“ लो हो गया बंटाधार… अरे इस मंदबुद्धि को समझाओ… कभी तो मेरी सुन लिया करें…जो सुन ले तो इसका भविष्य बन जाए… पर ना… बाप की सुन लेगा तो ये छोटा नहीं हो जाएगा !!” पिता महेश के ताने सुनता रितेश अपनी हार का रोना लेकर क्या आया पिता के तानों से ज़्यादा आहत हुआ
“ पिता जी मैं कोशिश तो करता हूँ ना अब कोई मुझसे कुछ पूछता है तो मैं मना कैसे कर सकता हूँ…आखिर वो मेरे दोस्त ही तो है ना ।” डबडबाईं आँखों से रितेश ने कहा
“ देख बेटा दोस्ती अपनी जगह है पर परीक्षा अपनी जगह… अच्छे और सच्चे दोस्त बाद में भी साथ ही रहेंगे पर तू इस तरह बार बार फेल होता रहेगा ना तो तेरे दोस्त भी तेरा साथ छोड़ देवेगें।” माँ ने समझाते हुए चुप कराने का प्रयास किया
रितेश शर्ट की आस्तीन में अपने आँसू पोंछते हुए बाहर निकलने लगा तो महेश ग़ुस्से में दहाड़े,” तू फिर अपने उन निकम्मे दोस्तों के पास जा रहा है…अरे तुम्हें कब अक़्ल आएगी वो बस तेरा इस्तेमाल करते … कोई तेरे सच्चे दोस्त ना है।”
रितेश पल भर को रूका और बाहर जाकर जल्दी ही अंदर आ गया ।
कुछ समय बाद जब पुनः परीक्षा हुई तो रितेश बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुआ…और उसके सारे दोस्त उससे चिढ़ गए।
रितेश ने भी उनसे खुद को दूर रखना मुनासिब समझा… जो दोस्त अपने दोस्त का भला ना सोच सके वो दोस्त कैसे ।
रितेश सोच रहा था कल तक जब मैं परीक्षा में उनकी मदद करता था तो वो लोग पकड़े जाने पर कह देते थे कि मैं पूछ रहा था और वो पास हो जाते …मुझे फेल कर दिया जाता …आज जब मैं गिन गिन कर पैर रखा किसी को कुछ नहीं बताया तो मैं पास हो गया और वो फेल होकर मुझसे बात तक करना नहीं चाहते हैं…
ये एक सबक है मेरे लिए ऐसे कुछेक दोस्त ज़िन्दगी में ना भी हो तो चलेगा पर अपनी सफलता के लिए सदैव गिन गिन कर ही पैर रखने चाहिए ताकि आप सफल हो सके।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#मुहावरा
#गिनगिनकरपैररखना