
सकारात्मक सोच – प्रीति सक्सेना
- Betiyan Team
- 0
- on Mar 04, 2023
अर्पिता कॉलेज के लिए जैसे ही निकलने लगी, प्रीति ने उसके मुंह में छिले बादाम ठूंस दिए, सामने फ्लैट में प्रीति की हमउम्र सुनीता ये सब देख रही थी, अर्पिता हमेशा की तरह सासू मां के पैरों में झुकी, आर्शीवाद लिया और लिफ्ट से नीचे चली गई, सुनीता ने प्रीति को चाय के लिए बुला लिया….. प्रीति भी फ्री थी, दोनों बच्चे स्कूल, बेटा अपनी कम्पनी, बहू कॉलेज जा ही चुके थे पतिदेव अपना चाय का कोटा पूरा करके अखबार बांचने में व्यस्त थे…ये सोचकर प्रीति भी सुनीता के फ्लैट में आ गई!!!
” प्रीति जी!! आप कल ही सुबह तो आईं और आते साथ ही बहू ने ड्यूटी लगा दी .. कहकर सुनीता हंसने लगी “!!
” कैसी ड्यूटी सुनीता जी, मैं बच्चों के पास कभी कभार ही आती हूं, ज्यादातर मेरे बच्चे ही हमारे पास आते हैं, थोड़ा बहुत काम तो मैं अपने घर में भी करती ही हूं… वैसे मैंने किया क्या ” ??
” आप आईं तो बहू को कॉलेज जाने की क्या जरूरत थी, छुट्टी ले लेती, कौन सा आप लोग रोज़ रोज़ आते हैं, अब आधा दिन अकेले पड़े रहो…. आख़िर बहू का भी तो कुछ सुख मिलना चाहिए न? “!!
” यही तो गलती करते हैं हम सासें……जो ऐसी सोच रखते हैं , मेरी बेटी भी डॉक्टर है, बेटी दामाद दोनों साथ साथ अपने क्लीनिक जाते हैं, अपने माता पिता के साथ रहते हैं, जब बेटी कामकाजी है, तो बहू के लिए अपने विचारों में इतना बदलाव क्यों ? देखिए …. सुनीता जी !! पहल हमें करनी है क्योंकि हम बड़े हैं.. अपनेपन और प्यार का हाथ हम बहू की तरफ़ बढ़ाएंगे तभी तो वो हमारे नज़दीक आएगी, हमें अपना समझेगी… रिश्तों को हौआ न बनाकार उसे प्रेम और विश्वास के सूत्र में बांधे वरना रिश्तों की डोर कमज़ोर होते होते टूट ही जाएगी “!!
सुनीता जी की बहू चाय लेकर आई और चुपचाप जाने लगी, प्रीति ने रोका… और पूछा, बेटा !! आप भी जॉब करती हो?
वो जवाब दे उसके पहले ही सुनीता जी तमककर बोलीं….
” अब क्या इस उम्र में मैं गृहस्थी संभालूंगी… न भाई न ये चोंचले हमसे तो न उठाए जाएंगे… बहू अपना घर और बच्चे संभाले… आखिर हमने भी तो यही किया है, बहू आने का सुख तो मिले” !!
चाय का आखिरी घूंट भरते हुए प्रीति बोली !! ” बहू खुश और सन्तुष्ट रहेगी तभी बेटा भी निश्चिंत और खुश रहेगा… थोड़ी सी सोच बदलिए, साथ दीजिए.. अगर बच्ची कुछ करना चाहती है तो उसे करने दीजिए, जमाना बदल चुका है… हमें भी बदलने की जरूरत है, दकियानूसी सोच के कारण ही घर टूट रहे हैं, बच्चे माता पिता से अलग रहने को मजबूर हो रहे हैं, बेटे मां और पत्नि के बीच में पिस रहे हैं नतीज़ा .. अलगाव और विचारों में टकराव, दोषी हमेशा बच्चे नहीं…. कुसुरवार हम भी तो हैं…
माफ कीजिए अगर कुछ ज्यादा बोल गई हूं तो “🙏, कहकर प्रीति उठ गई वहां से “!!
सुनीता जी ने उनके हाथ पकड़ लिए बोलीं….. ये ब्यूटी पार्लर खोलने की इजाज़त चाहती थी, घर पर, मैं अपने स्वार्थ में अंधी रही, मेरा खाना पीना, समय से चाय नाश्ता, सोचती थी बाहर के लोगों की संगत में बिगड़ न जाए
पर सच कह रही हैं आप…. आपकी अर्पिता और मेरी सुमन के चेहरे में कितना फर्क है… जहां आपकी बहू आत्मविश्वास से भरी हुई, वहीं मेरी बहू डरी और बुझी हुई सी!!
“आपसे वादा करती हूं अब मैं भी अपनी सुमन का साथ दूंगी उसके सपने पूरे करने में!! वैसे भी अभी इतनी बूढ़ी भी नहीं हुईं हूं मैं,” सुमन कृतज्ञता से प्रीति की तरफ़ देखकर मुस्करा दी, अब वो भी अपनी पहचान बनाएगी अपनों की सहायता से!!
जब जागो तभी सवेरा, समय तेज़ी से बदल रहा है, परिर्वतन की लहर चल रही है, बच्चों को हम साथ दें बच्चे दोगुना साथ देंगे, तभी बनेगा एक प्यारा आदर्श परिवार!!
प्रीति सक्सेना
इंदौर
कॉपी राइट सर्वाधिकार सुरक्षित