रिश्ते जोड़ता चाँद – संजय मृदुल

जीजी चाँद निकल आया जल्दी आ जाइये। छोटी भाभी की छत पर से आवाज आई।

मन तो नही हो रहा था पर जाना तो पड़ेगा। ज्योति का ये मायके में पहला अवसर था करवा चौथ पर। और शादीशुदा जिंदगी का शायद आखरी।

पंद्रह साल की शादी आज दांव पर लगी थी। फेमिली कॉउंसलिंग में कोई हल न निकलने के बाद कोर्ट चला गया था मामला। ललिता पवार सी सास और उनके कंट्रोल में पूरा परिवार। ज्योति ने इतने बरस बस जी मां जी कहते हुए काट दिए।सूरज भी माँ के अनन्य भक्त। किसी की मजाल नही थी उनकी कोई बात का विरोध करे।

जब काफी साल तक बच्चे न हुए तो ज्योति की आये दिन आरती उतरने लगी। टेस्ट कराने की बात आई तो ज्योति की इक्छा थी दोनो का हो ताकि स्थिति साफ हो और उसके बाद जो भी करना हो किया जाए। मगर सास का हुक्म, नही टेस्ट तो बस ज्योति का होगा। मर्दों में कोई कमी होवे है भला। ज्योति भी अड़ गयी होगा तो दोनो का वरना ऐसे ही भले। ज्यादा बच्चे की चाह है तो गोद ले लेते हैं। गोद लेने वाली बात तो तीर से लगी सासू माँ को।

अंततः हुआ यह कि ज्योति के सूरज मूक दर्शक बने रह गए और ज्योति आ गयी मायके। पुराने जमाने की सास की तरह कोई समझौता न करने की जिद लिए माँ भी अड़ी रही और ज्योति भी अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए।

आज किसे देखूंगी छलनी से, किसकी पूजा करूंगी। भाभियों को देखो कैसे ताने मारती है अक्सर। क्या बच्चे न हो तो सब रिश्तो की जड़ कमजोर हो जाती है। इतनी तकनीकी आ गयी हैं गोद ले सकते है। क्या परिवार को बचाने के लिए वे सब थोड़ा झुक नही सकते। मैं भी क्यों जिद पर अड़ गई। न कराते ये भी टेस्ट। मेरे टेस्ट से भी तो सब साफ हो जाता। फिर सोचते कुछ। यही सब सोचते ज्योति छत पर पहुंची तो देखा सूरज वहां मौजूद हैं सब के साथ।

ज्योति की आंखें भर आईं। उसका हाथ पकड़ सूरज बोले मैं माफी चाहता हूँ तुमसे। कमी मुझमे है मैंने टेस्ट कराया है। जो भी हुआ है उसके लिए मेरा चुप रहना गलत था। मैं इस गलती को सुधारना चाहता हूँ क्या एक मौका दोगी।

मैंने अलग घर देख लिया है अगर अम्मा न मानी तो वहां चले जायेंगे रहने। और तुम चाहो तो एक बच्चा गोद भी ले लेंगे। इतने साल यूँ समर्पण के बाद समझ आया है कि अपनी जिंदगी अपनी खुशी अपने हाथों में होती है। घर परिवार साथ दे तो वो दुगनी होती है नही तो अकेले ही मनानी पड़ती है।

तो आज चाँद को नए रूप में देखो। कंल से हम भी नई जिंदगी शुरू करेंगे।

ज्योति ने डबडबाई आंखों से छलनी के बीच से उन्हें देखा और सूरज ने पानी का ग्लास ज्योति के होठो से लगा दिया।

©संजय मृदुल

मौलिक एवम अप्रकाशित

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