ऋण – स्मिता सिंह चौहान

यार सुमी और कितना वक्त लगेगा, हमारा दूर का सफर है देर हो जायेगी ।जरा बोलो ना विशाल से (सुमि का भाई)थोड़ा पंडित जी को बोले जल्दी करें ।बरसी ही तो है, अब पापाजी दुनिया से चले गये ,अब वो कौन सा देख रहे हैं कि हम उनहे क्या दे रहे हैं क्या नही ?”शुभम् ने सुमि को व्यवहारिक ज्ञान देते हुए कहा ।

“अरे तो ऐसी चीजों में टाइम तो लगता है ।अब मैं कैसे बीच में बोलूं ?अजीब सी बात मत किया करो ।पापा की बरसी है ,कोई बार बार तो आयेगी नहीं, करने दो उनहे आराम से।आज नहीं जा पाये तो क्या हुआ? कल चले जायेंगे ।”सुमि ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा ।

“सीधे सीधे बोलो कि एक दिन और रहना चाहती हो ।तुमहे तो बहाना चाहिए, वहां माँ अकेली है घर पर,निम्मी (भाई की बेटी)को भी जाना है शाम को ।अब पापाजी थोडी ना देख रहे हैं कि हम यहाँ नीचे क्या कर रहे हैं?और अब लगभग पूरा दिन बिता दिया है, और हमारा तो कुछ काम भी नही है इन रीति रिवाजों में ।तो माँ को बोल दो एक बार की टाइम से निकल जाते है घर को ,तो समय पर पहुंच जायेंगे ।”शुभम् ने बात को अपनी सोच के हिसाब से घुमाते हुए कहा ।

“तुम कहाँ की बात कहाँ ले जा रहे हो ।मैं यहाँ रहना चाहती और मुझे घर की फिक्र नहीं  होती तो क्या पहले नहीं आ जाती ?कल रात आयी कयोंकि मुझे भी पता है मांजी को जयादा दिन अकेले नहीं छोड सकते ।फिर भी तुम …।”कहते हुए सुमी की आँख में आंसू आ गए ।अपने को संभालते हुए बोली “चलो मेरे पापा तो नहीं देख रहे ,तो देख तो तुम्हारे पापा भी नहीं रहे होंगे ।याद है पिछले साल जब पापा की तबियत खराब थी तो तुमने मुझे इसलिए नहीं आने दिया था देखने कयोंकि श्राद्ध लगे थे ,और तीन दिन बाद पापाजी के श्राद्ध की तिथि थी ।उस वक्त भी तो ये ज्ञान होगा आपके पास या नहीं ।”सुमि ने तर्क देते हुए कहा ।

“इसमें नया क्या है?ससुराल में रिति रिवाज का ध्यान तो बहुओं को ही रखना पड्ता है ।श्राद्ध में सब खाना पीना बनाना ,पंडित जी का लेन देन सब घर औरतों को ही तो पता होता है ।उसके बाद तो कुछ नहीं कहा ना ।”शुभम् अपनी कही बात पर दोहरा रूख अपनाते हुए बोला ।

“उसके बाद क्या कहते ?फिर तो पापा के सीरियस होने की खबर आ गयी थी ।icuमें लेटे हुए ही   तो देख पायी मैं ।रही बात औरतों के श्राद्ध के प्रति फर्ज की तो देखा जाये तो दादा ,परदादा ,दादी ,माँ पिता सब तुमहारे और फर्ज हमारे ।तुमहारे दादा दादी को मैने नहीं देखा,यहाँ तक की पिताजी भी हमारी शादी से पहले गुजर गये ।उनकी गोदी मे खेलो तुम,प्यार दुलार सब के हकदार रहे तुम तो उनका अगर कोई ऋण है तो वो तम पर है ना ।  श्राद्ध की हकदार मै कैसें?वो जो उस परिवार में उनके बाद आयी,चाहे कोई भी औरत हो ,उस पर ये सारे ऋण कैसे आ जाते है ?और पुरूष बनी बनायी थाली को गाय को देकर पितरो के आशीर्वाद का हकदार कैसे बन जाता है? ये जो फार्मूला तुम अभी मुझें सुना रहे थे वो तुम पर लागू होता है कि नहीं ।तुमहारे पितरो का ॠण मुझ तक आ गया।जबकि जिसने तुमहे अपनी पाली पोसी लड्की, तुमहारे घर को संभालने और तुम्हारी वंशबेल को बढाने के लिये दी उसका कोई ॠण तो छोड़ो, उसके लिये खडे होने में तुमहे इतनी परेशानी हो रही हैं ।”सुमि ने जैसे एक कटु सत्य से शुभम् का परिचय करवा दिया हो ।

“बस,बस तुम तो अजीबोगरीब बात करने में माहिर हो।6 बजे चल पडेंगे, अब तुमहे अच्छा लगे या बुरा ।”शुभम् जैसे उस कटु सत्य से झुंझला गया ।

“नहीं, अब हम कल सुबह ही चलेंगे, चाहे तुमहे अच्छा लगे या बुरा ।जैसे तुमहे मेरी बात अजीबोगरीब लग रही है ना ,वैसे ही हम औरतों को भी अपने ससुराल में बहुत कुछ अजीबोगरीब लगता है ,फिर भी हम इज्जत से उसे निभाते है ।ये तुम्हारी ससुराल है मेरी नहीं ।निभाना सिखों, वरना शायद मैं भी निभाना भूल जाऊं जो मुझे अजीबोगरीब लगता है ।”कहते हुए सुमि अपने पिता के लिए हो रहे शांति हवन में बैठ गयी।थोड़ी देर अकेला खड़ा शुभम् सुमि को देखता रहा और फोन जेब से निकालता हुआ बाहर की तरफ निकल गया “हाँ माँ, आप ना अभी रात के लिए निम्मी (भाई की बेटी)को वही रोक लेना ।हम कल सुबह आते हैं ।अभी टाइम लगेगा सब काम निपटने में ।मै अंशुल (भाई) से कह देता हूँ ।”कहते हुए अपना फोन रखकर पीछे मुडा तो सुमि अश्रुपूरित आखों से आगे बढी और शुभम् का हाथ पकड़कर हवन स्थान की तरफ चल दी।

 

दोस्तो, आज भी हमारे समाज में लड्की की ससुराल में रहने के कायदे पुरूष की ससुराल के कायदो से बिलकुल अलग है ।क्या आपको नहीं लगता कि इस विचारधारा में बदलाव लाने की आवश्यकता है ।अपनी राय अवश्य लिखें ।

 

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

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