सज़ा – अनु’ इंदु

एक ही शहर में रहते हुये भी तनु दीदी मुझसे कभी नहीं मिली थीं । जबकि तनु दी मेरी सगी बुआ की लड़की थी । फिर ऐसा कुछ हुआ कि तनु दी को मैंने दिल्ली में किसी रिश्तेदार की मृत्यु पर देखा । देख कर यकीन नहीं हुआ कि क्या यह वही है ।

कितनी हंसमुख होती थीं  वो । सुँदर भी बहुत थीं  । मुझसे पांच साल बड़ी थीं । दिल्ली के अच्छे रईस घराने में ब्याही थीं । उनके पति राजेंद्र जी लोहे का कारोबार करते थे । तनु दी बहुत ख़ुश थीं । राजेंद्र जी के छोटे भाई विनय  अमेरिका में रहते थे , वहीँ पर उन्होंने किसी विदेशी महिला से शादी कर ली थी ।  दो साल उनका बेटा भी था । क्यूंकि वो शादी में आ नहीं पाये थे,  इसलिए पहली बार अपनी पत्नि मारिया और बेटे jimmy के साथ अपने भाई भाभी से मिलने आ रहे थे । दिल्ली में दो चार दिन सब से मिलने के बाद उन्होंने सोचा कि चलो तनु भाभी के पीहर चला जाये । क्यूंकि तनु के दोनों भाई उन्हें पहले से ही जानते थे , अच्छी दोस्ती भी थी , उन्होंने सोचा कि किसी hill station पर चला जाये ।

तनु का छोटा भाई अश्विनी और बड़ा भाई रोहन अपनी नई कार में तनु के देवर देवरानी और बच्चे सहित dalhousie के लिये रवाना हुये । रास्ते में रात हो गई थी । अश्वनी भी गाड़ी चलाते थक गया था । एक जगह उन्होंने गाड़ी रोकी ताकि सिगरेट पी लें । पीछे वाली सीट  पर विनय , मारिया और बेटा jimmy बैठे थे । दोनों भाई अश्विनी और रोहन बाहर निकल कर सिगरेट पीने लगे । अचानक पता नहीं क्या हुआ कि गाड़ी अपने आप ढ़लान से नीचे खिसकने लगी । यह देख कर दोनों भाई गाड़ी की तरफ़ लपके ही थे कि गाड़ी तेज़ी से गहरी खाई में जा गिरी । यह देख कर दोनों घबरा गये । रात के दो बज रहे थे , उनकी बहन के देवर का परिवार गाड़ी में ही था। चीख चीख कर उन्होंने लोगों को सहायता के लिये पुकारा मगर कोई फायदा नहीं था । इतना अँधेरा था ।



यह घटना 1981 की है उन दिनों मोबाइल नहीं थे। आते जाते किसी व्यक्ति द्वारा अपने घर पर हादसे की सूचना दी । इतनी रात में जब तक उनके parents पहुंचे तब तक police भी पहुँच चुकी थी।सुबह के सात बजे के क़रीब जब थोड़ी रौशनी हुई तो गाड़ी को trace किया गया । वहाँ के लोकल लोगों की सहायता से गाड़ी में बैठे लोगों को बाहर निकाला गया । राजेंद्र जी के भाई विनय की तो मृत्यु हो चुकी थी , मगर मारिया और बच्चा जिंदा थे , उन्हें हल्की चोटें आईं थीं , first aid के बाद उन्हें घर भेज दिया गया ।

लेकिन असल हादसा तो अभी होना बाकी था । विनय का “चौथा” था,  सब रिश्तेदार इकट्ठे थे । मारिया की मम्मी भी u.s .से आईं थीं , वहाँ सब के बीच में मारिया की मम्मी ने स्टेज पर बोलना शुरू कर दिया ” अब मारिया का यहां कुछ नहीं है , मैं मारिया और jimmy के साथ वापिस u.s.जा रही हूँ , विनय का मर्डर हुआ है , मैं इसे हादसा नहीं मानती , ऐसा कैसे हो सकता है कि दोनों भाई बच गये और वो परिवार सहित गाड़ी में बैठे रह गये “। उन्होंने तनु दी के भाइयों के खिलाफ़ case कर दिया । बुआ जी के परिवार के लिये यह बहुत ही दुःखद घड़ी थी और दूसरी तरफ़ अपनी ही लड़की के ससुराल का मामला था ।

इस दुर्घटना ने तनु दीदी के प्रति उनका रवैय्या ही बदल दिया । तनु दीदी पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था , वो भी उन दिनों गर्भवती थीं , उस पर इतना प्यार करने वाला पति उसी के भाइयों को इस हादसे का जिम्मेदार समझता था ।

उधर बुआ जी की फेमिली में मातम छाया था , उन्हें मुकद्दमे के सिलसिले में चंबा जाना पड़ता था । अश्वनी तो रातों को सोते सोते डर के मारे उठ जाता था अचानक रोने लग जाता था । महज 21साल का था वो और इतना बड़ा हादसा।  जिसने तीन खानदानों को उजाड़ दिया था । दस साल मुकद्दमा चला । तनु दीदी के भाई निर्दोष तो साबित हो गये मगर राजेंद्र जी ने निर्दोष तनु दीदी को कभी माफ़ नहीं किया । इतने जिंदादिल इंसान मुस्कुराना ही भूल गये और किसी को मुस्कुराने भी नहीं दिया । इस हादसे को 40 साल हो गये मगर आज़ तक भी तनु दीदी के परिवार के  किसी सदस्य को  उनके यहां आने की इजाजत नहीं है ।

तनु दी जब भी अपने मायके जाती हैं तो अकेली ही जाती हैं । इसी कारण तनु दी ने मुझे भी कभी अपने घर नहीं बुलाया । एक बार राजेंद्र जी कुछ दिन के लिये बाहर गये हुये थे । तब तो हमारे घर आईं थीं थोड़ी देर के लिये । मेरे गले लग कर बहुत रोईं। कहने लगीं , मैंने सारी जिंदगी एक सज़ा  की तरह काटी है, वो भी उस गुनाह की सज़ा जो मैंने किया ही नहीं ।

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