सांडों की लड़ाई – नरेश वर्मा 

देश में अरबपतियों की संख्या का ग्राफ़ तेज़ी से बढ़ रहा है ।क्या इस तथ्य से मैं खुश हो जाऊँ ।यह तो ऐसा होगा जैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना।अरबपति करोड़पति की तो बात ही क्या, मैं तो सही मायने में लखपतियों की गिनती में भी नहीं आता।मेरे स्वयं का ग्राफ़ बढ़ने के नाम पर तो मेरी उम्र ही है, जो बिना किसी प्रयास के बढ़ती जा रही है ।एक कहावत है कि शादी नहीं हुई तो क्या,बरातों में तो शामिल हुआ हूँ ।रईस नहीं हुआ तो क्या पैसे वालों के कारनामों से रूबरू तो हुआ ही हूँ ।

 जब मैं इंटर (१९५९) की पढ़ाई कर रहा था तो न्यूज़ पेपर के मैट्रीमोनियल कालमों में वर पक्ष की फ़ोर फ़िगर आय (एक के आगे तीन शून्य) को पढ़ कर चौंक जाता था।और आज एक के आगे लगे अनेक शून्यों को देखकर मुझे कितना चौंकना होगा , आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं ।किंतु आज मैं इन नव धनाढ्यों की संपत्ति के आगे लगे शून्यों से नहीं , उनकी दिखावे की हरकतों से अवश्य चौंकता हूँ ।बैसे बात केवल चौंकने भर की नहीं है बल्कि इनके कारनामों की तपस से कितने गरीब झुलस रहे हैं, बात उसकी करूँगा ।

  शहर का एक बहुत ही नामी गिरामी स्कूल है।नाम के आगे इंटरनेशनल का टैग लगा है ।सैकड़ों बीघे में स्कूल का कैंपस है।भव्य इमारत वाले इस स्कूल में करोड़पतियों के जाये ही प्रवेश पा सकते हैं ।ऐसा नहीं है कि स्कूल दाख़िले के लिये कोई बहुत कठिन प्रतियोगिता है ।भइया कठिन है ,इसकी भारी भरकम फ़ीस चुकाना।आम आदमी का छ: महीने का राशन जितने में आता है उससे ज़्यादा इसकी एक महीने की फ़ीस है।इसी स्कूल में मेरा एक दूर का रिश्तेदार सिक्योरिटी गार्ड है।दो सांडों की लड़ाई में बेचारे इस ग़रीब सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी चली गई ।

 उस दिन वह घर आया था तो अपनी व्यथा कथा सुनाने लगा।कहने लगा कि अंकल जी आप तो लेखक हैं ,आपकी अच्छी पहचान होगी।स्कूल के प्रिंसिपल से आप मेरे बारे में बात करके देखिए ।उसकी बात सुन कर मैं हँसा ,मैंने कहा-“ भइया मैं तो हिंदी का लेखक हूँ और तुम जिस स्कूल की बात कर रहे हो वहाँ तो अंग्रेज़ी ही ओढ़ी और अंग्रेज़ी ही बिछाई जाती है । हिन्दी वालों को वहाँ कौन भाव देगा ,फिर भी विस्तार से घटना बतलाओगे तो सोचूँगा कि क्या किया जा सकता है ।

 घटना सिक्योरिटी गार्ड के शब्दों में—



   उस दिन स्कूल प्रेयर के पश्चात किसी विषय पर एसेंबली थी ।एसेंबली के मध्य ही कक्षा नौ के दो छात्र वहाँ से खिसक लिए और जाकर फ़र्स्ट फ़्लोर के  क्लास रूमों के साथ लगे बरामदे में बैठ गए ।उनमें से एक का नाम सुमित चड्ढा था।फूले गालों वाले ,गाल ही क्या नीचे से उपर तक मोटी चर्बी की परत थी सुमित चड्ढा की , जैसी अमूमन खाते पीते रईस घरों के बच्चों की होती है।सुमित ने अपने स्कूल बैग के अंदर लगी एक ख़ुफ़िया जेब को खोला और छुपाया हुआ मोबाइल बाहर निकाला ।नीचे स्कूल एसेंबली चल रही थी और ऊपर ,बच्चों के लिए प्रतिबंधित मोबाइल एप चल रहा था।मोबाइल देखते हुए बीच बीच में वह कुछ बड़बड़ाता और कभी जोर से सिसकारी भरता।पास ही बैठा दूसरा छात्र जिसका नाम वैभव सक्सेना था किसी कॉमिक पुस्तक में मशगूल था।सुमित के मुँह से निकलती आवाज़ों से वैभव को चिढ़ हो रही थी।जब यह ध्वनियाँ वैभव की बर्दाश्त के बाहर हो गईं तो उसने सुमित को ज़ोर का धक्का दिया।सुमित अचकचा कर गिर गया और उसका मोबाइल हाथ से छूट कर गिर गया ।सुमित का पिता शहर का बड़ा शराब कारोबारी और अकूत संपत्ति का मालिक था।लक्ष्मी पुत्र का धक्के से यों गिर जाना उसके लिए अप्रत्याशित सा था।धक्के की चोट शरीर से ज़्यादा उसके अहं पर लगी थी।वैभव को भी पता था कि यह मोटू धक्के का बदला अवश्य लेगा।किंतु मोटे शरीर को गिर कर उठने में कुछ समय लगता है तो भागने का सही अवसर जान वैभव उठ कर भागा।ग़ुस्से से लाल सुमित भागते वैभव की ओर झपटा।इससे पहले कि सुमित उसे पकड़ पाता वैभव पास के क्लास रूम में घुस गया और उसने अंदर से चिटकनी लगा ली।बाहर सुमित गालियाँ बकते और दरवाज़ा पीटते हुए जान से मारने की धमकियाँ दे रहा था ।

 वैभव डर गया था ।उसने अपनी पेंट में छुपाया मोबाइल निकाला और अपने पिता सुरेश सक्सेना जो पेशे से एडवोकेट था को कॉल किया-“ पिताजी जल्दी स्कूल आइए यहाँ मेरी जान को खतरा है।”

 आनन फ़ानन में एक मर्सीडिज गाड़ी सिक्योरिटी बैरियर को अनदेखा करती क्लास रूम इमारत के आगे रुकी ।उसमें से सुरेश सक्सेना और गुंडे से लगते दो आदमी उतरे।इससे पहले कि इन्हें यों उतरते देख टीचर और एसेंबली के छात्र कुछ समझ पाते तीनों लोग धड़धड़ाते हुए सीड़ियों पर चढ़ गए ।ऊपर जाकर सुरेश सक्सेना ने देखा कि एक मोटा लड़का धमकियाँ देता दरवाज़ा पीट रहा है।सुरेश समझ गया कि यही लड़का उसके बेटे को मारना चाहता है ।उन्होंने मोटे लड़के को पकड़ लिया और लगे उसे पीटने।अब तलक वैभव भी चिटकनी खोल बाहर आ गया।



 वैभव ने रोते हुए कहा-“पिता जी यह मुझे जान से मारना चाहता था ।” सुन कर सुरेश सक्सेना ने ग़ुस्से से सुमित की गर्दन पकड़ ली। इससे पहले कि कुछ अनहोनी होती प्रिंसिपल,टीचर आदि उपर आ गए।उन्होंने सुमित को इन लोगों से छुड़ाया ।जब सुरेश गैंग और प्रिंसिपल की बातचीत चल रही थी तो इसी बीच सुमित ने अपने शराब कारोबारी पिता को अपनी पिटाई की सूचना दे दी।प्रिंसिपल और एडवोकेट सुरेश सक्सेना में बहस चल ही रही थी कि इतने में एक पुलिस इंस्पेक्टर ओर दो सिपाहियों के साथ शराब कारोबारी चड्ढा रंगमंच पर अवतरित होता है ।पिता को पुलिस के साथ आया देखकर अब सुमित चीखने चिल्लाने लगा और रोते हुए बोला-“ डैडी यह आदमी मेरी गर्दन दबा रहा था यदि समय पर प्रिंसिपल सर नहीं आते तो यह मुझे मार डालता।”

 “ हत्या प्रयास के जुर्म में इसे गिरफ़्तार करो इंस्पेक्टर ।”- चड्ढा दहाड़ा ।

 “ कोर्ट का वकील हूँ ,  मैं भी देखता हूँ कि बिना सबूत के कैसे गिरफ़्तार करोगे।पहले उस लौंडे को गिरफ़्तार करो जो मेरे बेटे को मारना चाहता था ।”-सुरेश सक्सेना ने तैश में कहा।

शब्द वाण युद्ध अपने चरम पर था ।किसी भी क्षण हाथापाई की नौबत आ सकती थी।

 सारा स्कूल तमाशा देख रहा था और दो सांड सींग ताने स्कूल प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास में हुंकारे भर रहे थे।कुछ देर वाक् युद्ध के बाद यह सार्वजनिक तमाशा प्रिंसिपल के कमरे में सिमट गया।दौलत इंसान के रहन -सहन का तरीक़ा बदल सकती है सलीक़े नहीं ।यह तो नहीं पता कि मामला सुलझा तो किस हद तक सुलझा पर दो गरीब सिक्योरिटी गार्ड को अवांछित तत्वों के प्रवेश पर रोक न लगा पाने पर नौकरी से अवश्य बर्खास्त कर दिया गया।सांडों की लड़ाई में बेचारी घास कुचली गई ।

 मेरे सामने सिक्योरिटी गार्ड हरीश है,जो एक दंत हीन हिन्दी लेखक से दौलत वालों के स्कूल में दंत प्रहार की आस लगाए बैठा है

  “ सर कुछ तो कीजिए, मैं बड़ी आस से आपके पास आया हूँ ।”- हरीश ने दीनता से कहा।

  “ मैंने बचपन में टाट-पट्टी के चुंगी स्कूल से अपनी शिक्षा आरंभ की थी ।उस ज़माने में विद्यार्थियों की पिटाई और मुर्ग़ा बनाना आम बात थी ।पर फिर भी हम गुरू को आदर और सम्मान देते थे।किंतु आज फ़ाइव स्टार सुविधाओं से संपन्न इन स्कूलों में न वैसे गुरू हैं और न वैसे विद्यार्थी ।आज समय बदल गया है तो हमें भी समय के साथ बदलना होगा ।”-मैंने हरीश को समझाते हुए कहा ।



 “ सर मैं पुराने और नये स्कूल की तुलना करने नहीं अपनी नौकरी बहाल कराने के लिये आया हूँ ।मेरे पास उस दिन की घटना का विडियो भी है जो मैंने चुपचाप बना लिया था।”-हरीश ने कहा।

 “ ठीक है, तू वह विडियो मुझे दे , मैं स्कूल प्रिंसिपल से मिलता हूँ “-मैंने हरीश को आश्वासन देते कहा ।

अगले दिन उस महलनुमा स्कूल की भव्यता से अप्रभावित मैं स्कूल प्रिंसिपल के कमरे में विराजमान था।मैंने प्रिंसिपल से सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए नर्म रुख़ अपनाने की प्रार्थना की।

लेखक के रूप में मेरा परिचय जानने के पश्चात प्रिंसिपल ने तल्ख़ लहजे में कहा-“देखिए श्रीमान उस दिन यदि सिक्योरिटी गार्ड उन पैरेंट्स को अंदर नहीं जाने देते तो स्कूल में इतना बड़ा हंगामा न होने पाता ।”

 “ मैं मानता हूँ कि सिक्योरिटी में चूक हुई किंतु आपके वह दो छात्र जिन्होंने स्कूल के नियमों को ताक पर रख कर अवांछित हरकतें कीं , उन पर आपने क्या एक्शन लिया ? क्या उन्हें स्कूल से रेस्टीकेट किया गया  ?”-मैंने भी तल्ख़ अंदाज़ में सवाल किया ।



 मेरे प्रश्न पर प्रिंसिपल ने गंभीर होते कहा -“ आप लेखक हैं ,आप स्वप्नों की दुनिया का निर्माण करते हैं -ऐसी दुनिया जहां न्याय निष्पक्ष और ईमानदारी हो।पर हक़ीक़त यह नहीं है ।यह जो बड़े-बड़े स्कूल आप देख रहे हो इनमें पैसे वालों के बच्चे पढ़ते हैं ।पैसों वालों को इतनी फ़ुरसत नहीं कि वह अपने बच्चों पर ध्यान दे सकें।मोटी फ़ीस देकर वह सोचते हैं कि हमारे पास शायद कोई ऐसी मशीन है जो उनके बच्चों को सर्व गुण संपन्न बना देगी।किंतु जब तक बच्चों को पारिवारिक संस्कार नहीं मिलेंगे स्कूल के करे धरे कुछ न होगा।हम भरपूर प्रयास करते हैं पर अपने बाप के पैसे के घमंड में चूर बच्चे किसी की नहीं सुनते।हमारी मजबूरी है कि हम ऐसे बच्चों को स्कूल से निकाल भी नहीं सकते।”

 “आपकी मजबूरी है कि आप बच्चों को निकाल नहीं सकते किंतु आपने बड़ी आसानी से सिक्योरिटी गार्ड को निकाल दिया । तो फिर मुझे भी मजबूरन उस दिन की घटना का विडियो शहर के समाचार पत्र में देना होगा।विडियो में जिस स्तर की निम्न और भौंडी हरकतों का प्रदर्शन है उससे आपके स्कूल की प्रतिष्ठा तो बढ़ने से रही ।”-इतना कह कर मैं उठने ही लगा था कि प्रिंसिपल ने मुझे बैठने का इशारा करते कहा-“ देखिए मुझे सिक्योरिटी गार्ड से पूरी हमदर्दी है ।हमारा मक़सद उन्हें सबक़ सिखाना था नौकरी से निकालना नहीं ।आप गार्ड हरीश को कल से नौकरी पर आने के लिए कह दीजिए ।”

  मुझे आशा नहीं थी कि काम इतनी सहजता से हो जाएगा ।किंतु यह भी सच है कि विडियो छपने से ,नौकरी देना प्रिंसिपल के लिए सस्ता सौदा था।मैं संतुष्ट सा प्रिंसिपल के कमरे से बाहर निकल आया।बाहर लान में अनेक रंगों के ग्लैडियोलस के पुष्प खिले थे।किंतु इनमें दिखावटी सुंदरता तो थी पर सुगंध नहीं ।

                                              ****समाप्त****

                                                               लेखक-नरेश वर्मा (स्वरचित कहानी)

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