सच्ची मोहब्बत – गरिमा जैन 

प्रिय ,

मैं नहीं जानता कि मैं यह पत्र तुम्हें क्यों लिख रहा हूं। शायद पहले पत्रों की तरह तुम इसे भी फाड़ कर फेंक दो। डरती हो ना कहीं तुम्हारे पति को ना मिल जाए। कहीं तुम्हारी बसी बसाई गृहस्ती ना उजड़ जाए । सच बताऊं तुम डरपोक निकली। सिर्फ अपने बारे में सोचा तुमने, पर तुम्हारे साथ बिताए एक-एक पल को मैं मरते दम तक संजो कर रखूंगा। पता है जान, मैं आज ऊपर वाले से क्या मांगता हूं ,यही कि मेरा या पत्र तेरे पति को मिल जाए और तुम्हारी बसी बसाई गृहस्ती बिखर जाए ,जैसे मैं बिखर चुका हूं ।सुना था मोहब्बत में कोई शर्त नहीं होती ,वह तो बस देना जानती है लेना नहीं, पर आज जब सब कुछ खत्म हो चुका है तो हिसाब किताब भी साफ साफ हो जाना चाहिए। मैंने तुम पर बहुत खर्च किया, अपने जीवन के अनमोल पल तुम पर वार दिए जिसमें मैं कुछ बन सकता था कुछ कर सकता था। 5 साल ,5 साल का समय कोई कम नहीं होता। मेरा पूरा भविष्य बर्बाद हो चुका है। मैं पागलपन की कगार पर खड़ा हूं। काश तुम भी बर्बाद हो जाओ ,काश लोग तुम्हें भी पागल बोले काश तुम एक पल सो ना सको। काश ,काश तुम आज भी मुझे मिल जाओ……

                                          तुम्हारा

                                         सिर्फ तुम्हारा

जैसे-जैसे आकाश ने यह पत्र पढ़ा उसके कान गरम होते गए और आंखों से जैसे लपटें उठने लगी । गरम आंसू उसके गालों पर लुढ़क गए ।अवनी ,अवनी मुझे धोखा दे रही थी वह भी पिछले 5 सालों से और मैं जान तक नहीं पाया! कितनी चालाक निकली वह  ।उसके मासूम चेहरे के पीछे इतनी साजिश, इतना झूठ, इतना फरेब ।



तभी  हाथ में चाय और नाश्ता लिए मुस्कुराते हुए अवनी कमरे में आई ।आकाश के हाथों में अभी भी वह पत्र सूखे पत्ते की तरह फड़फड़ा रहा था। अवनी के हाथ ट्रे रखते हुए कांपने लगे। उसने आकाश के हाथों से लगभग पत्र छीनते हुए अपने मुट्ठी में समेट लिया ।यह …. आपको कहां से मिल गया ,यह तो…….

आकाश की आवाज रूंध चुकी थी। हां हां बोलो यह तो…. तुमने कितनी चालाकी से अपनी मां की पुरानी डायरी में इसे छुपा कर रखा था ।आज तुम्हारी मां जिंदा होती तो तुम्हारा असली रूप वह भी देख पाती ।अवनी का शरीर ठंडा पड़ता जा रहा था। जैसे कहना तो बहुत कुछ चाहती थी पर जुबान साथ नहीं दे रही थी।

आकाश उठता है और तेजी से घर के बाहर जाने लगता है। अवनी अपनी सारी ताकत बटोर के उसके पीछे दौड़ती है… रुक जाइए …आपको अपने बेटे की कसम ! रुद्र का नाम सुनकर आकाश रुक जाता है। वह दरवाजा बंद करता है और गाड़ी की चाभी उठाता है, फिर वह अपने मां के कमरे में जाता है और कहता है “मां मैं और अवनी जरा लॉन्ग ड्राइव पर जा रहे हैं रुद्र का ध्यान रखिएगा” फिर वह अवनी का हाथ पकड़ता है और जाकर गाड़ी में बैठ जाता है ।

“मुझे सीधे सीधे अपने आशिक के पास ले चल आज आर पार होकर रहेगा “अवनी अतीत के पन्नों में खो जाती है। आज से ठीक 20 साल पहले जब वह 7 साल की थी तब उसके घर में ऐसी ही चीख-पुकार मची थी। दादा-दादी सब ने उसकी मां को बहुत कोसा था ।तब अवनी कुछ समझ नहीं पाई थी, क्या हो रहा था ?उसके पापा बहुत गुस्से में घर से बाहर ऐसे निकले कि वापस लौट कर आए ही नहीं ।तभी आकाश गाड़ी में बहुत तेज ब्रेक लगाता है ।अवनी देखती है सामने एक ट्रक था, वे लोग बाल-बाल बचे थे। अवनी आकाश से कहती है “ठीक है वह उसे सब कुछ बताने को तैयार है “

अवनी  रास्ता बताती जाती और आकाश बेतरतीब गाड़ी चलाता जाता ।आखिरकार गाड़ी एक गिरजाघर के पास आकर रुक गई ।गाड़ी से उतर अवनी  पीछे बने एक कब्रिस्तान में चली गई ।आकाश पीछे-पीछे चलने लगा। वह जाकर एक कब्र के पास ऐसे बैठ गई जैसे उसकी सारी ऊर्जा समाप्त हो गई हो ।आकाश सोचता है ” तो इसका आशिक मर चुका है । तो क्या हुआ !धोखा तो दिया ही था अवनी ने! वह उसे माफ नहीं करेगा “



कब्र पर एक पत्थर लगा था जिस पर मरने वाले का नाम लिखा था “जॉन वॉल्टर” 1975 – 2002 ।आकाश सोच में पड़ जाता है ,यह व्यक्ति तो 20 साल पहले ही …..तभी अवनी कहती है” पूछ लो जो पूछना है “

“यह क्या पागलपन है अवनी!”

“पागलपन नहीं आकाश, यह एक श्राप है जो वॉल्टर सर ने हमारे हंसते खेलते परिवार को दिया था । वॉल्टर सर घर पर भैया को इंग्लिश पढ़ाने आते थे ।तब मैं बहुत छोटी थी ।बस एक धुंधली सी झलक याद है ।गोरे ,चिट्टे, मधुर मुस्कान और उनकी एक चित परिचित सी सुगंध ।मुझे अभी तक याद है। जब सर आने वाले होते मां अच्छे से तैयार होती और बहुत खुश दिखती थी ।मेरे पापा बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे। हमेशा उनका आक्रोश भरा चेहरा ही याद आता है।उनके विपरीत वॉल्टर सर हमेशा हंसी मजाक करते।

फिर एक दिन पापा वही चिट्ठी पढ़ रहे थे जिसे आपने पढ़ा! और उसे पढ़कर वह वैसे ही आग बबूला हो गए जैसे आप हो गए थे। सुना था उस दिन पापा ने गुस्से में पहले वॉल्टर सर को मारा फिर अपनी जान ले ली थी। मम्मी बिल्कुल पागल जैसी हो गई थी। सच वॉल्टर सर ने जो कुछ भी लिखा था उस चिट्ठी में सब सच ही तो हो गया !और आज उस चिट्ठी का श्राप मुझे लग गया  ।अब मेरी भी गृहस्ती समाप्त हो जाएगी। ना जाने क्यों मैंने वह चिट्ठी इतना संभालकर इतने वर्षों तक रखी रही, शायद मां ने जो गलती की थी वह मैं ना कर सकूं…. कहकर अवनी लगभग मूर्छित हो जाती है ।

आकाश उसे संभालता है ,उसे अपने व्यवहार पर बहुत ग्लानि हो रही थी। जो गलती अवनी ने की ही नहीं थी, वह उसे उसका दोषी समझ रहा था। परंतु अवनी  अगर सच में किसी दूसरे पुरुष से प्रेम कर बैठती तो आकाश क्या करता ?क्या वह भी वही गलती करता जो अवनी के पिता ने की थी? क्या वह अवनी को दिल से माफ कर पाता? क्या सच्चे प्रेमी की तरह वह उसे अपने प्रेमी के साथ जीवन जीने की अनुमति दे पता ?  यही सोचते आकाश पूरी शाम अवनी के साथ वही कब्रिस्तान में बैठा रहता है । उसे ऐसा लगता है जैसे वहां मौजूद सारी कब्रे उससे यही सवाल कर रही है कि वह क्या करता? सच में क्या वह अवनी से सच्ची मोहब्बत करता था?

इति

गरिमा जैन 

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