सफर – उषा भारद्वाज

वो मुस्कुराते हुए कार में बैठ गयीं, कार चली गई ।  शिखा दूर जाती कार को एकटक देखते रही। उसकी आंखों के सामने अतीत की यादें चलचित्र बनकर घूमने लगी।

वो धीरे-धीरे कदम बढ़ाने लगी और अपने घर आ गई। सीधे अपने कमरे में जाकर  लेट गयी। आंखों के सामने दीदी का चेहरा और अतीत की यादें चलचित्र बनकर घूमने लगीं ।

वो कई साल पहले पहुंच गई। उस समय वह एक निजी स्कूल में पढ़ाने के लिए गयी थी । वहां प्रधानाचार्या के पद पर  अनामिका सिंह आसीन थीं।  उनका व्यक्तित्व ऐसा कि बस देखते ही रह जाओ । उनके बिना बोले भी बोलती उनकी आंखें । जो एक बार देख ले फिर दोबारा उनकी तरफ बिना नजर उठाए वहां से हट नहीं सकता था। ऐसा आकर्षण अनामिका दीदी का। सभी अध्यापक अध्यापिका उनको दीदी बोलते थे । अनामिका विवाहित थी उनकी दो साल की बेटी भी थी। जिसे कभी कभी वो अपने साथ लेकर आती थीं। अनामिका दीदी सादगी की मूरत थीं। प्रधानाचार्या के पद पर होते हुए भी ऑर्डर देने में यकीन नहीं करती थीं।सबके कार्यों का निरिक्षण करती, किसी के अच्छे कार्य की प्रशंसा करती थी तो किसी की गलती पर उसे समझाती भी थीं।

उनकी ससुराल में पर्दा प्रथा आज भी कायम थी। तभी तो स्कूल से कुछ दूर जाकर वो सर पर पल्लू घूंघट की तरह कर लेती और वापसी में स्कूल से थोड़ी दूर आगे जाकर फिर वैसे ही सर पर पल्लू घूंघटवाला कर लेती थी। ऐसा कई बार अध्यापक अध्यापिकाओं  ने देखा ।   

  एक बार दीदी कई दिनों के लिए अनुपस्थित हो गई। पहले वह कभी एक दिन के लिए भी अनुपस्थित नहीं हुई थीं।  स्कूल के प्रबंधक सर ने बताया कि जब तक प्रधानाचार्या अनुपस्थित हैं उनका कार्यभार वहीं की  वरिष्ठ शिक्षिका महोदया देखेंगी। 2 हफ्ते बाद दीदी वापस स्कूल आयी । 

सबके मन में जानने की उत्सुकता थी कि दीदी क्यों अनुपस्थित थीं, लेकिन कोई भी उनसे पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था ।  छुट्टी में जब उनको घर जाना था तब एक बड़ा आश्चर्य उस दिन दिखा। उन्होंने घूंघट नहीं किया था और ऑटो बुलाकर वह जा रही थी। इसके पहले वह कार से आती थी। अब सबके मन में एक प्रश्न चिन्ह उभर आया कि ऐसा क्यों? क्या हुआ ? तमाम प्रश्न। और उन सभी प्रश्नों के उत्तर सिर्फ दीदी के पास थे।




कुछ दिन बीते एक नई अध्यापिका स्कूल में आईं। दुर्भाग्यवश वो दीदी के ससुराल के पास रहती थीं। दुर्भाग्यवश इसलिए कहना पड़ा कि नारी स्वभाव शीघ्र कोई बात अपने मन में संभाल कर नहीं रख पाता उस पर ऐसा ज्वलंत विषय  जिसका वर्णन सुनने के लिए सब आतुर हों। और एक विशेषता ये भी है कि बिना किसी प्रश्न का उत्तर जाने चैन से नहीं बैठ सकती । सो बस अनामिका दीदी की अनुपस्थित का सारा राज उन्होने दो दिन में ही अखबार की खबर की तरह सबको बांट दिया। उनके अनुसार दीदी के ससुराल वाले दीदी पर बहुत जुल्म करते थे। उनके पति बहुत लापरवाह हैं वह अक्सर बिना बताए कई कई दिनों के लिए घर से चले जाते थे । कब तक दीदी सहती । एक दिन तो अति हो गई जब उनके पति के साथ घर के लोगों ने भी दीदी पर हाथ उठा दिया। उसी दिन दीदी ने अपनी बेटी को लेकर घर छोड़ दिया। और मायके चली गयीं। मायके में मां और भाई भाभी थे। दीदी उस घर में तो रहती थीं पर किसी पर बोझ बन कर नहीं।

  दीदी ने पूरी तरह सादगी ओढ़ ली थी उनका लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटी अंकिता को अच्छी शिक्षा देना और प्रतिष्ठित नौकरी के उच्च पद पर आसीन कराना था।

नीता दीदी से काफी घुल-मिल गयी थी। कभी-कभी दीदी उसको अपने बारे में बताती भी थीं। स्कूल में कुछ लोग ऐसे भी थे जो दीदी  का निरीक्षण बहुत बारीकी से करते थे फिर आपस में बातचीत करने का एक मुद्दा बना देते थे।

  एक दिन दीदी गुलाबी रंग की साड़ी बांध कर आई थीं। बहुत सुंदर दिख रही थीं।  उस दिन सभी टीचर्स के बीच में एक सुगबुगाहट हो रही थी सबकी आंखें कुछ खोज रही थीं। कुछ नहीं तो यहां तक अंदाजा लगा लिया कि लगता है दीदी दूसरी शादी कर रही हैं। इस बात ने नीता को सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह समाज किसी को किसी भी तरह जीने नहीं देता । अगर कोई दुखी है, तो क्यों दुखी है? कोई तो वजह होगी और अगर वजह पता चल गई तो उसमे  उस व्यक्ति की भी गलती होगी। अगर कोई खुश है तो अचानक खुश क्यों हो ? क्या मिल गया?  या क्या मिलने वाला है ? कुछ ऐसा कुछ वैसा अपनी सोच के अनुसार कयास लगाने लगता है ।




समय बीता अंकिता बड़ी हो गयी थी।अब वह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी।दीदी की तपस्या और अंकिता की मेहनत रंग लाई  उसका पीसीएस में चुनाव हो गया। उस दिन दीदी बहुत खुश थी । उस दिन दीदी ने कहा- नीता जिंदगी का सफर  अब पूरा होने वाला है।”

नीता दीदी की बात सुनकर उनको ध्यान से देखने लगी फिर बोली-  अभी नही दीदी , अभी अंकिता की शादी करनी है।अनामिका ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा- हां , लेकिन अंकिता के लिए अच्छा लड़का कैसे मिलेगा?

दीदी की चिंता जायज थी। क्योकि वो स्वयं भुक्तभोगी थीं।

लेकिन ईश्वर ने उनकी चिंता दूर कर दी ।दूर के रिश्तेदार  ने स्वयं अंकिता का हाथ मांग लिया। जिस दिन अंकिता  ससुराल जा रही थी उस समय दीदी की आँखे अविरल आंसू बहा रहीं थीं। अंकिता मां से लिपट कर फफक कर रो पड़ी।

अंकिता के जाने के बाद दीदी एकदम अकेली हो गयी थीं। कभी कभी बीमार भी हो जाती थीं।

एक दिन बोली- “नीता अब मेरे जीवन के सफर का स्टेशन पास आने वाला है।”

नीता ने कहा- नहीं , अभी तो आपको नानी बनना है। अभी स्टेशन की बात मत करिए। “

  लेकिन इधर कुछ दिनो से दीदी बीमार हो गयीं तो ठीक नही हो पा रहीं थीं । अंकिता ने जब सुना तो दीदी के बहुत मना करने पर भी जबरदस्ती अपने साथ ले गयी। चलते समय अनामिका दीदी ने कहा- “नीता सफर बाकी रहा तो फिर मिलेंगे।”

बेटे की आवाज से नीता अतीत से बाहर आयी। नीता रोज एकबार फोन करके दीदी का हाल ले लेती थी।

आज उसके फोन करने से पहले दीदी का फोन आ गया।नीता ने फोन उठाया और जो सुना तो उसकी चीख के साथ फोन उसके हाथ से छूट गया। क्या हुआ मम्मी – नीता के बेटे ने पूछा। दीदी चली गईं । उनका सफर पूरा हो गया। इतना कहते कहते नीता फूट-फूटकर रोने लगी।

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