सांध्य प्रहर का प्यार – सुधा जैन

वसुंधरा अपनी उम्र के उत्तरार्ध को पार कर रही है ।वसुंधरा बहुत ही संवेदनशील, भावनाओं से भरी कोमल नारी है। उसके जीवन के पूर्वार्द्ध को देखें तो उसके अनुभव अच्छे नहीं हैं ।जब वे छोटी थी तब अपने ही किसी रिश्तेदार के दुष्कर्म का शिकार होते होते बची, और उन हाथों की चुभन वह अभी भी महसूस करती है।
सपनों का संसार सजाए हुए उसने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया , लेकिन पति के मधुर स्पर्श को कभी भी महसूस नहीं किया। उसके लिए हर रात्रि एक संघर्ष रात्रि थी। दो बेटियां जीवन में आई, और धीरे-धीरे बेटियां समझ गई कि मम्मी के जीवन में सब कुछ ठीक नहीं है। हर रात मम्मी के कमरे से रोने की आवाज आती और सुबह मम्मी की पीठ पर निशान।
एक दिन वसुंधरा के सब्र का बांध टूट गया और उसने अपने पति से तौबा कर ली ।बेटियां अपने मां के दर्द को समझती थी, और उनके दृष्टि में शादी जीवन की सबसे बेकार चीज बन गई। बड़ी बिटिया अमायरा पढ़ाई करने के लिए विदेश गई और वहीं की होकर रह गई ।छोटी बिटियां समायरा दिल्ली की मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर है ।वहीं पर फ्लैट ले लिया और वसुंधरा उसी के साथ रहती हैं ।दोनों बेटियों को शादी के नाम से ही चिढ़ है, और जब भी कभी वसुंधरा बोलती, तो वे कहती” मम्मा आपको अपनी शादी से क्या मिला”?
उसके पास इन प्रश्नों के जवाब नहीं थे।
वसुंधरा का स्वास्थ्य इन दिनों ठीक नहीं रहता। घुटने भी बहुत दर्द करते हैं। डॉक्टर ने सुबह शाम घूमने की सलाह दी है ,और साथ ही योग, प्राणायाम करने को भी कहा है।



वसुंधरा प्रतिदिन सुबह पार्क जाती है, और तीन चार चक्कर लगाकर पार्क में बैठ जाती है, और वहीं पर कपाल भारती, अनुलोम विलोम, प्राणायाम करने लगती हैं। एक दिन जब वे पार्क में बैठी थी, तभी एक अधेड़ उम्र के सज्जन उसकी बैंच पास आकर रुक गए, और बोले “आप कपाल भारती अलग तरीके से कर रही हैं, इसे सही तरीके से कीजिए, अन्यथा फायदे की बजाय नुकसान हो जाएगा “।
वह उन सज्जन को देखने लगी और सोचने लगी” इनको मेरी क्या पड़ी है ‘?
फिर सज्जन ने पूछा” मैं आपके पास बेंच पर बैठ जाऊं क्या?
वह ना नहीं कर सकी ।उन्होंने कपाल भारती को सही तरीके से करना बताया।
जब वह शाम को घूमने आई तब भी वह सज्जन मिल गए। अब तो प्रतिदिन सुबह और शाम का यही क्रम हो गया। वसुंधरा जी का बेंच पर बैठना ,उनका आना और फिर बहुत सारी स्वास्थ्य संबंधी बातें, फिर धीरे-धीरे एक दूसरे के बारे में जानने लगे।
उनका नाम संजीव है। यहां पर अपने बेटे के पास आए हैं ।पहले अपनी पत्नी के साथ एक कस्बे में रहते थे। 6 महीने पहले ही पत्नी गुजर गई, और संजीव उन्हें बहुत याद करते हैं ।उनकी बातचीत में सदैव अपनी पत्नी का जिक्र होता है। उसके हाथों का बना खाना, चाय, एक दूसरे की देखभाल, सभी प्रकार की बातें होती ।वसुंधरा यकीन ही नहीं कर पाती कि पुरुष इतने अच्छे भी होते हैं, क्योंकि उसने कभी पुरुषों का इस प्रकार का रूप देखा ही नहीं था। वसुंधरा उनकी बातें सुनती ही रह जाती कि एक पुरुष का हृदय भी इतना संवेदनशील हो सकता है। दोनों बातें करते रहते। एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा। दोनों एक ही मल्टी में ऊपर नीचे रहते थे।एक दिन वसुंधरा जी ने उन्हें चाय पर बुलाया। संजीव जी उसके जीवन के बारे में पूछने लगे ….अपने जीवन को बताते बताते उनकी आंखों से आंसू बहने लगे… तब संजीव ने अपने हाथों से वसुंधरा की आंखों के आंसू पोंछे और वसुंधरा के हाथों को अपने हाथों में ले लिया। उनके स्पर्श से वसुंधरा को लगा, क्या किसी पुरुष का स्पर्श है इतना कोमल भी हो सकता है? वह सोचने लगी” काश यह हाथ मेरे हाथ से कभी ना छूटे ”
उन दो पलों में उसे लगा उसने सारी जिंदगी जी ली हो।
संजीव चले गए वसुंधरा को सारी रात ऐसा लगता रहा, जैसे वह अभी युवावस्था में है और अभी-अभी प्रेम में पड़ी है। एक नारी हो या पुरुष, उम्र कितनी भी हो जाए, मन की संवेदनशीलता कभी भी कम नहीं होती ।मन सदैव किसी के प्यार को, किसी के स्पर्श को, किसी के अपनेपन को सदैव महसूस करना चाहता है। सदैव प्यार के रस में भीग जाना चाहता है। संजीव अपने बेटे के यहां पर जब सोने लगे तब उन्हें भी अपनी पत्नी की बहुत याद आई ,और वसुंधरा में अपनी पत्नी की छवि दिखाई दी।
सावन का महीना था। प्रकृति हर तरफ अपनी हरियाली बिखेर रही थी। पानी की हल्की हल्की बूंदे वातावरण को बहुत ही खुशनुमा बना रही थी। इस खुशनुमा वातावरण की सुबह सुबह-सुबह जब दोनों पार्क की बेंच पर मिले, तब दोनों के चेहरे अजीब सी संतुष्टि से भरे हुए थे। दोनों एक दूसरे को प्यार से देख कर मुस्कुरा रहे थे, और ऐसा लग रहा था कि यह थिरकता सावन और उनका महकता मन इस सावन की फुहार में चहकने लगा है ।
सुधा जैन
स्व लिखित कहानी

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