Thursday, June 8, 2023
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सबक – नीलम सौरभ

उस दिन शाम को ऑफिस से तक़रीबन एक घण्टे देर से छूट पाये थे प्रकाश जी। महीने का अन्तिम दिन था। सभी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते सहित ओवर टाइम आदि का पूरा हिसाब-किताब वे सहायक लिपिक श्रद्धा के साथ बना रहे थे कि उसने उन्हें याद दिलाया, आज तो मुझे आधे घण्टे पहले ही छुट्टी चाहिए थी, छोटे बच्चे को थोड़ा डॉक्टर के पास ले जाना है। प्रकाश जी ने श्रद्धा की परेशानी समझते हुए उसे घर निकलने की अनुमति दे दी और दोबारा से अपने कार्य में रत हो गये थे।

पूरा काम निबटा कर जब बाहर आये, तब तक सारे सहकर्मी जा चुके थे, केवल प्यून मोहनलाल ही बचा था, जिसे सबके जाने के बाद कार्यालय अच्छे से देखभाल कर बन्द करके निकलना था।

प्रकाश जी ने मुस्कुरा कर मोहनलाल से कहा, “ले भाई, फाइनली तेरी भी छुट्टी का समय हो ही गया!…चल निकलता हूँ मैं, अपना ध्यान रखना!”

वे अपने स्कूटर तक पहुँचे, सामने टँगा हेलमेट उठाकर सिर पर और अपना बैग उस जगह रख कर स्कूटर स्टार्ट करने लगे। तब तक मोहनलाल सबकुछ लॉक करके उन्हें हाथ जोड़ता हुआ निकल गया।

पता नहीं क्या हो गया था अचानक, लाख कोशिशों के बाद भी स्कूटर स्टार्ट ही नहीं हुआ। वे परेशान हो उठे। असहाय-से इधर-उधर देखने लगे कि कोई तो दिख जाये जो इसे चालू कर दे, अन्यथा घर कैसे पहुँचेंगे आज। मगर सभी लोग जा चुके थे अब तक, कोई परिन्दा भी नहीं था आसपास।

आख़िरकार विवश होकर वे पैदल ही स्कूटर घसीटते, इधर-उधर नज़र दौड़ाते हुए सड़क के किनारे-किनारे चलने लगे कि कोई मैकेनिक की शॉप दिख जाये तो वे सुधरवा लें। लेकिन कोई भी मैकेनिक नहीं मिला और ऐसे ही स्कूटर खींचते लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी उन्होंने तय कर ली।

अब थोड़ा सूना सा इलाका आ गया था। साँझ का धुँधलका घिरने वाला है, सोच कर उनके कदमों की गति तेज हो गयी थी। वे एक दोराहे पर पहुँचे थे कि अचानक उनको कहीं से किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। अपना रास्ता छोड़ वे आवाज की दिशा में बढ़े तो उन्होंने पाया कि यह दो किशोरियों की चीख थी, जिनकी पीठ पर बस्ते लदे थे, शायद ट्यूशन से लौट रही थीं लड़कियाँ। वे भयभीत होकर चिल्ला रही थीं क्योंकि एक ही बाइक में सवार तीन मनचलों ने उनका रास्ता रोक रखा था। दोनों बेचारी बच्चियाँ रास्ता बदल कर निकल बचने की कोशिश में जिधर बढ़तीं, बाइक चलाने वाला युवक बाइक उनके सामने ही कर देता।



प्रकाश जी तेजी से वहाँ पहुँचे। स्कूटर थामे हुए ही कड़कती आवाज़ में लड़कों को फटकारते हुए कहा,

“ऐ! छोड़ो रास्ता, जाने दो बच्चियों को!”

“ओ बुढ़ऊ अपना काम करो!”

बाइक चालक खतरनाक ढंग से गुर्राया।

“मैं अपना काम ही कर रहा हूँ! आप लोग ठीक नहीं कर रहे बेटे…अँधेरा घिर आयेगा थोड़ी देर में, जाने दो बेटियों को!”

पीछे बैठे लड़के ने उनकी बात बीच में काटकर खिल्ली सी उड़ाते कहा,

“काहे बेकार में आ बैल मुझे मार कर रहे हो चच्चा!”

“बुढ़ापे में कोई हड्डी-वड्डी चटक गयी तो जुड़ेगी भी नहीं!”

तीनों में से बीच में बैठा लड़का अपनी शर्ट की आस्तीन ऊपर चढ़ाते हुए बदतमीज़ी से बोला।

“लगता है, चच्चा ने कोई सी एनर्जी ड्रिंक पी रखी है, बड़ा जोश में लगता है!”

किशोरियों से हटकर उन तीनों मनचलों का ध्यान अब उन पर आ गया था।

एकाएक प्रकाश जी ने स्कूटर स्टैंड पर खड़ा किया और फुर्ती से लपक कर सबसे पीछे वाले मरियल-से लड़के को गर्दन से दबोच कर बाइक पर से ज़मीन पर घसीट लिया, फिर ऊँचा हवा में उठा दिया।

“माँ का दूध पिया है रे मैंने…और असली घी भी पूरी जिंदगी खाया है! अपनी तरह पिज़्ज़ा-बर्गर, मोमोज़ समझने की ग़लती न करना।”



कुछ सेकेण्ड के भीतर ही वह युवक अपनी गर्दन उनकी पकड़ से छुड़ाने के लिए बुरी तरह से बिलबिला उठा।

तभी दोनों किशोरियाँ भी जैसे नींद से जाग उठीं। तत्काल ही उन्होंने नयी बनी सड़क के किनारे से छोटी-बड़ी गिट्टियाँ उठा कर बाइक में बैठे दोनों लड़कों पर बरसाने शुरू कर दिये। इस अप्रत्याशित हमले से बाइक पर बचे दोनों लड़के हड़बड़ा कर अपना बचाव करने का असफल प्रयास करने लगे, मगर शीघ्र ही उन्हें अंदाज़ा लग गया कि यहाँ अगर एक मिनट भी और रुके तो मिट्टी पलीद होने में कसर नहीं रहेगी। दोनों ने तीसरे लड़के को भगवान भरोसे छोड़ कर भागना ही मुनासिब समझा। बिना उसकी ओर देखे मिनटों में दोनों युवक बाइक सहित नौ दो ग्यारह हो गये।

“गलती हो गयी अंकल जी, अब से कभी नहीं होगी, प्लीज़ जाने दीजिए मुझे!” तीसरा लड़का अब ख़ुद को अकेला पा कर हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा उठा।

“तेरे यार-दिलदार तो तुझे अकेला छोड़ कर भाग गये बेटा, हम अकेले कैसे जाने दें? क्यों बेटियों, क्या सज़ा होनी चाहिए इस भतीजे की?”

“यही कि आपका स्कूटर अब ये घसीटेंगे रिपेयर शॉप तक…. न मिली तो घर तक!” एक किशोरी हाथों में थमी गिट्टियाँ लहराती मुस्कुरा कर बोली।

“और रास्ते भर भइयाजी रटते भी जायेंगे, ‘ये दोनों मेरी बहनें हैं’, दोनों प्यारी बहनें हैं’, मैं इनका बड़ा भइया हूँ!” दूसरी भी जोरों से खिलखिला उठी थी अब।

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नीलम सौरभ

रायपुर, छत्तीसगढ़

(स्वरचित, मौलिक)

 

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