आप इस अधूरी रस्म को पूरा कर दें , मेरी दूसरी ननद जब भी आएँगी मैं उनसे भी उनकी मनपसंद साड़ी छाँटने की प्रार्थना करूँगी ।
स्वाति ने संदूक खोला तो देखा कि वही सिल्क की भारी साड़ी सबसे ऊपर रखी थी, जिसे इशिता ने यह कहकर देने से मना कर दिया था कि वो साड़ी उसकी बुआ ने दी है ।
स्वाति ने उसे उठाया और माथे से छूकर गोदी में रख ली ।
घर वापसी’
करुणा मलिक