रिश्तों में समर्पण –  शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: जस्सी अस्पताल में नर्स थी।बेहद खूबसूरत और शालीन।शादी के बाद गर्भवती हुई तो,शुगर की बीमारी ने आ घेरा ।बहुत कोशिशों के बाद भी शिशु को जन्म नहीं दे पाई, और ऐसा बार-बार हो रहा था।अस्पताल में हर समय चहकने वाली जस्सी अपने मन में मातृत्व की आस लिए बीमारों की सेवा निःस्वार्थ कर रही थी।ईश्वर पर अगाध आस्था रखने वाली जस्सी के मन में हमेशा चमत्कार की आस रहती थी।

एक दिन खुश होकर बताया उसने”भाभी ,हम एक बच्ची गोद ले रहें हैं।सारी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं,बस तीन दिन बाद मेरी गोद में भी छोटी सी बच्ची होगी।”एक मां का सुख उसकी आवाज में सहज ही सुनाई दे रहा था।कॉलोनी में सभी खुश थे,और उसे बधाई दे रहे थे।

एक दिन आंखों में आंसू भरकर उसने पूछा”भाभी ,यह जो मैं नवजात बच्ची को इतने लाड़ प्यार से पाल रहीं हूं,बड़ी होकर जब इसे पता चलेगा कि मैं उसकी असली मां नहीं,तब क्या होगा?नफ़रत तो नहीं करने लगेगी अपने पापा मम्मी से??”मैंने उसे एक छोटा सा उदाहरण दिया और बोली “हम मंदिरों में जातें हैं, तीर्थ पर जातें हैं,तो क्या यह सोचकर जातें हैं कि मनोकामना पूर्ण होगी कि नहीं??ईश्वर से क्या मांगना ?उन्हें तो आस्था और समर्पण चाहिए।ये जो हम डॉक्टर के पास आंतें हैं,मन में यही विश्वास लेकर ही आंतें हैं कि हम रोगमुक्त हो जाएंगे।कल क्या होगा यह सोचकर आज की खुशियों को क्यों खोना?ईश्वर ने तुम्हें बच्चा तो दे दिया,अब तुम्हें उसकी मां बनना है।मां कभी असली या नकली नहीं होती,वह तो बस मां होती है।”

जस्सी ने हंसकर गले लगा लिया था मुझे।समर्पण की परिभाषा शायद समझ गई थी वह।

दिन बीतते गए और उसकी गुड़िया भी बढ़ती रही।एक दिन खबर मिली कि जस्सी के साथ बहुत बड़ी दुर्घटना होते-होते बची। ट्रेन में किसी ने उसकी बच्ची चुरा ली ,और स्टेशन पर उतर भी चुका था।जस्सी की ममता ने स्टेशन पर खोई हुई बच्ची मिला दी उसे।विस्तार से उसने बताया “जब रात में सब सो रहे थे,बेटी पति के साथ ही थी।

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गहरी नींद में कब किसी अनजान व्यक्ति ने बच्ची को चुरा लिया,पता भी नहीं चला।एक घंटे बाद जब मेरी आंख खुली तब मैंने जाना कि पति के पास से बच्ची गायब है।मैंने इतना शोर मचाया कि वह आदमी शायद उतर गया‌ स्टेशन पर। ट्रेन को एक घंटे रोका गया,ताकि मैं अपनी बच्ची को ढूंढ़ सकूं।

जब एक घंटे बाद भी बच्ची नहीं मिली और ट्रेन चलने लगी तो,खिड़की पर बैठकर, अपने रोते हुए स्टेशन पर बैठे एक आदमी पर नज़र गई।उसे देखकर ही  मुझे संदेह हुआ कि उसकी पोटली में मेरी ही बच्ची है।दूसरे प्लेटफार्म पर कोई और ट्रेन आने वाली थी,वह उसी के लिए प्रतीक्षा कर रहा था।उसकी पोटली में हलचल देखकर ही मुझे लगा जैसे मेरी बेटी कसमसा रही है।मैंने तुरंत चेन खींचीं और नीचे उतरकर उस आदमी को पकड़ा तो सचमुच मेरी बेटी ही थी उसके पास।

ईश्वर बहुत दयालु है वास्तव में,मुझे मां बनाया और कलंकित होने से बचा लिया।”मैं कौतूहल से किसी कहानी‌ की तरह उसकी आपबीती सुन रही थी।

अगले साल  जस्सी की कार दुर्घटना ग्रस्त हो गई।पति चला रहे थे और वे किसी धार्मिक कार्य में सम्मिलित होने जा रहे थे।रात के समय कार अनियंत्रित होकर घाटी में कई फीट नीचे गिर गई थी।जस्सी ने अपनी गोद में बिटिया को कसकर पकड़कर रखा था।कार के शीशे टूटकर दोनों पति पत्नी के चेहरे में धंस गए थे पर बेटी को मामूली खंरोच तक नहीं आई थी।

जस्सी के मन में ईश्वर के लिए प्रेम और विश्वास बढ़ गया था।कोविड के दौरान दोनों पति-पत्नी गंभीर रूप से संक्रमित हुए और महीनों चिकित्सा के अधीन रहे पर बेटी को कुछ भी नहीं हुआ था।बेटी को लाड़ प्यार से पालती हुई जस्सी सदा इसी आशंका से भयभीत रहती कि कहीं कोई उसे बता ना दे असलियत।उसकी आंखों का मौन मानो सदा गुहार करता सभी से कि, बेटी को सच ना बताया जाए।एक औरत के समर्पण ने कैसे उसे ममता मयी मां बना दिया था।

अब बेटी दसवीं में थी।अपने मम्मी -पापा की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह मनाने का दायित्व लिया था उसने।एक बड़े होटल में सारा आयोजन उसी की देखरेख में हुआ था।अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों के साथ कई आकर्षक प्रस्तुतियां दी उसने। कार्यक्रम की समाप्ति पर मुझसे आग्रह किया”आंटी,आप मम्मी पापा के लिए एक छोटी सी कविता बोल दीजिए ना।”मैं अभिभूत थी उसकी सक्रियता देखकर।मैंने पूछा”बेटा,मंच पर तो सभी रिश्तेदार और निकट के परिजन हैं,मैं बाहरी होकर कैसे कुछ बोलूं?”

उसने तपाक से कहा”आंटी,वैसे तो मेरा भी खून का रिश्ता कहां है उनसे?पर मैं तो बेटी बन गई ना उनकी।जितने प्यार से मुझे उन्होंने पाला ,शायद सगे मां बाप भी नहीं पाल पाते।आप बाहर की नहीं हैं,मेरी मम्मी आपको बहुत मानतीं हैं।आप बोलिए ना।”

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मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई थी।मेरी भाव-भंगिमा देखकर उसने मुझे प्रश्न करने का अवसर दिए बिना ही कहना शुरू किया”हां आंटी,मम्मी पापा को पता नहीं कि मुझे सच्चाई पता है।मैं नहीं चाहती कभी कि उन्हें इस बात की भनक भी लगे।मेरी मम्मी की आंखों में मेरे लिए जो स्नेह है,वह ममता को खुद ही प्रमाणित करता है।जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ,मैं उनकी ही बेटी हूं।”

मेरी ईश्वर पर आस्था और बढ़ गई थी ।यह  सत्य आज स्वत:ही सिद्ध हो गया कि “समर्पण से रिश्ते मजबूत होतें हैं,खून के बंधन से नहीं।गंगा तो नदी है,पर हमारी आस्था और समर्पण से हमारे जन्म-जन्मांतर के पाप हरती है।हमारे द्वारा भोलेनाथ को चढ़ाया हुआ जल और बिल्ल पत्र निश्चित ही कैलाश धाम पहुंचता होगा।

शुभ्रा बैनर्जी

#समर्पण

 

 

 

 

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