सासू मां मेरी थाली पर ही नजर क्यों  – किरन विश्वकर्मा

रीतिका सारा काम करने के बाद खाने के लिए बैठी तो जैसे ही रोटी के टुकड़े में सब्जी लगाकर खाया तो उसे सब्जी अच्छी नही लगी वैसे भी परवल की सब्जी उसे पसंद नही थी मायके में होती तो किसी और चीज से रोटी खा लेती पर यह तो ससुराल था जहाँ पर अचार, देशी घी, दूध और दही सब सासू माँ के कब्जे में था और यह सब उसके लिए तो बिल्कुल भी नही था और तब भी उसे सुनाया जाता कि उसे तो यह सब मिल रहा है आस-पड़ोस की बहुओं को तो भरपेट भोजन भी नही मिलता है वह संस्कार वश कुछ बोल नही पाती थी….. तभी याद आया कि कल ही तो मुनीम चाचा अपने बाग से कच्चे आम तोड़कर दे गए थे और यहाँ ससुराल में मिक्सी तो थी नही और उसे कच्चे आम की चटनी बहुत पसंद थी तो उसने धीरे-धीरे बड़ी ही मुश्किल से चटनी सिल बट्टे पर पीसी थी बाद में उसके हाथों में मिर्च पीसने के कारणखूब जलन भी हुई थी जैसे ही चटनी पीसी थी सबने स्वाद ले ले कर खाया था तभी याद करते हुए ताखे की तरफ बढ़ चली और वह दीवार में बने ताखे से चटनी की कटोरी निकाल कर ले आई और खाना खाने लगी तभी सासू माँ आई और उसकी थाली की तरफ देखने लगी कि वह क्या क्या खा रही है……खाना खाकर वह बर्तन धोकर थोड़ा आराम करने चली गयी तभी कॉलेज से लौट देवर जी ने खाना माँगा तो सासू माँ की आवाज आई कि तेरी भाभी बहुत चटोरी है सब चटनी खा गयी….

यह शब्द सुनते ही उसे बहुत दुःख हुआ कि क्या ससुराल में बहू को अपने मन से कुछ भी खाने का अधिकार नही रहता….. आखिर क्यों ऐसा व्यवहार बहू के साथ किया जाता है…. उसके आंसू निकलकर उसके हाथों पर गिरने लगे अपने आँचल से उसने आंसू पोंछ लिए क्योंकि यहाँ पर तो कोई अपना था ही नही और जो अपना था वह तो शहर में पैसा कमाने के लिए नौकरी कर रहा था। बुआ जी मुझे एक रोटी में घी लगाकर दे दो ना मम्मी तो बर्तन धो रही हैं….. नंद ने रोटी में ऐसे ही नमक लगाकर पकड़ा दिया तो बेटी रीतिका के पास आई और बोली…. मम्मी देखो न बुआ जी ने रोटी में घी नही लगाया मुझे यह सूखी रोटी खाने में बिल्कुल भी अच्छी नही लग रही है।

दीदी जरा सा ही तो घी लगता बच्चे की रोटी में…. रीतिका नंद से बोली। घर में घी नही है खत्म हो गया है…. यह कहते हुए नंद रानी बाहर चली गयी। तभी शाम को नितिन (रीतिका के पति) जो शहर में नौकरी करते थे और वहीं रहते थे पंद्रह बीस दिन में ही गाँव आते थे और उनके साथ बड़े नंदोई जी आये….रीतिका ने खाना बनाया और जैसे ही रोटी सेंकना शुरू किया कि नंद एक कटोरी में घी लेकर आ गयी और रोटी में लगाने के लिए….. यह देखकर उसकी आँखों में आंसू आ गए। रात में उसने नितिन को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि… अब मैं यहाँ बिल्कुल भी नही रहूँगी और फिर सारी बातें बताई। दूसरे दिन नंदोई जी के जाने के बाद रीतिका को अपने कपड़े अटैची में रखते हुए देखकर सासू माँ बोली…. तुम कहाँ जा रही हो… तो रीतिका ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि मैं अब यह भेदभाव और नही सहन कर सकती हूँ जहाँ पर हर काम का अधिकार बहू को मिलता है पर खाने का अधिकार नही…. यहाँ तक कि बहू बासी चटनी भी नही खा सकती माँ जी मैं खूब समझती हूँ आपकी चालाकियाँ जब तक मैं घर के काम करती हूँ



तब तक तो आप देखने भी नही आती और जैसे ही खाना खाने बैठती हूँ तो आप हर चीज को अपने कब्जे में रखने के बाद भी मेरी थाली में क्या है यह देखने जरूर आती हैं, मै अपने लिए तो फिर भी सह लूँ पर अपनी बेटी के साथ तो भेदभाव बिल्कुल भी नही…..नितिन के साथ जा रही हूँ। वह तो इतना कमाता नही है फिर तुम दोनों का भी खर्चा!!!……..पता भी है शहर में रहने के लिए जाओगी तो नमक रोटी ही खा पाओगी….. सासू माँ गुस्से से बोली। हाँ मुझे मंजूर है अगर नमक रोटी खाना पड़ा तो सब लोग एक साथ खायेंगे कम से कम यह भेदभाव तो नही देखना पड़ेगा और आप शायद भूल रही है मैंने ग्रेजुयेशन किया हुआ है और शादी से पहले मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी फिर से बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दूँगी पर अब मै इस घर में अब बिल्कुल भी नही रहूँगी…..अपने पैरों पर खड़ी होकर आत्म निर्भर बन स्वाभिमान से रहूँगी… यह कहते हुए वह अटैची के साथ आंगन में खड़ी हो गयी। बेटा तू ही समझा यह तो अपने मनमानी कर रही है

और तू चुपचाप खड़ा है तू ही इसे कुछ समझा….. नही माँ अब और नही मैंने आपको बहुत समझाया कि ऐसा व्यवहार रीतिका के साथ मत करो पर आप नही मानी….इन चार सालों में आपने कितना बुरा व्यवहार किया पर मैंने कभी विरोध नही किया पर आज जो मेरी बेटी के साथ हुआ वह मैं बिल्कुल भी नही बर्दाश्त कर सकता….. अब हम लोग इस घर से जा रहे हैं…..अब आपको खाने में भेदभाव और बहू की थाली में नजर नही रखनी पड़ेगी क्योंकि अब यह यहाँ नही रहेगी…….यह कहते हुए नितिन अपनी पत्नी और बेटी को लेकर शहर की ओर चल पड़ा। दोस्तों ऐसा बहुत से घरों में देखा गया है और मैं खुद भुक्त भोगी हूँ…. कहीं कही संपन्न परिवार होते हुए भी बहू को हर चीज के लिए तरसाया जाता है…. भेदभाव किया जाता है उसकी कामों की गिनती नही होती पर उसकी थाली पर नजर जरूर रखी जाती है। समय तो बीत जाता है पर कड़वी यादें हमेशा जब भी याद आती है तो दिल दुःख से भर जाता है और आँखों में आंसू आ ही जाते हैं…. कैसी लगी मेरी कहानी

आपके विचारों की प्रतिक्षा में

किरन विश्वकर्मा

#स्वाभिमान

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