सजा – आरती झा”आद्या” 

खिलखिलाने और हवा में गुँजती हँसी सुनकर रात्रि के मध्य पहर में राघव की नींद खुल जाती है। 

हमेशा के लिए लंदन में बस चुका राघव आज पच्चीस साल के बाद अपनी पत्नी रोजी के साथ अपनी हवेली में विवाह की पच्चीसवीं सालगिरह का आयोजन करने उसी दिन गाँव आया था। 

बगल में गहरी नींद में सोई रोजी की ओर देखते हुए राघव फिर से आवाज सुनने की कोशिश करता है। लेकिन कहीं कोई आवाज नहीं। लगता है जेट लाॅक मुझपर हावी हो गया है सोचकर राघव सोने की कोशिश करने लगता है। जैसे ही राघव की आँख लगती है.. फिर से खिलखिलाना, भागना, दौड़ना सुन उसकी आँख खुल जाती है। 

क्या है ये.. झुंझला कर राघव उठ बैठता है। 

रोजी को जगाऊँ क्या.. सोच राघव हाथ बढ़ाता है। 

नहीं.. कितनी प्यारी सी नींद में सोई है.. सोच प्यार से उसके गाल थपथपाता है। 

रोजी के गाल छुते ही राघव को ऐसा लगता है जैसे कोई सामने आँखों में अंगार भरे उसे देख रहा हो.. राघव हड़बड़ा कर उधर देखता है लेकिन कोई नहीं होता सिर्फ अंधकारमय शून्य होता है। 

इसी उधेरबुन में सुबह चार बजे लगभग राघव की आँख लगती है। 

आँखों पर पड़ती खिड़की से छन कर आती सुबह की शर्मीली धूप से रोजी नींद से जग राघव को सोया देख खिड़की का पर्दा सरका कर कमरे से बाहर बरामदे पर आती हैं। 

उठ गई बहुरानी आप.. हवेली का केयर टेकर रामधन रोजी से पूछता है। 

हाँ काका… बहुत ही सुहानी सुबह है काका। राघव ने बताया था कि वो बचपन से ही आपको काका कहता रहा है। मैं भी काका बोलूँ तो आपको बुरा नहीं लगेगा ना.. रोजी पूछती है। 

बुरा क्यूँ लगेगा बहुरानी। आप भी काका बोला करें.. रामधन कहकर हवेली की साफ़ सफाई कराने लगता है। 

काका.. अगले सप्ताह हमारी शादी की सालगिरह है। मेरे बचपन के सभी दोस्तों को और गाँव के सभी लोगों को हमारी तरफ से न्योता भिजवा देना.. राघव खाना खाते हुए कहता है। 



सिर झुका कर खाना खाते हुए राघव को ऐसा लगा मानो रसोई की खिड़की के बाहर से कोई उसे आँखों ही आँखों में पीने की कोशिश कर रहा है। 

अस्फुटित स्वर में शिवानी बोल राघव सिर उठाता है लेकिन उसे कोई नजर नहीं आता है। इन पच्चीस सालों में जिसकी याद कभी राघव को नहीं आई.. आज उसका नाम जुबान पर आ गया। 

शिवानी राघव की प्रेमिका और रामधन काका की बेटी.. जिसने जहर खा कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी। 

साँवली सूरत की धनी..मृगनयनी सी आँखें.. गुलाब की पंखुरियों से अधर… शहर से पढ़ कर आया राघव कब उस पर रीझ गया पता ही नहीं चला। जीने मरने के वादों के साथ सबसे नजर बचाकर गाँव के मंदिर में राघव ने शिवानी की माँग भर अपनी पत्नी होने का दर्जा दिलाने का वचन दे दिया और वो नादान लड़की नादान मोहब्बत भी कर बैठी। 

राघव मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ और तुम लंदन जाने की बात कर रहे हो.. कैसे रहूँगी मैं.. समाज जीने नहीं देगा मुझे.. शिवानी राघव के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहती है। 

परेशान मत हो .. देखो पिताजी के मित्र के साथ लंदन जा कर तुम्हें भी वही बुला लूँगा.. आश्वासन देकर राघव लंदन उड़ जाता है। वहाँ दो से तीन महीने बीतते बीतते पिताजी के मित्र की बेटी रोजी से शादी कर अपनी गृहस्थी बसा लेता है। उसके इंतजार में बैठी शिवानी राघव द्वारा दिए धोखे का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाती है और बिना राघव का नाम उजागर किए जहर खा कर जान दे देती है। 

जब राघव को ये बात पता चलती है तो वो अपना नाम नहीं आने के कारण मन ही मन बहुत खुश होता है। 

आज अचानक उसे वही प्यासी नजर याद आ गई। 

काका.. शिवानी की मौत का बहुत अफसोस हुआ मुझे। क्यूँ किया उसने काका ऐसा.. राघव रामधन से पेट की बात निकालने के लिए पूछता है। 

एक गहरी साँस छोड़ और अर्थपूर्ण निगाहों से देखता हुआ रामधन वहाँ से उठ बाहर आ जाता है। 

काका ने इस तरह मुझे क्यूँ देखा। कहीं उन्हें पता तो नहीं कि इसके पीछे मैं हूँ और मेरे धोखे के कारण ही शिवानी ने मौत को गले लगा लिया। पता होता तो इतने सम्मान से पेश नहीं आते और ना हवेली की देखभाल करते। 



इसी तरह यह सप्ताह बीत गया। आज हवेली में बड़ी धूमधाम थी। राघव और रोजी को बधाई देने वालों की कतारें लगी थी। इसमें से अधिकांशतः को राघव नहीं जानता था। 

राघव.. अचानक उसके कान में एक स्त्री स्वर नाम लेता हुआ चला गया 

शिवानी.. बोल राघव के पलट कर देखने पर सब अपनी मस्ती में बातों में डूबे दिखे। 

क्या हो गया है मुझे.. क्यूँ बार बार ऐसा लगता है जैसे वो आसपास ही है। मेरे अलावा तो सब शांत ही नजर आते हैं। कल ही दिल्ली की टिकट बुक कराता हूँ। अब नहीं रहना मुझे यहाँ.. सोच कर राघव खुद को भरोसा देता है। 

आओ राघव.. हम केक काट लेते हैं। रोजी बेतकल्लुफ हो राघव का हाथ पकड़ मेज के पास ले जाती है। 

राघव.. तुम मुझे यूँ ना भूला पाओगे.. राघव रोजी का हाथ पकड़े जैसे ही केक काटने वाला होता है कि फिर से वही स्वर गुनगुनाती हुई गुजर जाती है। कौन.. कौन है.. चाकू छोड़ राघव अपना सिर पकड़ वही नीचे बैठ जाता है। 

राघव राघव क्या हुआ.. रोजी हतप्रभ सी उसे उठाने की कोशिश करने लगती है। 

वो वो शिवानी.. मुझे जीने नहीं देगी। मैंने उसे धोखा दिया था। उसे क्या रोजी, तुमसे सारी बात छुपा कर तुम्हें भी धोखा दिया है मैंने। जब से यहाँ आया हूँ.. वो मेरा पीछ कर रही है। मैंने उसे मार डाला था। मेरे कारण ही उसने जहर खाया था। मैंने उसे धोखा दिया था.. वो माँ बनने वाली थी। मैंने उसे झूठे प्रेमजाल में फँसाया था..राघव सिर पकड़े पकड़े ही बुदबुदाता है। 

राघव… 

वो बहारें वो चांदनी रातें

हमने की थी जो प्यार की बातें

उन नज़ारों की याद आएगी

जब खयालों में मुझको लाओगे

हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे

 

शिवानी शिवानी माफ़ कर दो मुझे.. बोलता हुआ राघव अपने कपड़े फाड़ता हवेली के बाहर भागता है और अब राघव पागलखाने की दीवारों में कैद 

तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे गाता भटकता रहता है। 

 

बिटिया सच ही कहते हैं लोग अपने किए की सजा यही भुगतनी पड़ती है। भगवान के घर देर है अंधेर नहीं…शिवानी की तस्वीर के सामने दीया जलाता रामधन बुदबुदा रहा था।

#धोखा

आरती झा”आद्या” 

(स्वरचित व मौलिक) 

दिल्ली 

सर्वाधिकार सुरक्षित©®

 

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