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सम्मान की रक्षा – अनुपमा 

आज आपको राधिका से मिलवाते है 

राधिका हमारे चाचा जी की सबसे बड़ी बहू है  । आप सब सोच रहे होगे अचानक से आज मैं आपको राधिका से क्यों मिलवाना चाहती हू । आप मिलिए तो सही पहले हमारी राधिका से 

राधिका की शादी हुए अब तो बीस साल हो चुके है । और इन बीस सालों मैं अब वो बिल्कुल भी वैसी नहीं है जैसा हम उसे शुरू मैं जानते थे ।

जब उसकी शादी हुई थी तब वो हम तुम जैसी आम लड़की ही थी , जो अलहड़ता से निकल कर हमारे परिवार मैं बड़ी बहू बन का आ चुकी थी । राधिका बहुत ही सुघड़ थी , ऐसा क्या था जो उसे नही आता था , खाना बनाना , मीठा भी बहुत अच्छा बनाती थी , फास्ट फूड भी और सभी तरह के खाने भी अच्छे बना लेती थी , बाकी अन्य कार्यों मैं भी बहुत दक्ष थी राधिका , दरअसल कभी उसके मुंह से सुना नही की “नही ये कैसे होगा या मुझे आता नही करना ” चाहे वो सिलाई कढ़ाई हो या बुनाई , तस्वीरें भी बहुत खूब बनाती थी , क्रोशिया से तो उसने बहुत सुंदर सुंदर गोपाल जी की पोशाकें बना रखी थी , कंप्यूटर भी आता था , घर बाहर सभी तरह के कामों मैं एकदम निपुण थी राधिका।



उसकी दो प्यारी  सी बेटियां हुई थी और वो कोशिश करती थी की अपने सभी गुण वो उन्हें भी सीखा सके ।

पर राधिका का जीवन आसान नहीं था , हमारे चाचा जी के बेटा अमित राधिका के बिलकुल उलट था , ना ही तो कोई गुण न ही कोई ढंग । भगवान भी जोड़े ऊपर से बना कर भेजता है जाने कैसे बेमेल सी जोड़ी थी , पर राधिका कुशलता से सब निभा रही थी , बात बात पर चिल्ला देना , गलियां देना ,खाने मैं बहुत ही ज्यादा नखरे करना , समय पर कभी भी साथ न रहना , अपनी अलग ही दुनिया मैं खोए रहना और राधिका की बिलकुल भी इज्जत न करना चाहे घर मैं हो या समाज मैं , ये थी अमित जी की विशेषताएं ।

राधिका अब मां बन चुकी थी , उसकी बेटियां लगभग दस साल की हो चली थी और सबकुछ समझने भी लगी थी , बेटियां जब भी अमित होता तो बहुत सहम सी जाती थी , और अमित से दूर दूर ही रहती थी 

कुछ दिनो से राधिका भी अमित से दूर रहने का प्रयास करने लगी थी , एक घर मैं रहते हुए भी जितने भर से काम चल जाते उतने ही शब्दों का इस्तेमाल करती थी , कम से कम बातों मैं उलझती थी , उसने बाहर आना जाना भी कम कर दिया था और अमित के खाने मैं उसकी ही पसंद का सभी कुछ अलग बना देती थी । और हद से ज्यादा बात कभी बढ़ भी जाती थी तो राधिका अब अमित को रोक देती थी ।



राधिका अपने दिल की बात जल्दी कहने वालों मैं से नही थी , एक दिन मैं जब मायके आई और चाचा जी के यहां गई तो राधिका से मिलना हुआ , दरअसल राधिका और मैं बचपन की सहेलियां है और बचपन की सहेलियां जब मिलती है तो बातें तो ही जाती है ।

इधर चाची जी से राधिका के बदले व्यवहार के बारे मैं सभी को कुछ न कुछ पता ही था और मैने भी कुछ देर के वक्त मैं ही समझ लिया था की राधिका मैं बहुत परिवर्तन आ चुके है  

बातों ही बातों मैं जब मैने राधिका से पूछा तो उसने कहा , लवी तुमने तो मुझे देखा है बचपन से लेकिन अब मैं खुद मां बन चुकी हूं , इन दो बेटियों की अच्छी परवरिश करके मुझे इन्हे अच्छा इंसान बनाना है जो खूबियां मुझमें थी उससे मुझे तो कुछ नही मिला , लेकिन मैं नही चाहती की मेरी बच्चियों को भी वो झेलना पड़े जो मैने झेला है , अगर मैं इन्हे हर कार्य मैं कुशल बनाऊंगी तो उससे पहले मुझे इन्हे ये भी तो सिखाना है की खुद के सम्मान की रक्षा कैसे की जाए । अगर इंसान खुद के सम्मान के लिए भी न खड़ा हो पाए तो लवी सारी कुशलता किस काम की है , मैने अपने सभी फर्ज दिल से निभाए है पर अब मुझे मां होने का फर्ज निभाना है , खुद के सम्मान की रक्षा करूंगी तभी तो मेरी बेटियां भी सीख पाएंगी उन्हें सम्मान के साथ जीना है । मेरे लिए सभी कुशलताओं मैं सर्वोपरि खुद के सम्मान की रक्षा करना आना जरूरी है । अब मैं सिर्फ एक मां हूं और एक यही फर्ज मुझे पूरे दिल से निभाना है ।

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