समझौता – ज्योति अप्रतिम

उसे अपनी बच्ची के लिए स्कूल और स्कूल वालों से शिकायतें और शिकायतें रहतीं।

कभी बस में सीट न मिल पाना ,कभी अत्यधिक भीड़ ,कभी किसी बच्चे की बोतल से चोट लग गई कभी बैग से !और चोट से कभी आँख में सूजन और कभी दाँत में चोट।

 

सुनते सुनते श्रीमती राजे भी तंग आ गई थी। आज उन्होंने उस पालक को दो टूक शब्दों में बात करने के लिए  बुलाया था।

 

और वह समय पर आ गई लेकिन साथ में ले कर आई एक बड़े नेता की पत्नी को।

श्रीमती राजे ने अपने उसूलों को मानते हुए नेता जी की पत्नी को कोई तवज्जो न देते हुए सीधे पालक से बात करना शुरू  कर दिया।

 

श्रीमती राजे का ऐसा रवैया नेता पत्नी को बहुत नागवार गुजरा।बहुत प्रयास करती रहीं अपना प्रभाव  जमाने का लेकिन श्रीमती राजे ने उनकी एक न चलने दी।

 

श्रीमती राजे ने पालक को बालिका के बारे में समस्त ऊँच नीच समझा कर विदा किया और अपने काम में लग गईं।

शाम होते न होते उनके पास एक छुटभैये नेता का फ़ोन आ  गया ,”मैडम आप अपने को क्या समझती हैं।आज आपने माननीय विधायक जी की पत्नी का अपमान किया है।आप तुरंत उन्हें फोन कर माफ़ी माँगे अन्यथा परिणाम अच्छे नहीं होंगे।”

श्रीमती राजे हैरान परेशान थीं।उनकी समझ में उन्होंने कुछ गलत नहीं किया था।

आनन फानन में उन्होंने स्कूल प्रशासन से संपर्क साधा।

तुरंत आदेश मिला , “माफ़ी माँग लो”

 

स्कूल और मैनेजमेंट के सम्मान को ध्यान में रखते हुए  श्रीमती राजे ने अपने उसूलों की होली जलाते हुए ,दिल पर पत्थर रख कर तथाकथित सम्माननीय नेता पत्नी से माफ़ी माँग ली।

 

अपनी ईमानदारी और अनुशासन की इस तरह धज्जियाँ उड़ते देख दिल रो उठा श्रीमती राजे का!

अपने उसूलों से समझौता करने का दुख उनके चेहरे पर स्पष्ट देखा जा सकता था।

 

वो दुःख ताउम्र ,अंतिम साँसों तक रहेगा।

 

ज्योति अप्रतिम

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