रोशनी – Short Inspiring Story In Hindi

  ” साॅरी मिस्टर टंडन,आपकी बच्ची की आँखों के कुछ टिशुस अविकसित ही रह गयें जिसके कारण वह…” 

   ” वह क्या… डाॅक्टर साहब” प्रमोद डाॅक्टर साहब पर चीख पड़े।

  ” वह कभी देख नहीं सकती..” कहकर डाॅक्टर अपने केबिन में चले गये और प्रमोद…, उनके तो जैसे पूरा शरीर ही सुन्न पड़ गया हो।अभी कुछ देर पहले ही तो उन्हें पिता बनने की खुशखबरी सुनाई गई थी।विवाह के पाँच बरस बाद भी जब उनकी पत्नी प्रमिला की कोख हरी नहीं हुई तो रिश्तेदारों में कानाफूसी होने लगी कि कहीं वो बाँझ तो नहीं।उनके छोटे भाई ने तो विवाह के दो बरस बाद ही अम्मा को एक पोते की दादी बना दिया था और दूसरे की तैयारी में था।तब अम्मा ने भी प्रमिला को ताने देना शुरु कर दिया था।अम्मा की ताने सुनकर पत्नी की आँखों से आँसू बहते देख प्रमोद कहते, भगवान पर भरोसा रखो प्रमिला,वो सबकी सुनते हैं।दोनों ने विशेषज्ञों से परामर्श किया,बहुत तरह की जाँचें भी करवाईं लेकिन कोई कमी नहीं होने के बाद भी प्रमिला की गोद सूनी ही रही तो दोनों ने निसंतान होने को अपनी नियति मान लिया।लेकिन पिछले साल जब अचानक उसका जी मितलाया तो दोनों ने तनिक भी देरी न की और डाॅक्टर के पास गयें।डाॅक्टर साहिबा ने जब प्रमिला के गर्भवती होने की पुष्टि की तब तो दोनों खुशी से फूले नहीं समाये थें।




         डाॅक्टर ने तो प्रमिला को थोड़ा एहतियात बरतने को कहा था लेकिन प्रमोद तो पत्नी को हिलने तक भी न देते थें।नौवें माह में जब डाॅक्टर ने प्रमोद से कहा कि माँ का मूवमेंट नहीं होगा तो डिलीवरी में प्रॉब्लम होगी,तब प्रमोद उन्हें अपने साथ टहलाने लगें थें।एक घंटे पहले जब डाॅक्टर ने उन्हें बताया कि प्रमिला ने एक बच्ची को जन्म दिया है तो वे खुशी-से फूले नहीं समा रहें थें।तुरन्त अम्मा को फ़ोन करके बताया कि वो एक पोती की दादी बन गईं हैं और अब ये कि बच्ची….।उनके साथ नियति ये कैसा खेल खेल रही थी।एक तरफ़ तो उनका दामन खुशियों से भर दिया तो दूसरी तरफ़ बेटी का जीवन अंधकारमय कर दिया।वो फूट-फूटकर रोने लगे,तभी ‘कहाँ है मेरी पोती’ कहती हुई अम्मा आईं तो उन्होंने अपने आँसू पोंछ लिये।नर्स ने बच्ची को लाकर उनकी गोद में दिया तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था।

         प्रमिला को भी होश आ गया था।प्रमोद ने बच्ची को उसे देते हुए ‘ बधाई हो’ कहा।अम्मा भी बहू-पोती की नज़र उतारने लगी। प्रमिला ने नोटिस किया कि प्रमोद उनसे नज़रें चुरा रहें हैं।

        अम्मा के चले जाने के बाद प्रमोद पत्नी से बोले,” प्रमिला, हमारी बच्ची..।”

” देख नहीं सकती, मैं जानती हूँ।डाॅक्टर साहब ने बच्ची को मेरी गोद में देते ही बता दिया था कि इसकी आँख की रोशनी एक प्रतिशत है जो छह महीने के बाद धीरे-धीरे खत्म हो जायेगी।” मुस्कुराते हुए उसने प्रमोद के हाथ पर अपना हाथ रखा और बेटी की तरफ़ देखते हुए बोली,” इसने मुझे ‘माँ’ बनाया है,इसकी वजह से मैं पूर्ण हुई हूँ तो अब मैं भी इसे अधूरी नहीं रहने दूँगी।” फिर बेटी की आँखों को देखते हुए बोली,” सरस्वती का रूप है मेरी बेटी।देख लेना आप,ये दुनिया में अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाएगी और हम दोनों इसी के नाम से पहचाने जायेंगे।क्यों रोशनी, करेगी न संसार में उजाला।” कहकर उसने बेटी का माथा चूम लिया। 




         पत्नी का आत्मविश्वास देखकर प्रमोद का मनोबल भी ऊँचा हुआ और उन्होंने नियति के इस रूप को भी सहर्ष स्वीकार कर लिया।

          प्रमिला ने अपना पूरा समय अपनी बेटी के नाम कर दिया।कल क्या होगा, इसकी चिंता छोड़ दोनों रोशनी के साथ वर्तमान में जीने लगे।आठ महीने बीतते-बीतते बेटी घुटनों के बल चलने लगी,साथ ही उसकी आँखों की ज्योति भी समाप्त हो गई।परिवार में जब सभी को बच्ची के अंधेपन की जानकारी हुई तो सभी ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी।किसी ने कहा कि एक तो बेटी,उसपर से अंधी तो किसी ने कहा कि ऐसी संतान तो बोझ होती है।प्रमिला के लिये यह सब असहनीय था।कुछ दिनों के बाद ही दोनों अपनी बेटी को लेकर अलग मकान में शिफ़्ट हो गयें।

         दो साल की रोशनी जितनी सुन्दर थी,उतनी ही होशियार भी।उसने पहली बार जब अपनी टूटी-फूटी आवाज़ में प्रमिला को ‘मम्..मम्..’ कहा था तो वह निहाल हो गई थी।अब तो वह आवाज को सुनकर ही उस व्यक्ति को पहचान लेती थी और शब्दों को तो वह तुरंत ही हू ब हू दोहरा देती।प्रमिला ने यह भी नोटिस किया कि टेलीविजन की खबरें या बातचीत को वह बहुत ध्यान से सुनती थी।शायद नियति उसे कुछ संकेत दे रही थी।शाम को प्रमोद के आते ही उसने सारी बात बताई और कहा कि वह अपनी बेटी को अपने पैर पर खड़ा करना चाहती है।

    उसी दिन से दोनों बेटी का भविष्य बनाने में जुट गये।प्रमिला उसे बोलकर सिखाने का प्रयास करती और प्रमोद ऑफ़िस से आकर ब्रेल-लिपि सीखते ताकि बेटी को सिखा सके।स्कूल में एडमिशन कराने से पहले वो बेटी को घर पर ही तैयार करना चाहते थें।उनकी मेहनत रंग लाई और पाँच बरस की होते-होते रोशनी लिखने के साथ-साथ पूरे आत्मविश्वास के साथ बोलने भी लगी।फिर प्रमोद ने स्कूल में उसका एडमिशन करा दिया जहाँ ब्रेल-लिपि में ही वह समुचित शिक्षा प्राप्त करने लगी।

          अपनी मेहनत और लगन से रोशनी ने दसवीं की परीक्षा पास कर ली।उसने पिता से वकील बनने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की जो मुश्किल था लेकिन नामुमकिन नहीं। कला संकाय(Arts) में बारहवीं की पढ़ाई करते हुए वह  CLAT की भी तैयारी करती रही।ब्रेल-लिपि में किताबें कम होने के कारण उसे परेशानी होती थी,तब प्रमिला ही ऑनलाइन किताबें पढ़कर बेटी को सुनाती थी।




        बारहवीं की परीक्षा देने के बाद रोशनी ने ClAT की भी परीक्षा दी और दोनों में ही उसे सफ़लता मिली।उसका रैंक अच्छा होने के बावजूद उसके नेत्रहीन होने के कारण जब दो काॅलेज़ों ने उसे दाखिला देने से मना कर दिया तब भी उसने हार नहीं मानी।शहर के ही एक अच्छे लाॅ कॉलेज़ में उसका एडमिशन हो गया और वह अपने सपने को पूरा करने में जुट गई।वह अक्सर अपनी माँ से कहती कि वकालत पास करके मैं गरीब- मजबूर लोगों को न्याय दिलाऊँगी।

          उसके अथक परिश्रम का परिणाम निकला, वकालत की डिग्री उसे मिल गई और वह अपने पिता के ही वकील मित्र के अंडर में इंटर्नशिप करने लगी।संपत्ति के बँटवारे के एक केस में बुजुर्ग महिला को न्याय दिलाकर वह शहर की पहली नेत्रहीन वकील बन गई।शहर में उसकी प्रशंसा होने लगी,अखबारों में उसके इंटरव्यू छपने लगे और अब प्रमोद और प्रमिला वकील रोशनी के माता- पिता के नाम से जाने लगें।

       व्यस्तता के बावज़ूद रोशनी सप्ताह में तीन दिन नेत्रहीन बच्चों के स्कूल अवश्य जाती थी।उनको पढ़ाती और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती।साथ ही,वह अपनी आय का तीन चौथाई हिस्सा उन स्कूलों को डोनेट कर देती ताकि नेत्रहीन बच्चे भी सक्षम होकर समाज में एक मुकाम हासिल कर सके।

          प्रमोद के एक मित्र ने बताया कि विदेश से नेत्ररोग विशेषज्ञ डाॅक्टर अविनाश आये हैं।एक बार रोशनी को उनसे मिला दो,शायद…।सच है,जब तक साँस है तब तक आस तो रहती ही है।यद्यपि रोशनी अपने जीवन से संतुष्ट थी लेकिन उसकी माँ प्रमिला…।वह तो चाहती थी कि उसकी बेटी भी दुनिया देखे।माँ की इच्छा-पूर्ति के लिये वह डाॅक्टर से मिली।डाॅक्टर अविनाश ने रोशनी की आँखों की जाँच करके बताया कि अगर कोई इन्हें अपनी आँखें दान कर दें तो रोशनी फिर से देख सकती है।

          सुनते ही प्रमिला तो खुशी-से उछल पड़ी।प्रमोद नेत्र-बैंकों में फ़ोन करने लगें और रोशनी…वह तो रंगीन दुनिया देखने के सपने देखने लगी।प्रमोद ने नेत्र-बैंक में रोशनी की आँखों के लिये अप्लाई कर दिया।अब तो प्रमिला दिन-रात बेटी के नये जीवन के सपने देखने लगी।लेकिन कहते हैं ना कि ज़्यादा खुशी संभाली नहीं जाती।प्रमिला का भी यही हाल था।एक दिन सीढ़ियों से उतरते समय न जाने कैसे उनका पैर फिसल गया और वे कई सीढ़ियाँ लुढ़कती नीचे चलीं गईं।बहुत खून बह गया था।साँसें इतनी ही बची थी कि कह सके, ” आँख… रोशनी…”




      रोशनी उस समय कचहरी में थी।उसे सिर्फ़ दुर्घटना की खबर दी गई और कहा गया कि किसी ने अपनी आँखें डोनेट की है तो उसे तुरंत हाॅस्पीटल में एडमिट होना पड़ेगा।सबकुछ इतनी जल्दी में हुआ कि वह भी कुछ समझ नहीं पाई।उसकी सर्जरी सफ़ल रही।तीन दिनों के बाद उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलनी शुरु की।एक गहन अंधेरे से वह असीम उजाले को देख रही थी।पिता को देखा परन्तु माँ नहीं दिखी।उसे बताया गया कि घर पर आराम कर रही है।

         अपने घर को रोशनी देख रही थी और अपनी माँ को खोज रही थी।एक महिला की तस्वीर पर माला देखकर वह ठिठक गई।पिता ने कंधे पर हाथ रखा तो वह अपने आँसुओं को नहीं रोक पाई।नियति ने उसके साथ कैसा मज़ाक किया था।पहले माँ को सुन सकती थी और अब माँ की ही आँखों से माँ को सिर्फ़ तस्वीर में ही देख सकती थी।

       रोशनी ने अपने घर में नेत्रहीन बच्चों के लिये एक आवासीय विद्यालय खोल लिया था जहाँ उन बच्चों को आत्मनिर्भर बनने के लिये तैयार किया जाता था।साथ ही, वह नेत्रदान जागरुकता अभियान में भी सक्रिय थी ताकि नेत्रहीनों को भी रोशनी मिल सके।प्रमोद भी सेवानिवृत होकर अपनी बेटी की समाज-सेवा में अपना पूर्ण योगदान देने लगे।

 #नियति         

विभा गुप्ता 

 स्वरचित 

           नियति को स्वीकार कर लेना अच्छी बात है लेकिन हिम्मत कभी नहीं हारना चाहिए।अपनी मेहनत और हौंसलों से भाग्य को बदला भी जा सकता है जैसा कि रोशनी और उसके माता-पिता ने किया।याद रहे, किस्मत तो उनकी भी अच्छी होती है जिनके हाथ नहीं होते,हाथों की लकीरें नहीं होती।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!