ये बात सच है कि इंटरनेट की दुनिया ने जाने कितने उन अपनों को मिला दिया जो सिर्फ कहीं न कहीं दिलों दीमाग तक रह गए है।अब पूजा को ही ले लो वो तो उस जमाने की ठहरी जब न नेट था न फोन तभी तो गए वक्त के साथ सब कुछ सीने में दफन कर उन अपनों के साथ जीना सीख गई ।जहां वैचारिक मतभेद का बोलबाला है मन मिलने की बात तो छोड़ दो।
खैर अब बंधन बंधा है तो निभाएंगी ही जाएगी कहां पी घर से झगड़कर कभी न आने की बात तो पहले ही कह दी गई थी।
ऐसे में वो जाए तो जाए कहां,इस दरमियान उसने कई बार उन लम्हों को याद किया जो आज भी उसके दिल की धड़कन है ,बहुत कोशिश के बाद भी भूला नहीं पाई
भूलती भी कैसे आज उसी की बदौलत तो अपने पैरों पर खड़ी है।
फिर पहले में और अब में बहुत अंतर भी तो आ गया लोगों के पास फोन के साथ साथ इंटर नेट भी है जिससे जिंदगी को बिंदास जी रहे हैं।जहां अपनों से लेकर अपने तक को जोड़ रहे।
फोन चलाते चलाते बस ऐसे ही एक दिन फोन चलाते चलाते उसने भी उस शख्स को ढूंढ़ निकाला जो आज भी उसके जीवन का हिस्सा है।सर्च करने पर जैसे ही मिला खुशी का ठिकाना न रहा।
मैसेंजर पर बात भी हुई पर बहुत आगे बढ़ न सकी । अपनों की बंदिशें आड़े आई।
फिर भी कैसे भी करके उसने मिलने की इच्छा जताती तो उधर से ओके सुन कर उछल पड़ी।
फिर एक रोज मिले तो घंटों बातें हुई फिर भी जी नहीं भरा ,ऐसा लगा जैसे घंटों सेकेंडों में गुजर गए ।
इस दरमियान इसने बातों ही बातों में अपने नौकरी करने की बात बताई।तो वो खुश हो गया।ये सोचकर कि जिस सपने को उसने देखा था वो पूरा हो गया ,वो आत्मनिर्भर हो गई।
आज उसे ऐसा महसूस हो रहा कि स्त्री की तरह पुरुष भी पहली मोहब्बत को कभी भूलता नहीं बस गृहस्थी में फंस कर सीने में दफन कर देता है।
और सबसे बड़ी बात वो ऐसा करके खुद के साथ साथ प्रेमिका को भी अच्छा वैवाहिक जीवन जीने की सलाह देता है।
स्वरचित
कंचन आरज़ू