समय का खेल 

“इस बार तो अकाल बारिश होने से हमारी फसल भी नहीं हुई… और जब हम फसल करते भी है तो पानी की कमी के कारण फसल फिर बर्बाद हो जाती है. ऐसे में हम दिन-ब-दिन बूढ़े भी होते जा रहे है हम गांव में रहकर और अकेला गुजारा नहीं कर सकते…”

“हां जी तभी तो मैं कहती हूं कि चलिए हम अपने बेटे के पास शहर जाकर रहते है… भला उसने तो हमें कितनी बार कहा कि हम उसके साथ शहर जा कर रहे, लेकिन आप ही मना करते!”

“हां भाग्यवान क्या करूं शहर में बेटे के ऊपर बोझ बनना भी तो अच्छा नहीं लगता! लेकिन अब लगता है की हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है…”

ऐसा कह कर जानकी, पति कृपाला के साथ शहर अपने बेटे कार्तिक के पास चले जाते है. रात होते ही वह बेटे के घर पहुंच जाते है. बेटे कार्तिक और बहू नीता ने उन दोनों का खूब अच्छे से स्वागत किया. बेटा अपने माता-पिता को देख बहुत खुश हुआ और बातें करने बैठ गया… इतने में बहु नीता आकर कहती है,

“अरे माजी पिताजी बहुत दूर से सफर करके आए है… थक गए होंगे!! उन्हें पहले आराम करने दें और फिर मैं खाना लगाती हूं खाना खा कर फिर सब लोग मिलकर बात करते है!!”

इतने में अपने कमरे से भागते हुए पोता तन्मय आता है… “दादाजी दादाजी कोई कहानी तो सुनाइए कितने दिन हो गए मुझे किसीने कोई कहानी नहीं सुनाई!! मां तो हमेशा घर के कामों में व्यस्त रहती है, और रात होते ही सो जाती है!! पिताजी भी सारा दिन ऑफिस रहते है घर लौटने में देर हो जाती है तो हर दिन में बिना कहानी सुने ही सो जाता हूं…”

“हां तो तुम अच्छे बच्चे हो इसलिए जिद नहीं करते…” मां नीता अपने बच्चे को समझाते हुए कहती है की वह अपने कमरे में जा कर अभी सो जाए क्यों की उसके दादा दादी थक चुके होंगे.

“जाओ अभी दादा जी दादी जी को आराम करने दो वह लंबा सफर करके आए है ना बेटा हम तुम्हें कल कहानी सुना देंगे ठीक है…”

“हां वैसे भी मैं अच्छा बच्चा हूं… जिद नहीं करता!”

फिर ऐसे कुछ दिन शहर में बीत जाते है. लेकिन जैसे जैसे दिन गुजरते है वैसे वैसे बेटे कार्तिक की पत्नी नीता अपने सास ससुर के वापस लौटने की राह देखने लगती है…

“अरे आपके पिताजी वापस गांव कब लौट रहे है मैं तो उनके लिए खाना बना बना कर थक गई हूं!! जरा पूछना वह कब लौट रहे है…”



“ठीक है तुम धीरे बोला करो वह सुनेंगे तो क्या कहेंगे… उनको बुरा लगेगा मैं पता करके तुम्हें बताऊंगा!!”

और फिर कार्तिक अपने पिताजी से सीधे-सीधे पूछने के लिए तो कतराता है लेकिन बातों ही बातों में वह उनसे जान लेता है कि गांव में अब रहने का कोई मतलब नहीं क्योंकि फसल बर्बाद हो जाती है. और बूढ़े होने के कारण अब वह काम नहीं कर सकते. इसलिए वह तो हमेशा के लिए अपने बेटे के साथ शहर में रहने आ गए है.

और यह बात जानकर बेटा कार्तिक अपनी पत्नी को बताता है कि, वह अब हमेशा के लिए यही रहने वाले है. यह जान कर पत्नी का गुस्सा फूट पड़ता है और वह कहती है,

“अरे तो फिर क्या मैं उनके लिए सारी जिंदगी खाना बनाकर सेवा करती रहूंगी… उनसे कहिए कि हमारे घर के पास ही में नौकरों का कमरा है वहां पर अलग हो जाए और खुद ही अपने पति के लिए खाना बना कर दे अगर कोई सामान की जरूरत होगी तो हम ला कर देंगे…”

ऐसे ही बाहर से कार्तिक की मां अपनी बहू और बेटे की सारी बातें सुन लेती है और पति को जा कर कहती है,

“हम भी कितने बुरे है ना की अपने बच्चे के ऊपर बोझ बन कर  रहे है. उन्हे हमारी वजह से कितनी तकलीफ होती होगी… अभी अभी तो उनकी जिंदगी शुरू हुई है, ऐसे में हम उन पर बोझ बनकर रहेंगे कैसा लगेगा!!”

“हां तो भाग्यवान मैंने तो कहा था कि हम गांव में ही रह लेते तुमने ही शहर आने की जिद की थी!!”

और अब कार्तिक के माता-पिता यह निर्णय लेते है कि शहर में अपने बेटे बहू के घर एक बोझ बनकर रहने से अच्छा वह कोई वृद्ध आश्रम में रह ले. यह बात खुद कार्तिक अपने पिता और मां से कहता उनसे पहले वे ही कार्तिक अपने बेटे को कहने जाते है तो कार्तिक उन्हें मना करने ही वाला होता है की कार्तिक की पत्नी अपने पति का हाथ थाम कर उन्हें चुप रहने को कहती है.

और दूसरे दिन कार्तिक उसी शहर में कुछ पैसे लेकर अपने माता-पिता को गाड़ी में बिठा कर वृद्धाश्रम छोड़कर अपने घर वापस चलाता है. और ऐसे ही साथ में छोटा बेटा काव्य भी होता है जो अपने दादा दादी को वृद्धाश्रम छोड़ते हुए देख अपने पिताजी से पूछता है,



“पिताजी हम दादा दादी को यहां क्यों छोड़ रहे है?”

तो पिता जवाब देते हुए अपने बच्चे से कहता है,

“अरे वह बूढ़े हो चुके है ना बेटा इसलिए हम उन्हें यहां पर छोड़कर जा रहे है लेकिन हम उन्हें हर हफ्ते मिलने आएंगे!!”

“अच्छा तो पिताजी जो लोग बूढ़े हो जाते है तो उन्हें यहां रहना पड़ता है?”

नहीं नहीं ऐसा नहीं है बेटा दादा-दादी बूढ़े होने के कारण उन्हें उनके उम्र के लोगों के साथ घूमना मिलना बात करना अच्छा लगता है… जैसे तुम्हें तुम्हारी उम्र के बच्चों के साथ खेलना अच्छा लगता है.”

अपने पिता की यह बात सुन बेटा चुप हो जाता है. ऐसे ही समय बीता जाता है. अब जानकी और पति कृपाला के शहर में वृद्धाश्रम में गुजारा करते हुए एक साल हो जाते है, जानकी और कृपाला वृद्धाश्रम में अपना जीवन गुजारा अच्छे से कर रहे थे. पिछले एक साल से हर महीने के अंत में बेटा कार्तिक वृद्धाश्रम आकर अपने मां पिताजी के लिए पैसे भी जमा करवा देता है.

ऐसे ही एक दिन बेटा अपने किताब में एक बड़ी सी गाड़ी देखता है तो अपनी मां से जाकर कहता है,

“मां मां या बड़ी सी गाड़ी देखो क्या हम भी ऐसी एक बड़ी सी गाड़ी खरीद कर ले आए!”

तो मां बेटे को जवाब देते हुए कहती है,

“बेटा अभी तुम्हारे पिताजी इतना नहीं कमाते जो इतनी बड़ी गाड़ी खरीदे… पर तुम बड़े होकर ऐसी बड़ी गाड़ी खरीदना इसके लिए तुम्हें अभी बहुत सारी पढ़ाई करनी होगी और हर परीक्षा में भी अव्वल आना होगा. तभी ऐसी बड़ी गाड़ी खरीद कर बड़े घर में रह पाओगे… और तुम्हारे साथ साथ हम भी रहेंगे!!”

“अच्छा लेकिन मां तब तक तो आप बूढ़े हो जाएंगे ना तो आप मेरे साथ क्यों रहेंगे आप तो वृद्धाश्रम में रहेंगे जैसे दादा-दादी रहते है… क्योंकि आपको भी तो अपने उमर के लोगों के साथ ही रहना पसंद होगा!!”

बेटे की यह बात सुन नीता अब चिंतित होती है. अपने पति को  तुरंत कहलवा कर वो अपने सास-ससुर को घर वापस ले आती है. ताकि उसके बेटे के ऊपर जो अपने दादा दादी को लेकर गलत छाप पड़ी है तो कल को वह भी बड़ा हो कर ऐसे ही उनको वृद्धाश्रम ना भेज दे. इस डर से वह अपने साथ सास ससुर को ला कर उनकी सेवा करना सुरु करती है. ताकि बच्चा काव्य वो देख कर सीखे और बड़े होने पर ऐसा व्यवहार ना करे जैसा उसने अपने सास ससुर से किया था. 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!