“रिश्ता” – कुमुद चतुर्वेदी

अस्ताचलगामी सूर्य की ओर मुँह किये एक आदमी समुद्र के किनारे दोंनों हाथ उठाये खड़ा था मानो ताजी हवा ले रहा हो कि अचानक वह पानी में कूद गया और डूबने लगा। कुछ लोग जो तैरना जानते थे एकदम पानी में कूद पड़े और थोड़ी देर में ही उस व्यक्ति को कंधे पर लादे बाहर आ गये।

      भीड़ हटा डूबने वाले व्यक्ति को उल्टा लिटाकर उसके पेट का पानी निकाला।जब वह होश में आ गया तो उससे समुद्र में कूदने का कारण पूँछने लगे।पर वह आदमी रोता जा रहा था और कह रहा था – “मुझे क्यों बचाया?मर जाने  देते, मैं जिन्दगी से थक चुका हूँँ “.यह सुन वहाँ इत्तफाकन टहलने आये जिलाधिकारी सिन्हा रुक गये और जब उन्होंने पूरी बात सुनी तो उस आदमी को सहारा देकर अपने साथ गाड़ी में बिठाकर पहले उसे पानी पिलाया और उसकी पीठ सहलाकर  आराम से बिठाया फिर वे गाड़ी एक रेस्टोरेंट के सामने रोक बोले ” काका आइये”।

अंदर जाकर एक टेबल पर उस आदमी को बिठा खुद बैठकर चाय और टोस्ट का ऑर्डर दे दिया।वह आदमी अब तक चुप था,पर अब उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे ,तभी सिन्हा सा.ने उठकर उसे शांत करा चाय पिलाई और अपने हाथों से टोस्ट भी खिलाये।जब वह थोड़ा आश्वस्त हुआ तब सिन्हा सा.ने कहा..”काका आज से आप मेरे काका हुए और अब यहाँ मेरे परिवार का हिस्सा बनकर रहेंगे।

मैं आपसे आपकी पिछली जिन्दगी के बारे में कुछ नहीं पूँछूगा यदि आप न बताना चाहें तो,पर यह जरूर कहूँगा कि आत्महत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है।ईश्वर ने जीवन दिया है तो वही जीवन लेने का भी अधिकारी है हम क्यों उस परमात्मा के काम में खलल डालें?आप को आज से मैंने अपने परिवार के बुजुर्ग का दर्जा दिया है तो आशा है आप इस रिश्ते का निर्वहन करने में मुझे निराश नहीं करेंगे।



“यह कहकर वे अपने काका का हाथ पकड़ गाड़ी में बैठ गये।यह देख,सुनकर वे बुजुर्ग खुद को न रोक सके उन्होंने सिन्हा सा.को गले लगा आशीर्वाद की झड़ी लगा दी।जब सिन्हा सा.ने गाड़ी स्टार्ट की तब वे बोले “बेटा मैं नहीं जानता था कि दुनियाँ में तुम जैसे भले लोग भी हैं।मैं रिटायर्ड टीचर हूँ और मेरा मकान भी है जो मैंने और मेरी पत्नि ने पाई पाई जोड़कर बनबाया था।

मेरी पत्नि  भी दो महिने पहले ईश्वर के पास चली गई।मेरे दो बेटे जिन्हें हमने बहुत मेहनत से इस लायक बनाया कि वे दोनों आज विदेश में अच्छी जॉब में सपरिवार खुश हैं।वे दोनों ही वापिस नहीं आना चाहते।उन्होंने अपनी माँ से धोखे से मकान के कागज ले वहीं विदेश से दलाल से मकान का सौदा भी कर दिया बगैर हमको बताये।हमें तो तब मालूम हुआ जब वह दलाल मकान खाली कराने आया।इसी दुख में पत्नि भी चली गई।तब  भी वे दोनों नहीं आये अब तो वे फोन भी नहीं करते साफ कह दिया आप जानें अपना हमें परेशान न करें।मेरे पास न तो पैसा है अब और न रहने का ठिकाना दो दिन बाद आज चाय नसीब हुई है।”यह कह वे फिर आँसू पौंछने लगे।

   सिन्हा सा.ने उनके कंधे को सहला कहा”आप परेशान न हों।आप हमारे घर ही रहेंगे और आज से पिछली जिन्दगी बिल्कुल भूल आगे नयी जिन्दगी शुरू करेंगे अब।” 

    घर पहुँचकर सिन्हा सा.ने अपनी बीबी बच्चों को बुलाकर उनका परिचय अपने काका के रूप में कराया .वह आदमी आँसू भरी आँखों से सब देखता रहा कुछ न बोल सका .बस सोचता रहा प्रभु की लीला भी खूब है सगों ने बाहर निकाला गैरों ने गले लगाया.

                   ……….कुमुद चतुर्वेदी.

 

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